बस्तर के लोगों ने दिल्ली में राष्ट्रपति को सुनाया दर्द: मुर्मू बोलीं-हिंसा छोड़ें नक्सली, हमले में अपाहिज हुए लोगों से मिलीं, बच्चों को दी चॉकलेट
शनिवार को बस्तर का दर्द राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंचा। बस्तर के अलग-अलग गांवों से 50 से अधिक ग्रामीण दिल्ली गए हुए हैं। राष्ट्रपति भवन पहुंचकर ग्रामीणों ने बताया कि कैसे नक्सली हमलों की वजह से वो अपाहिज हुए। उनके गांवों का विकास रुक गया। कई बच्चे अनाथ हो गए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन के अशोक मंडप में सभी से मुलाकात की। बस्तरवासियों का दर्द सुन राष्ट्रपति ने नक्सलियों से हिंसा का रास्ता छोड़ने की अपील की। साथ ही जब उन्होंने बच्चों को देखा तो सभी के लिए चॉकलेट मंगवाकर अपने हाथों से दिया।
हालात सुनकर दुखी हुईं राष्ट्रपति
ये ग्रामीण बस्तर शांति समिति के बैनर तले दिल्ली पहुंचे हैं। सभी ने राष्ट्रपति के सामने अपनी पीड़ा और व्यथा सुनाई। पीड़ितों ने कहा कि बस्तर सदियों से शांत और सुंदर रहा है, लेकिन बीते 4 दशकों में माओवादियों के कारण यही बस्तर आतंकित है। जिस बस्तर की पहचान आदिवासी संस्कृति और परंपरा रही है, उसे अब लाल आतंक के गढ़ से जाना जाता है। यह बस्तरवासियों का दुर्भाग्य है।
दिल्ली पहुंचे बस्तर के ये लोग नक्सल हिंसा से पीड़ित हैं, कोई पैर तो कोई आंख गंवा चुका है।
हमारा जीवन नर्क हो चुका है राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे पीड़ितों ने कहा कि, माओवादियों ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है। उन्होंने बताया कि बस्तर में माओवादी आतंक के कारण स्थितियां ऐसी है कि आम जीवन जीना भी मुश्किल हो गया है। माओवादियों ने ग्रामीण एवं वन्य क्षेत्रों में बारूदी सुरंग बिछा रखी है। चपेट में आने के कारण बस्तरवासी ना सिर्फ गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं, बल्कि मारे भी जा रहे हैं।
बस्तर से कई महिलाएं भी राष्ट्रपति से मिलने पहुंचीं।
महात्मा गांधी के दिखाए रास्ते पर चलें नक्सली
राष्ट्रपति ने ग्रामीणों से बातचीत में कहा कि, कोई भी उद्देश्य हिंसा के रास्ते पर चलने को उचित नहीं ठहरा सकता। यह हमेशा समाज के लिए बहुत महंगा साबित होता है। वामपंथी उग्रवादियों को हिंसा का त्याग करना चाहिए, मुख्यधारा में शामिल होना चाहिए।
वे जो भी समस्याएं उजागर करना चाहते हैं, उन्हें हल करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे। यही लोकतंत्र का रास्ता है और यही रास्ता महात्मा गांधी ने हमें दिखाया था। हिंसा से त्रस्त इस दुनिया में हमें शांति के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
नक्सल हिंसा में अपाहिज हुए लोगों ने राष्ट्रपति भवन में मुलाकात की।
मेरी आंख की रोशनी चली गई 16 साल की नक्सल पीड़िता राधा सलाम ने राष्ट्रपति को अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि माओवादी हिंसा के कारण उसने अपने एक आंख की रोशनी खो दी है। उसने पूछा कि आखिर इसमें मेरा क्या कसूर है?
राधा ने बताया कि जब उसके साथ घटना हुई तब वह केवल तीन साल की थी। वहीं एक और पीड़ित महादेव ने बताया कि जब वह बस से लौट रहा था तब माओवादियों ने ब्लास्ट किया। इसमें उसका एक पैर काटना पड़ा।
राष्ट्रपति से पहल की गुहार बस्तर शांति समिति की ओर से जयराम दास ने बताया कि आज जो पीड़ित राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे वो सभी नक्सल हिंसा के शिकार हुए आम बस्तरवासी हैं। पीड़ितों में कुछ ऐसे हैं जिनकी आंखें नहीं हैं, तो कोई ऐसा है जिसने अपने एक पैर माओवादी हिंसा के चलते खो दिया है।
कोई ऐसा है जिसके सामने उसके भाई की हत्या की गई, तो किसी बुजुर्ग के सामने उसके बेटे को माओवादियों ने बेरहमी से मारा है। लोगों ने मांग रखी कि राष्ट्रपति इस विषय को लेकर संज्ञान लें और बस्तर को माओवाद मुक्त करने के लिए पहल करें।
माओवाद मुर्दाबाद जैसे नारे JNU कैंपल में लगे।
JNU में नक्सल विरोधी नारे लगे
दिल्ली दौरे में ये ग्रामीण JNU भी पहुंचे। इस यूनिवर्सिटी में अक्सर नक्सलियों के प्रति सॉफ्ट विचार रखने वाले अप्रत्यक्ष रूप से नक्सलियों के समर्थन में सभाएं करते हैं। यहां नक्सल इलाकों से गए इन ग्रामीणों ने अपना दर्द छात्रों के सामने रखा। साथ ही यूनिवर्सिटी के कैंपस में नक्सल विरोधी नारे भी लगाए।
दिल्ली दौरे के दौरान बस्तर के लोग गृहमंत्री अमित शाह से भी मिल चुके हैं।
अमित शाह से भी हुई मुलाकात इस दौरे के दौरान ग्रामीणों ने देश के गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की है। सभी ने अपने-अपने गांव के हालात के बारे में उन्हें बताया। गृहमंत्री ने नक्सल पीड़ितों की समस्याओं पर गंभीरता दिखाई। उन्होंने इन लोगों के संघर्ष और साहस की सराहना की। आश्वासन दिया कि सरकार उनकी समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाएगी।
क्या है सियासी मायने आदिवासियों के इस दिल्ली विजिट में ये बताने की कोशिश है कि नक्सलियों के हमलों की वजह से आदिवासी किस कदर परेशान हैं। ग्रामीणों ने जंतर-मंतर में जाकर धरना भी दिया। JNU जाकर अपना दुख भी साझा किया।
छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद मिटाने और नक्सलियों के प्रति दिल में रहम रखने वाली सोच को चैलेंज करने इस यात्रा का प्लान समिति की ओर से किया गया है। 24 सितंबर तक ये सभी ग्रामीण छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं।