कारगिल जैसा मैने देखा, समझा और जाना – शिमला समझौता को तोड़ पाकिस्तान ने किया था गद्दारी : तब हुआ कारगिल युद्ध – अंतः हार का मुख देखना पड़ा था पाक को

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कारगिल जैसा मैने देखा, समझा और जाना – शिमला समझौता को तोड़ पाकिस्तान ने किया था गद्दारी : तब हुआ कारगिल युद्ध – अंतः हार का मुख देखना पड़ा था पाक को

भुवन वर्मा कारगिल से 1 अप्रेल 2023 तापमान माईनस 3 डिग्री

कारगिल। आज कारगिल के अमरजवान वार मेमोरियल घूमने व देखने का अवसर सपरिवार प्राप्त हुआ । जहां हमने मेमोरियल के ड्यूटी में तैनात जवान व अधिकारीयों से विस्तार से चर्चा हुई । युद्ध के दौरान पाक के सैनिकों से जप्त हथियार प्रदर्शनी आम जनता के लिए रख गया है । वहीं बोफोर्स तोप को नजदीक से देखने व जानने का अवसर मिला । कारगिल युद्ध क्यो और कैसे पर भी चर्चा हुई । उन्होंने बताया पाक घुसपैठियों की संख्या और स्थिति की सही जानकारी न होने के कारण भारत को कारगिल युद्ध के शुरुआती दिनों में अधिक क्षति उठानी पड़ी लेकिन भारतीय सैनिकों की बहादुरी और सेना के रण-कौशल के कारण पाकिस्तान को अंत में मुंह की खानी पड़ी। पाकिस्तान कभी भूल नहीं पाएगा कारगिल युद्ध का सबक। यह कहना है कारगिल युद्ध के योद्धा जवानों का ।
उन्होंने कहा कि युद्ध के समय सभी सैनिकों के मन में सिर्फ एक ही भावना होती है और वह कि देश के लिए मर-मिटेंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे। कारगिल युद्ध के जवानों का यही संकल्प रहा है । 18 ग्रेनेडियर्स अल्फा कंपनी को बताया गया था कि आतंकवादी घुसपैठ हुई है और हमें टाइगर हिल पर सामने से चढ़ना है। -4 डिग्री तापमान और बेहद खराब मौसम में ऊपर चढ़ने पर कंपनी का ऊंचाई पर पहले से ही मोर्चा संभाले बैठे पाकिस्तानी सेना के लगभग डेढ़ सौ हथियारबंद सैनिकों से सामना हुआ तब हमारे सैनिकों को लेकरएक घुसपैठ की गंभीरता का पता चला। संख्या बल में कम होते हुए भी चार दिनों तक भूखे-प्यासे बहादुरी से दुश्मनों से लोहा लेते रहे। अनेक पाकिस्तानी सैनिक मारे गये और बाकी भाग खड़े हुए। हमारी अल्फा कंपनी के 35 जवानों में से केवल एक रवि करण शहीद हुए लेकिन तोलोलिंग पहाड़ी पर दूसरी ओर से पहले चढ़ने वाली कंपनी के अधिकतर सैनिक शहीद हो गए। इस कंपनी के सिकंदराबाद (उत्तर प्रदेश) निवासी 19 वर्षीय कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को बाद में परमवीर चक्र प्रदान किया गया था। हवलदार जयप्रकाश ने पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए बताया की वह आज भी अपनी कंपनी द्वारा तोलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा ध्वज फहराने का फोटो देखते हैं तो उनका हृदय गर्व से भर जाता है। भारतीय सेना अपनी देश सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका को बखूबी निभा रही है । इसीलिए प्रत्येक भारतवासी को हमारी अपनी सेना पर गर्व है। देश के लिए कुर्बानी देने वाले वीर सपूतों के शौर्य को याद कर आज हर भारतीय नमन करता है । कारगिल युद्ध दोनों देशों के बीच 1999 में लड़े गए युद्ध को जीतने की याद में हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है । नापाक पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर जिन जगहों पर कब्जा कर लिया था, भारत के जांबाज फौजियों ने उन दुर्गम स्थानों पर दोबारा तिरंगा फहराया था । 60 दिन से ज्यादा चलने वाली इस लड़ाई को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया था ।


विदित हो कि भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1999 में हुई जंग में भारतीय सेना की जीत इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज है । 26 जुलाई के दिन की गाथा जब भी सुनाई जाती है तो हर भारतीय जोश से लबालब हो जाता है. पाकिस्तानी सेना के कब्जे से कारगिल की ऊंची चोटियों को आजाद कराया गया. लगभग 60 दिन चले इस युद्ध में सैनिकों ने पाकिस्तानी घुसपैठिओं को खदेड़ते हुए कारगिल की चोटियों पर जीत का झंडा फहराया था ।
लेकिन क्या आपको पता है कि कारगिल युद्ध की नापाक साजिश रची कैसे थी और किस तरह एक शख्स ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था ।

पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध की साजिश उस समय ही रचनी शुरू कर दी थी जब उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती का हाथ बढ़ाकर बस से लाहौर गए थे. पीएम अटल बिहारी फरवरी 1999 को लाहौर पहुंचे जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया. इसके बाद 21 फरवरी 1999 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसे लाहौर समझौता कहा जाता है. समझौते के बाद दोनों देशों ने कहा कि हम सहअस्तित्व के रास्ते से आगे बढ़ेंगे और कश्मीर जैसे मुद्दों को बैठकर सुलझा लेंगे. एक तरफ जहां पाकिस्तान भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा था तो वहीं उसकी सेना भारत के खिलाफ साजिश रच रही थी. इस साजिश का नाम था ऑपरेशन बद्र.

शिमला समझौते को तोड़कर रची गई साजिश

दरअसल, शिमला समझौते के बाद ये तय हुआ था कि कारगिल में जहां सर्दियों में तापमान -30 और -40 डिग्री सेल्सियस चला जाता है वहां से दोनों देशों की सेना अक्टूबर के महीने से अपनी पोस्ट छोड़कर चली जाया करेंगी और फिर मई जून में फिर से अपनी पोस्ट पर जाएंगी. जब भारतीय सेनाएं साल 1998 में अपनी पोस्ट छोड़कर जा रही थीं तो पाकिस्तानी सेनाओं ने ऑपरेशन बद्र के तहत अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी और पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय पोस्ट पर कब्जा करके बैठ गए. इस ऑपरेशन के तहत मुशर्ऱफ का प्लान था कि पाकिस्तानी सेना श्रीनगर-लेह हाईवे पर कब्जा कर लेगी जिससे सियाचिन पर पाकिस्तान आसानी से कब्जा कर सकता है.

इस तरह हुआ नापाक साजिश का खुलासा

बात 2 मई 1999 की है. ताशी नामग्याल नाम का एक चरवा अपने याक को ढूंढ रहा था. उसका नया नवेला याक कहीं खो गया था. इस याक को ढूढते हुए वो कारगिल की पहाड़ियों पर जा पहुंचे जहां उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा. वो अपने याक को पहाड़ियों पर चढ़कर देख रहे थे जब उन्हें पाकिस्तानी घुसपैठिए भी दिखाई दिए. उन्होंने अगले दिन जाकर इस बात की जानकारी सेना को दी. कहा जाता है कि उन्होंने याक के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखने वाली घटना को कारगिल युद्ध की पहली घटना माना जाता है. ।आज कारगिल जाने पर
योद्धाओं की अमर गाथा जानने व सुनने का अवसर मिला ।जय हिंद

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