श्रीकृष्णजन्माष्टमी पर विशेष : सनातन धर्म का महापर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज

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श्रीकृष्णजन्माष्टमी पर विशेष : सनातन धर्म का महापर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज

भुवन वर्मा बिलासपुर 30 अगस्त 2021

अरविन्द तिवारी की कलम से,,,

नई दिल्ली — भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन अर्धरात्रि में कंस कारागार मथुरा में सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु ने रोहिणी नक्षत्र में अत्याचारी कंस का विनाश करने और धर्म की स्थापना के लिये श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है और इसे हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है।। जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिये विधि विधान से पूजा करने के साथ ही उपवास भी रखते हैं और दिन भर घरों और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के गुणगान करते हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते हर साल की भांति मंदिरो में इस बार रौनक नहीं दिखाई देगी लेकिन लोग घरों में खास अंदाज में कृष्ण जन्मोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं। जन्माष्टमी के दिन कई लोग सुबह या शाम के वक्त पूजा करते हैं लेकिन ध्यान रहे कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को हुआ था, ऐसे में उस वक्त ही पूजा करना लाभकारी होता है। भगवान श्रीकृष्ण को जन्माष्टमी के दिन पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है , इसके अलावा इन्हें 56 भोग लगाने की भी परंपरा है। इस भोग को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को मांँ यशोदा दिन में आठ बार यानि आठों पहर भोजन कराती थी। एक बार जब ब्रजवासियों से नाराज होकर इंद्र ने घनघोर वर्षा कर दी तो भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक अपनी ऊंँगली पर उठा लिया। इस दौरान ब्रज के लोगों, पशु पक्षियों ने गोवर्धन के नीचे शरण ली। सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने बिना खाये पिये गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंँगली पर उठाये रखा। कृष्ण जी प्रतिदिन आठ बार भोजन करते थे , माता यशोदा और सभी ने मिलकर आठ प्रहर के हिसाब से सात दिनों का कृष्ण जी के लिये 56 भोग बनाये। ऐसा कहा जाता है कि तभी से 56 भोग लगाने की परंपरा शुरु हुई। जन्माष्टमी के दिन तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी भगवान कृष्ण को प्रिय हैं। ऐसे में इस दिन तुलसी पूजन शुभ माना जाता है। कहते हैं कि शाम के समय तुलसी के सामने घी का दीपक जलाना चाहिये और 11 बार परिक्रमा लगाने से मांँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। वहीं अगर आपके घर में तुलसी का पौधा नहीं है तो किसी मंदिर में जाकर दीपक जला सकते हैं लेकिन किसी दूसरे के घर में तुलसी पूजा करने ना जायें। मान्यता है कि ऐसे में पूजा का फल नहीं मिलता है। दरअसल कृष्ण जन्म को लेकर अलग-अलग मान्यतायें हैं और इस त्यौहार को पूरे देश में जोर-शोर से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को जहांँ साधु-संत अपने तरीके मनाते हैं तो आम जनता इसको दूसरी तरह से मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लगभग हर बार कृष्ण और शैव मतावलंवियों के बीच में संशय बना रहता है। तिथि को लेकर आपस में मतभेद होने के कारण जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है। लेकिन इस साल देश भर में एक ही दिन यानि आज जन्माष्टमी का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा। शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण के जन्म के समय विशेष ज्योतिषी संयोग बना था, ऐसा संयोग इस बार भी बना रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद  कृष्णपक्ष की आधी रात्रि अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा के वृषभ राशि में गोचर रहने का संयोग बना था। कुछ इसी तरह का संयोग इस बार भी जन्माष्टमी तिथि पर हो रहा है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि सोमवार को सुबह ही लग जायेगी जो कि देर रात समाप्ति होगी। जयंती योग और रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है। इसके अलावा अष्टमी तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद रहेंगे। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद अष्टमी तिथि में रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को हुआ था इसलिये अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं।जन्माष्टमी पर घरों और मंदिरों में विशेष रूप से सजावट की जाती है। सभी प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर और धाम में विशेष तरह के आयोजन होते हैं। इस दिन विधि- विधान से भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा- अर्चना की जाती है और व्रत भी रखा जाता है। पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नये वस्त्र अर्पित करते हैं और लड्डू गोपाल को झूला झूलाते हैं। पंचामृत में तुलसी डाल माखन-मिश्री का भोग लगाते और आरती पश्चात प्रसाद को भक्तजनों को वितरित करते हैं। कृष्ण भक्त इस दिन उपवास रखकर कान्हा की भक्ति में डूबे रहते हैं। महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण का अहम योगदान रहा था। उन्होंने ही अर्जुन को धर्म और अधर्म के बारे में ज्ञान दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समस्त गीता का बोध ज्ञान करवाया था। गीता में जीवन का समस्त ज्ञान समाया हुआ है और इसमें जीवन के सार का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। गीता और भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन से कई बातों को सीखा जा सकता है और उसको अपने जीवन में अनुसरण कर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

जन्माष्टमी व्रत की महत्ता

जन्‍माष्‍टमी के दिन किया गया जप अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात, जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्व है।जन्‍माष्‍टमी के व्रत की महिमा के बारे में भविष्य पुराण में लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है। जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता और गर्भ में पल रहे शिशु को भगवान सुखी और स्‍वस्‍थ रहने का आशीर्वाद देते हैं। एकादशी का व्रत हजारों-लाखों पाप नष्ट करने वाला अदभुत ईश्वरीय वरदान है लेकिन एक जन्माष्टमी का व्रत हजार एकादशी व्रत रखने के पुण्य की बराबरी का है। अगर आप एकादशी के व्रत नहीं कर पाते हैं तो जन्‍माष्‍टमी का व्रत करके यह पुण्‍य कमा सकते हैं।

इन बातों से करें परहेज
 
जन्माष्टमी के दिन तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिये। क्योंकि श्रीकृष्ण , भगवान विष्णु का अवतार हैं और विष्णु जी को तुलसी बहुत पसंद है। इस दिन वैसे तो ज्यादातर लोग व्रत रखते हैं , लेकिन जो व्रत नहीं भी रखते हैं उनको भी जन्माष्टमी के दिन चांवल नहीं खाना चाहिये। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में एकादशी और जन्माष्टमी के दिन चावल या जौ से बने भोज्य पदार्थ खाना वर्जित माना गया है। इस दिन लहसुन प्याज़ का सेवन और अन्य तामसिक भोजन एवं मांस- मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिये। भगवान श्री कृष्ण के लिये अमीर और गरीब सारे भक्त एक समान ही हैं , इसलिये इस दिन किसी भी व्यक्ति का अनादर नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी के दिन पेड़ों को काटना अशुभ माना जाता है। मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने से भगवान खुश होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये भक्ति में मन लगाना चाहिये। जन्माष्टमी के दिन गाय का अपमान ना करें। गाय का अपमान तो आपको वैसे भी कभी नहीं करना चाहिये लेकिन जन्माष्टमी के दिन इस बात का विशेष ख्याल रखने की ज़रूरत है। श्रीकृष्ण को गायों से बहुत प्यार था और वो अपना काफी समय उनके बीच बिताते थे। कहा जाता है कि जो गाय की सेवा करता है उसको कान्हा का आशीर्वाद सीधे तौर पर प्राप्त होता है।जन्माष्टमी व्रत में जिन बातों को परहेज किये जाने के बारे में बताया गया है , इन बातों पर परहेज नहीं करने से भगवान नाराज हो सकते हैं और आपको व्रत एवं पूजा का फल भी नही मिलता है।

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