पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा से नहीं भारत की आध्यात्मिकता से उपजे अर्थशास्त्र की आवश्यकता : आचार्य एडीएन वाजपेयी

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पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा से नहीं भारत की आध्यात्मिकता से उपजे अर्थशास्त्र की आवश्यकता : आचार्य एडीएन वाजपेयी

भुवन वर्मा बिलासपुर 27 दिसंबर 2022

रांची । विश्व मे दो अर्थशास्त्रीय धाराएं विद्यमान है: एक पूंजीवादी और दूसरी साम्यवादी। यद्यपि दोनों सतह पर अलग अलग दिखती है परंतु दोनों एक ही दर्शन से उत्पन्न है। दोनों मे पदार्थ, भौतिकवाद, उपभोग, मुद्रा प्रदर्शन,मशीन, तकनीकी, आदि विद्यमान है। केवल स्वामित्व का अन्तर है। पूंजीवादी व्यक्ति के और साम्यवादी राज्य का संसाधन पर स्वामित्व मानते है। इससे अलग भारत का आध्यात्मिक चिंतन है जो संसाधन पर ईश्वर का स्वामित्व मानता है। यह विचार आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी, कुलपति, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर ने इंडियन इकनॉमिक एसोसिएशन के 105 वें अधिवेशन में रांची, झारखंड मे प्रकट किए।

उन्होंने Postulates of Spiritual Economics पर आधारित अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा वृद्धि से वितरण से हटकर वितरण से वृद्धि का माडल बनना चाहिए। प्राकृतिक क्षेत्रीय,व्यक्तिगत, अर्थिक इकाई में विषमता स्वीकार हो सकती है। मानव अथवा राज्य द्वारा सृजित नहीं। उत्पादन के घटक भूमि और श्रम ही होना चाहिए। मुद्रा मात्र विनिमय का माध्यम है। अर्थिक विकास देश के संसाधन और संस्कृति पर आधारित होना चाहिए। आयातित विचार से भारत की समस्याएं नहीं सुलझ पाएगी। भारत को अपने शास्त्रों और बृहत्तर मूल समाज के व्यवहार से अर्थव्यवस्था के लिए नीतिगत निर्णय लेने चाहिए। आचार्य वाजपेयी ने आध्यात्मिक अर्थशास्त्र के 62 नियम भी प्रस्तुत किए।

अधिवेशन के मुख्य अतिथि झारखंड के सम्माननीय राज्यपाल श्री रमेश बैस थे। अधिवेशन में लगभग 1000 अर्थशास्त्री उपस्थित थे। kiit university के chancellor सांसद अच्युत सामंत, पद्म श्री अशोक भगत,रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ए के सिन्हा, श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तपन शांडिल्य ने भी उद्घाटन सत्र में विचार प्रकट किए।

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