आजादी के अमृत महोत्सव – अनछुएं अनजाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विजय राम नायक का जीवन परिचय: स्वतंत्र भारत देखना जिनका एक मात्र उद्देश्य रहा

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आजादी के अमृत महोत्सव – अनछुएं अनजाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विजय राम नायक का जीवन परिचय: स्वतंत्र भारत देखना जिनका एक मात्र उद्देश्य रहा

भुवन वर्मा बिलासपुर 9 अगस्त 2022

रायपुर । नारों में थी गूँज उठी धधकती आग आजादी की शपथ ली जब स्वतंत्रता रूह अंग्रेजों की कांप उठी बाँध कफन माथे पर देखो माँ भारती के सपूतों की टोली निकल त्याग घर परिवार मोह सभी जब आजादी के ये परवाने निकले

स्वतंत्र भारत देखना जिनका एक मात्र उद्देश्य रहा, माँ भारती की सेवा करना जिन देशभक्तों के जीने और मरने का एकमात्र ध्येय रहा. रंगों में अपने स्वतंत्रता का रक्त संचार करते, अंग्रेजों के विरोध में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता वीरों को शत शत नमन,,,, वैसे तो हमारे छत्तीसगढ़ अँचल में भारत माता के कई वीर सपूतों ने जन्म लिया और आजादी के आंदोलनों का नेतृत्व भी किया, पर कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऐसे भी है । जिनके विषय में हम तक किसी भी प्रकार की जानकारी नही पहुँची जिनमें एक है स्वर्गीय विजयराम नायक जी पिता श्री खुमान सिंह नायक और माता तिजीया के घर वर्ष 5 मार्च 1923 को ग्राम कुरूद विकासखण्ड धरसींवा, जिला रायपुर में आपका जन्म हुआ । तीन भाईयों और दो बहनों के साथ आपने अपना बचपन व्यतीत किया, बालक विजय की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम- कुरूद में हुई, बचपन से ही उनके मन में समाज एवं लोगों के प्रति संवेदनशीलता रही साथ धार्मिक प्रवृत्ति के बालक रहे । बचपन से ही अंग्रेजों की क्रूरता एवं अन्याय ने बालक विजय के मन में स्वतंत्रता की चिंगारी को धधकने में कोई कसर नही छोड़ी, और फिर क्या इसी ने 19 वर्ष के विजय को गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के आग के रूप में भड़का • दिया। गांधी जी के इस आह्वान में डॉ. खूबचंद बघेल के नेतृत्व के साथ छत्तीसगढ़ के कई स्वतंत्रता प्रेमी इस आंदोलन में टूट पड़े ।

विजय राम नायक डॉ. खूबचंद बघेल के मार्गदर्शन में अपने साथी जगन्नाथ बघेल, हरीप्रेम बघेल, दुर्गा सिरमौर, हरखराम चंद्रवंशी, फिरतुराम वर्मा, रूखूमलाल चंद्रवंशी, रामाधार चंद्रवंशी, रामू वर्मा, भुजबल कश्यप के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने ललकारने लगे ।

27 सितम्बर 1942 को काली बाड़ी चौक, रायपुर में अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे विजयराम नायक और उनके अन्य साथियों को अंग्रेज अफसर ने गिरफ्तार कर लिया, और इनपर मुकदमा चलाते हुए 7 माह के कठोर सजा सुना दी, इस 7 माह की अवधि में उन्हें कई यातनाओं से गुजरना पड़ा, जिसमें कई कोड़ो का सामना रोज करना होता था अंग्रेजों इन स्वतंत्रता सेनानियों के मनोबल को तोड़ने के लिए कई अमानविय तरीके अपनाये थे, वे अपने कील लगें जूते से इन स्वतंत्रता सेनानियों के शरीर पर चोट दिया करते थे, जिनके निशान जीवन पर्यन्त उनके शरीर पर रहें और स्वतंत्रता के उन जख्मों के निशान चीख चीखकर उनके माँ भारती के प्रेम को प्रदर्शित करते रहे। जिनमे वंदे मातरम् गान से उनके दैनिक दिनचर्या का अंग बन चुका था मानो ऊर्जा स्फुलित होती हो अंग्रेज उनके मनोबल को तोड़ने में पूर्ण रूप से विफल रही।

15 अप्रैल 1943 को जेल से रिहा होने के बाद पुनः उत्साह से इस आंदोलन को गति देते रहे। सन् 1946 के कांग्रेस चुनाव में अंतरिम सरकार के लिए रायपुर तहसील के लिए डॉ. खूबचंद बघेल को निर्विरोध चुना गया एवं विजय राम नायक जी को सदस्य मनोनित किया गया । स्वतंत्रता के बाद सन् 1950 में आचार्य जे. पी. कृपलानी जी के आह्वान पर कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हो गये ।

सन् 1957 में गांव के विकास और युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए चलाये जा रहे ग्राम उद्योग संगठन के अध्यक्ष रहे, इनके तहत उन्होंने तेलघानी साबुन कारखाना, चरखे से धागा बुनना और नेवाड़ बनाना जैसे गतिविधियों का संचालन करना एवं प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया । अपने आसपास कोई भी शिक्षा से वंचित ना रह जाए इस उद्देश्य के साथ समाज सेवी के रूप में सन् 1961-62 को ग्राम सिलयारी में डॉ. खूबचंद बघेल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निर्माण के लिये भूमि एवं श्रमदान किया । सन् 1965-66 में भुखमरी एवं अकाल के समय विनोबाभावे जी द्वारा चलाये जा रहे भूदान आंदोलन से प्रेरित होकर • विजय जी ने एक एकड़ भूमि जनहित में दान किया ।

सन् 1962-67 के मध्य ग्राम कुरूद के उप सरपंच के पद पर चुने गये, 1970 के चुनाव में जनसंघ झोपड़ीछाप में चुनाव जीते। 1967 में छत्तीसगढ़ डॉ. खूबचंद बघेल के नेतृत्व में पृथक छत्तीसगढ़ निर्माण के उद्देश्य के,,,

विचारधारा को लेकर छत्तीसगढ़ भातृसंघ का निर्माण किया गया । जिसमें कुर्मी बोर्डिंग रायपुर में छत्तीसगढ़ के समस्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को एकजुट करने और अलग राज्य छत्तीसगढ़ निर्माण की विचारधारा को जन जन तक पहुँचाने

का महत्वपूर्ण दायित्व विजय राम नायक ने उठाया भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी छुआछूत का भेदभाव देश और समाज पर पसरा हुआ था, उसे दूर करने के उद्देश्य से सभी जाति वर्ग के लोगों को एक समान, मानकर एक साथ भोजन करने का साहसिक कार्य करते हुए सुराज आंदोलन में अग्रिम भूमिका विजय राम नायक ने निभाई । इतवारी हरिजन और विजय राम नायक की दोस्ती की • मिसाल आज भी उनेक गृहग्राम में दी जाती है, कि किस प्रकार जनजाति भेदभाव उनकी मित्रता के आड़े नही आ पायी और हम सब एक है के सिद्धांत को परिलक्षित करती रही उनकी मित्रता ।

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय उद्देश्य को लेकर आगे चलने श्री विजय राम नायक जी ने जनसेवा के लिये हर एक मार्ग पर अपने पद चिन्ह छोड़े है। वो एक वैद्य के रूप में जाने जाते थे, दूर दूर से रोगी उनके पास थककर नि:शुल्क ईलाज लिया करते थे, और इन सभी कार्यों में उनकी धर्मपत्नि श्रीमती परमदेवी नायक का अविस्मरणिय योगदान रहा और आयुर्वेद की दवाईयों को तैयार करने में परमदेवी जी का सहयोग उन्हें हमेशा मिला, जिनके चलते वे इस जनसेवा को जीवन पर्यन्त सफल रहें। उनके द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में रायपुर कुर्मी बोर्डिंग, भिलाई कुर्मी बोर्डिंग अंशदान दिया । धरसींवा चरौदा के शिव मंदिर के निर्माण के लिए उनके द्वारा अंशदान दिया गया, इस प्रकार कई सामाजिक एवं धार्मिक भवनों के निर्माण में उनका सहयोग रहा।

माटीपुत्र माँ भारती को स्वतंत्रता दिलाना और देश को सतत् विकास की सीढ़ियों पर चढ़ते देखना जिनका एकमात्र सपना रहा ऐसे हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी विजय राम नायक को माँ भारती ने 6 मार्च 2011 में अपने गोद में सदैव के लिए विश्राम दे दिया। हम ऐसे स्वतंत्रता के अग्रदूत को शत शत नमन करते है ।

जय हिंद…वंदेमातरम….. आलेख….डॉ. मुक्ति राजेश बैस (सुपुत्री स्व. श्री विजय राम नायक) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छत्तीसगढ़

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