कोरोना महामारी ने किया बेसहारा, महतारी दुलार योजना से मिला सहारा : सिद्धांत और संस्कृत दोनोँ बच्चे स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम में हैं अध्ययनरत ,मिल रहि छात्रवृति

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कोरोना महामारी ने किया बेसहारा, महतारी दुलार योजना से मिला सहारा : सिद्धांत और संस्कृत दोनोँ बच्चे स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम में हैं अध्ययनरत ,मिल रहि छात्रवृति

भुवन वर्मा बिलासपुर 27 अक्टूबर 2021


बिलासपुर 27 अक्टूबर 2021। कोरोना महामारी ने बालक सिद्धांत और संस्कृत से उनके पिता को छिनकर उनको बेसहारा कर दिया। ऐसे समय में छत्तीसगढ़ महतारी दुलार योजना इन बच्चों का सहारा बनीं है और उनके सुखद भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है। अब ये दोनांे बच्चे स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे है और उन्हें हर माह 500 रूपये की छात्रवृत्ति भी मिलेगी।
बालक सिद्धांत और संस्कृत के पिता स्व. सौरभ तिवारी रायपुर में एक प्राईवेट जाॅब करते थे और उनकी माता गृहणी है। कोरोना महामारी के दौर में विगत 14 अप्रैल 2021 को श्री तिवारी की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद तिवारी परिवार के घर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई। पहले दोनों बच्चे प्राईवेट अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। पिता के मौत के बाद उनकी शिक्षा में बाधा आ गई। बच्चों की माता को इस बात की चिंता हो गई कि अब वह उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं दे पाएगी। इसी दौरान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के पहल पर छत्तीसगढ महतारी दुलार योजना लागू की गई। जिसके तहत कोरोना से मृत छत्तीसगढ़ के निवासियों के बेसहारा बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ साथ छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाएगी। बच्चों के नाना श्री नरेश तिवारी ने बताया कि उन्हें इस योजना की जानकारी मिलते ही शिक्षा विभाग में आवेदन किया और इन बच्चों को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल चकरभाठा में कक्षा तीसरी में दाखिला मिल गया। अब ये बच्चें हसते खेलते नये स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल जाने लगे है और उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ा चुके है।
श्री नरेश तिवारी का कहना है कि महतारी दुलार योजना छत्तीसगढ़ सरकार की अद्भुत योजना है। यह बेसहारा बच्चों का सबसे बड़ा सहारा बन रही है। सिद्धांत और संस्कृत की अंग्रेजी मीडियम स्कूल में अच्छी शिक्षा के लिए साल में 80 हजार रूपए फीस भरने पड़ते थे, जो उनके पिता की मृत्यु के बाद संभव नहीं था। योजना से उन्हें जो मदद मिली है, इसके लिए वे सरकार के अत्यंत आभारी है।
क्रमांक 1173/अग्रवाल
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