त्रिस्पृशा एकादशी महाफलदायिनी : पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं
त्रिस्पृशा एकादशी महाफलदायिनी : पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं – अरविन्द तिवारी
भुवन वर्मा बिलासपुर 23 मई 2021
जगन्नाथपुरी – हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी तिथि कहा जाता है। हर महीने में दो एकादशी तिथि आती है- एक शुक्ल पक्ष में एवं दूसरी कृष्ण पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पूर्णिमा तिथि के बाद आती है और अमावस्या तिथि के बाद शुक्ल पक्ष वाली एकादशी तिथि कही जाती है। एकादशी तिथि का व्रत बहुत से हिंदू धर्मावंलबी रखते हैं। बैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाला , भोग और मोक्ष दोनों ही देने वाला तथा पापों का नाश करने वाला एकादशी के समान कोई व्रत नहीं है, इसलिये इसे व्रतों का राजा कहते हैं। सभी व्रत व सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है। त्रिस्पृशा एकादशी के बारे में अरविन्द तिवारी ने बताया कि आज मोहिनी एकादशी में ‘त्रिस्पृशा’ का दुर्लभ संयोग है। मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को बचाने के लिये मोहिनी रूप धारण किया था। यह तिथि धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करोड तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। शास्त्रों में त्रिस्पर्शा एकादशी का बड़ा महत्व है। इसका व्रत करने से अन्य एकादशियों की तुलना में कई गुना फल मिलता है। इसलिये इस एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। त्रिस्पृशा एकादशी व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला , महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है। इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं , इसके व्रत से हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है। यह व्रतधारी अपने कुल सहित सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिये । जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया। पद्मपुराण के अनुसार यदि सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक थोड़ी सी एकादशी , द्वादशी एवं अन्त में किंचित् मात्र भी त्रयोदशी हो , तो वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ कहलाती है। यदि एक ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ को उपवास कर लिया जाये तो एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल (लगभग पुरी उम्र भर एकादशी करने का फल) प्राप्त होता है। इसी तरह से ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ का पारण त्रयोदशी में करने पर सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है। प्रयाग में मृत्यु होने से तथा द्वारका में श्रीकृष्ण के निकट गोमती में स्नान करने से जो शाश्वत मोक्ष प्राप्त होता है , वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ का उपवास कर घर पर ही प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा पद्मपुराण के उत्तराखण्ड में ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ की महिमा में वर्णन है।