जीव ,जगत , जगदीश्वर तीनों रूपों में व्यक्त होते हैं परमात्मा — पुरी शंकराचार्य

0

जीव ,जगत , जगदीश्वर तीनों रूपों में व्यक्त होते हैं परमात्मा — पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 6 अक्टूबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठ उड़ीसा में सनातन धर्म को पूरे विश्व में पुनर्स्थापित करने के लिये विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियों के द्वारा विषय से संबंधित विशेषज्ञों की सहभागिता से वेदादि शास्त्रसम्मत सिद्धांतों की सर्वकालीन प्रासंगिकता को उद्भासित किया जा रहा है। इसी क्रम में हिन्दू राष्ट्र संघ अधिवेशन के प्रथम चरण में विदेश के प्रतिनिधियों के उत्साह एवं सहभागिता की ललक तीन दिवसीय द्वितीय चरण के अंतिम दिवस भी दृष्टिगोचर हुआ। इस अवसर पर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग ने उद्बोधन में संकेत किया कि वर्तमान में महायंत्रो के प्रचुर प्रयोग से दिव्य वस्तुओं एवं व्यक्तियों का दर्शन दुर्लभ हो रहा है। आजकल विकास का मापदण्ड एक देश को अनेक छोटे प्रांतों में विभाजन , प्रांत के अंदर अधिकाधिक छोटे छोटे जिले का निर्माण का प्रकल्प हो गया है ,जो कि शास्त्रसम्मत नहीं है। देहात्मवादी सोच धीरे धीरे आसुरी वृत्ति की ओर ले जाता है। सनातन सिद्धांत के अनुसार देह के नाश से जीवात्मा का नाश नहीं होता , देह के भेद से जीवात्मा में भेद की प्राप्ति नहीं होती। वेदादि शास्त्रसम्मत ज्ञानकांड , कर्मकांड , उपासनाकांड की उपादेयता सर्वश्रेष्ठ है। स्वप्न के समय पृथ्वी ,जल ,तेज, वायु , आकाश , दिकपाल मन के द्वार से स्वयं बनते हैं। हमारे स्वप्न में रचित कल्पना के रचयिता हमारा मन ही होता है जबकि भगवान के द्वारा रचित सृष्टि का स्वरूप माया है। अन्य धर्म के ईश्वर जगत बनते तो हैं परन्तु जगत बना नहीं सकते। जबकि हमारे ईश्वर जगत बनाते भी हैं , बनते भी हैं। पुरी शंकराचार्य जी आगे संकेत करते हैं कि स्वभाव से भौतिकवादी शोषक, संकीर्णवादी होते हैं , उनकी दृष्टि सिर्फ वर्तमान तक होती है। हिन्दुओं की सबसे बड़ी कमी समष्टि से जुड़ाव का ना होना है , वहीं अन्य धर्म समष्टि से जुड़कर व्यष्टिहित भी साध लेते हैं। हिन्दुओं को समष्टि से तालमेल रखकर प्रमाद , संकीर्णता दूर करने पर ही अन्य तंत्रों पर विजय मिल सकती है। सनातन सिद्धांत के अनुसार हम सब परमात्मा के अंश हैं , परमात्मा हमारे अंशी हैं। परमात्मा के अंश होते हुये हम प्राणी हैं , प्राणी होते हुये स्थावर जंगम प्राणी हैं। प्राणी होते हुये मनुष्य हैं , मनुष्य के रूप में हिन्दू फिर वर्णाश्रम व्यवस्था के अंतर्गत अलग होते हैं , इसका तात्पर्य है कि हम सब परमात्मा के परिवार के सदस्य हैं। आरोह क्रम में परिवार के सदस्य के रूप में समाज के सदस्य , समाज के सदस्य के रूप में क्षेत्र के , फिर प्रांत , राष्ट्र , विश्व , ब्रह्मांड के सदस्य हैं , यही हमारे सनातन सिद्धांत की समष्टि दृष्टांत है। हमारे परमात्मा जीव , जगत , जगदीश्वर तीनों रूपों में व्यक्त होते हैं। हिन्दू राष्ट्र संघ अधिवेशन यांत्रिक विधा से आगे भी आयोजित होगा , महामारी निवारण के पश्चात श्रीगोवर्धन मठ में हिन्दू राष्ट्र संघ के वृहद सम्मेलन की योजना है जिसमें विश्वस्तर पर कार्ययोजना की रुपरेखा तैयार की जायेगी।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *