श्रीगोवर्धन मठ पुरी में तीन दिवसीय अर्थ संगोष्ठी संपन्न

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भुवन वर्मा बिलासपुर 9 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर
पूज्यपाद श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में श्रीगोवर्धनमठ पुरी में दिनांँक 06 जुलाई से 08 जुलाई 2020 तक तीन दिवसीय अर्थ विषय पर बेबीनार के माध्यम से संगोष्ठी संपन्न हुई । इस संगोष्ठी में अर्थ के विभिन्न आयामों जैसे अर्थ की परिभाषा और अर्थोपार्जन के उद्देश्य , कृषि- गोरक्ष्य- वाणिज्यादि अर्थोपार्जन के विविध स्रोत , आर्थिक विपन्नता तथा अनावश्यक विषमता के निवारण के अमोघ उपाय , अर्थ के संचय, संरक्षण, उपभोग और वितरण की स्वस्थ विधा जैसे विषयों पर विशेषज्ञ अर्थविदों ने अपने भाव व्यक्त किये। संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों में स्वदेशी जागरण मंच के प्रमुख डॉ अश्विनी महाजन , डॉक्टर मोहन लाल छिपा , डॉ अरुणा कुसुमाकर , डॉ नरेश झा , नरेश सिरोही प्रमुख थे। प्रथम दिवस में डाॅ० सुब्रमणियम स्वामी , एडीएन बाजपेई , प्रो० गिरीशचंद्र त्रिपाठी , डॉ० रेखा आचार्य ने अपने विचार व्यक्त किये । इस दिवस को अर्थविदों के व्याख्यान का सार था कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ही भारत को आत्मनिर्भर बना सकती है। अत: बारह महीनों कृषि उत्पादन होता रहे इसके लिये सिंचाई , उत्तम बीज , प्राकृतिक खाद , देशी पद्धति से निर्मित हानिरहित कीटनाशक की व्यवस्था सरकार के द्वारा सुनिश्चित की जानी चाहिये एवं कृषि उत्पाद के उचित मूल्य हेतु स्थानीय स्तर पर खरीदने के लिये बाजार भी उपलब्ध हो ऐसी व्यवस्था की जाये। संगोष्ठी के प्रथम दिवस के अंत में पुरी शंकराचार्य जी ने विषय को समेकित करते हुये उद्धरण दिया कि प्रयोजन ही अर्थ है तथा प्रयोजन की सिद्धि भी अर्थ है। पृथ्वी अर्थ है , जल अर्थ है , तेज अर्थ है , वायु अर्थ है , आकाश अर्थ है , सभी अर्थ परम अर्थ में समाहित हैं । परम अर्थ सच्चिदानन्द सर्वेश्वर हैं। पूज्यपाद जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज जी ने कहा कि “जीविका जीवन के लिये है, जीवन जीविका के लिये नहीं, जीवन है जीवनधन जगदीश्वर की प्राप्ति के लिये”। इसी कड़ी में अर्थ संगोष्ठी के द्वितीय दिवस डाॅ० विनय जोशी शोध निदेशक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय भोपाल , प्रो० मोहनलाल क्षिप्रा पूर्व कुलपति अटल बिहारी वाजपेई हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल , प्रो० मनोज पंत निदेशक आई०आई० एफ० टी० ,डॉ०अरुणा कुसुमाकर प्राध्यापक शासकीय संस्कृत महाविद्यालय इंदौर वक्ता रहे। इस दिन के संगोष्ठी का निष्कर्ष था कि वर्तमान अर्थनीति से अमीर और अधिक अमीर होते जा रहे हैं । देश का संपूर्ण अर्थ चंद लोगों के पास सिमट कर रह गया है अत: सूक्ष्म , लघु उद्योगों को प्रोत्साहन मिले , बड़े उद्योगों के द्वारा लघु उद्योगों को पोषित करने की नीति आवश्यक है। पुरी शंकराचार्य जी ने वेदोक्त विधि से अर्थ को परिभाषित करते हुये कहा कि समस्त अर्थ का प्रमुख स्त्रोत अव्यक्त प्रकृति है और प्रकृति भगवान की शक्ति है। भोग्य की सामग्री का नाम अर्थ है ,उपभोग के सामग्री का नाम अन्न है। पुष्टि एवं प्रबोध में जिस सामग्री का विनियोग उपयोग होता है , उसी का नाम अन्न है । परमात्मा की प्राप्ति के लिये जब अर्थ का विनियोग उपयोग हो तभी अर्थ की सार्थकता है। अर्थ जब प्रंदह विभिन्न दोष जैसे द्यूत , लोभ , हिंसा , मद्य आदि से रहित होता है , तभी अर्थ रहता है नहीं तो अनर्थ हो जाता है।संगोष्ठी के अंतिम दिवस पर डाॅ नरेश झा , नरेश सिरोही ,डॉ ए एस पवार , प्रो के एस एल पाठक , अश्वनी महाजन , बी सी भरतिआ आदि वक्ताओं ने अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जिसका सार यह था कि अंग्रेजों के शासन काल में अर्थनीति से ब्रिटेन के उद्योगों को लाभ पहुंँचा वहीं हमारे परंपरागत तथा कुटीर उद्योग हासिये पर रहे । स्वतंत्रता के पश्चात भी उसी नीति का पालन होता रहा जिससे देश के कुछ हिस्से में उन्नति हुई वहीं अधिकांश ग्रामीण एवं वनांचल क्षेत्र विकास के दौड़ में पिछड़ते गये। वर्तमान कोरोना संक्रमण की स्थिति में पूरा देश थम गया है , सभी उद्योगों, व्यवसाय पर इस महामारी का विपरीत प्रभाव पड़ा है । वहीं दूसरी ओर इस संक्रमण काल में भी हमारी कृषि व्यवस्था बदस्तूर जारी रही ,यही हमारी विशेषता है । अतः क्षेत्रीय जलवायु के अनुसार जो कृषि उत्पाद , पशुपालन , जैवविविधता संभव होता है उसी को प्रोत्साहन मिलना चाहिये । जिससे देश का प्रत्येक क्षेत्र अपने स्थानीय संसाधन का उपयोग कर आत्मनिर्भर बन सके। हमारी कृषि देशी गोवंश आधारित होना चाहिये तथा देशी गोवंश से प्राप्त दूध , गोबर , गोमूत्र से बने विभिन्न उत्पादों का अधिकाधिक उपयोग हो , देशी गोवंश संरक्षण , गोपालन की राष्ट्रीय नीति बने। तीन दिवसीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने वेदों में सन्निहित अर्थ के आशय को समझने पर ही विश्व का कल्याण हो सकता है। आज सम्पूर्ण विश्व अर्थ को जिस तरह परिभाषित एवं क्रियान्विति कर रहा है वह विकास नहीं विनाश की दिशा है । सम्पूर्ण अर्थ का स्त्रोत पृथ्वी, जल , तेज , वायु , आकाश , अव्यक्त प्रकृति है । वर्तमान विकास के क्रियान्वयन से प्रकृति कुपित , दूषित व विक्षुब्ध हुई है जिसकी परिणति वर्तमान विभिषिका है। पृथ्वी को धारण करने वाले सात धारकों में विप्र , धेनु , सती , निर्लोभी , दानशील प्रमुख है , महायंत्रो के प्रचुर आविष्कार एवं प्रयोग से इनका विलोप हो रहा है। अर्थ में विलासिता व संचय का समावेश होने पर उसमें विकार अवश्यंभावी होता है। अतः वेदज्ञ मनीषियों से मार्गदर्शन प्राप्त कर अर्थ की वास्तविक परिभाषा समझते हुए इसके समाज कल्याण में विनियोग उपयोग करने पर ही सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण सुनिश्चित हो सकेगा। अगले अगस्त माह में पुनः श्रीगोवर्धन मठ पुरी में पूज्यपाद शंकराचार्य जी के सानिध्य में राजनीति विषय के विभिन्न आयामों पर वेवीनार के माध्यम से संगोष्ठी आयोजित होगी , जिसमें विषय विशेषज्ञ के अलावा इस क्षेत्र में सक्रिय महानुभाव भी अपने विचार व्यक्त कर सकेंगे।

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