पांच साल बाद फिर जनता चुनेगी महापौर और अध्यक्ष:निकाय और पंचायत चुनाव में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तक होगी
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रायपुर/ छत्तीसगढ़ में नगर निगम के महापौर तथा नगर पालिका और नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से कराया जाएगा। यानी जनता अब सीधे इनके लिए वोट करेगी। इस फैसले के साथ ही साथ ही साय सरकार ने तत्कालीन भूपेश सरकार के एक और फैसले को पलट दिया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में सोमवार को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया।
इसके लिए नगर निगम तथा नगर पालिका अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी गई है। भास्कर ने अपने 14 मई के अंक में ही बता दिया था कि सरकार सीधे चुनाव कराने की तैयारी में है। इसी तरह ओबीसी आयोग द्वारा प्रस्तुत आरक्षण रिपोर्ट के आधार पर निकायों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत किए जाने को भी मंजूरी दे दी गई है।
आरक्षण पर भी सहमति: राज्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विभाग ने नगरीय निकाय तथा पंचायतों में चुनाव ओबीसी के प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण के संबंध में स्थानीय निकायों में आरक्षण को एकमुश्त सीमा 25 प्रतिशत को शिथिल कर ओबीसी की संख्या के अनुपात में अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की अनुशंसाओं को भी मंजूरी दे दी गई है।
अन्य महत्वपूर्ण फैसले
- पीडीएस में चना बांटने के लिए नान को चना खरीदी ई-ऑक्शन से करने को मंजूरी
- राज्य सरकार द्वारा चना वितरण के तहत 30.22 लाख परिवारों को लाभान्वित किया जा रहा है। चना वितरण के लिए हर साल 72.52 लाख टन चने की जरूरत होती है।
- राज्य में पर्यटन को उद्योग का दर्जा प्रदान करने का निर्णय लिया गया।
आरक्षण संशोधन को मंजूरी- डिप्टी सीएम अरुण साव ने कहा कि निकाय व पंचायतों में ओबीसी आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट करने का दिशा-निर्देश जारी किया था। इस आधार पर सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर निकाय और पंचायतों में ओबीसी आरक्षण देने संशोधन के प्रारूप को मंजूरी दी गई है।
तख्तापलट का खतरा कम
मेयर तथा अध्यक्ष के सीधे चुनाव कराए जाने के पीछे नेता यह तर्क देते हैं कि अप्रत्यक्ष तरीके से चुनाव कराए जाने से हमेशा तख्ता पलट का खतरा बना रहता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के पार्षदों की संख्या में अंतर कम होने पर अक्सर इस तरह की परिस्थिति निर्मित होती है। वहीं पार्षदों का दबाव ही अक्सर मेयर और अध्यक्ष पर रहता है, जिसके कारण फैसले लेने में भी कई बार विरोधाभाष का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में कुछ नगर पालिका और नगर पंचायतों में यह स्थिति देखने को मिली थी। सीधे चुनाव से तख्तापलट का खतरा कम रहता है। इसलिए शहर सरकार की स्थिरता के लिए प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव कराए जाने पर सहमति दी गई है। सीधे चुनाव की घोषणा के बाद से अब दोनों ही दलों को मेयर और अध्यक्ष के चेहरे को लेकर मशक्कत करनी पड़ेगी, क्योंकि चेहरे के आधार पर ही मतदाता वोट करेंगे।
चुनाव के दौरान अब मतदाता को पार्षद के साथ ही महापौर और अध्यक्ष पद के लिए दो अलग-अलग वोट डालने होंगे।
पहले ऐसी थी व्यवस्था– अप्रत्यक्ष तरीके से हुआ था पिछला चुनाव
अविभाजित मध्यप्रदेश में निगमों में महापौर तथा पालिकाओं के अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष तरीके से कराया जाता था। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रही, पर तत्कालीन भूपेश सरकार ने निकायों के महापौर तथा पालिकाओं के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से कराने का निर्णय लिया था। इसकी अधिसूचना 12 दिसंबर 2019 को प्रकाशित की गई थी।
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