सब पर भारी छत्तीसगढ़ महतारी , देश के लिए मॉडल बना हमारा ‘गोधन’ : लोक सभा की स्थाई समिति ने लगाई मुहर

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सब पर भारी,छत्तीसगढ़ महतारी देश के लिए मॉडल बना हमारा ‘गोधन’:लोक सभा की स्थाई समिति ने लगाई मुहर

भुवन वर्मा बिलासपुर 18 मार्च 2021

बिलासपुर ।छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने जब गोधन न्याय योजना शुरू की थी तब विपक्षी दल के नेता इसे पैसे की बर्बादी बता रहे थे लेकिन जमीनी सोच का असर देखिए। साल भर में ही केंद्र की मोदी सरकार ने इस योजना का लोहा मान लिया। अब सारा विपक्ष जवाब देने से कतरा रहा है और गांव गांव में भूपेश की जमीनी सोच की तारीफ हो रही है।दरअसल गांव की जिस सोच समझ के साथ भूपेश बघेल चलते हैं वहां तक शहरी जनमानस कभी नहीं पहुंच सकता। यह उसी व्यक्ति के बस की बात है जिसने बचपन में धरसा में चलकर गरुआ और तरिया के बीच अपना समय बिताया है।जिसने ग्रामीण जीवन को अपने में आत्मसात किया है ।भूपेश बघेल स्वामी आत्मानंद के बताए उस मार्ग पर हैं जो हमेशा यह कहते थे कि विकास की शुरुआत गांधी के बताए रास्ते से होनी चाहिए, जहां गांव का आम आदमी अपनी जीविका के लिए जद्दोजहद कर रहा है।

स्वामी आत्मानंद ने शहरों में नहीं, गांव से रामकृष्ण भाव धारा को प्रवाहित करने की शुरुआत छत्तीसगढ़ में की थी।2 साल की इस सरकार ने कुछ साबित किया हो या ना हो पर यह तो साबित कर ही दिया कि सरकार की सोच गांव के लोगों के साथ है। गांव के उस किसान के साथ जो अपनी फसल के लिए दिन रात एक करता है, अपने पशुधन के लिए पसीना बहाता है, वही किसान भूपेश सरकार के विकास के केंद्र में है। लोकसभा में कृषि मामलों की स्थाई समिति ने सदन में जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें सुझाव दिया गया है कि गोबर के जरिए जैविक खेती के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है।जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने वाली इस योजना को मॉडल मानकर देश में शुरू किया जाए। केंद्र सरकार के मंत्रालय के अधिकारियों ने सिद्धांतत: भूपेश बघेल की नरवा गरूआ घुरुवा और बाड़ी की योजना पर अपनी सहमति ऐसे ही नहीं दी है। देश उसी राह पर चलकर तरक्की कर सकता है जब विकास गांव से शहर की ओर जाए।छत्तीसगढ़ राज्य में 60% से ज्यादा लोग ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण जीवन के सहारे हैं। वे यदि तरक्की करते हैं तब राज्य तरक्की के रास्ते पर जाएगा। पिछले 15 साल भाजपा सरकार ने तरक्की का जो मॉडल अपनाया वह कागज में और महानगरों में चमकने वाला ज्यादा था।यही वजह है कि नई राजधानी आज भी वीरान पड़ी है। शहरों में औद्योगिक क्षेत्रों की चिमनियां बुझी हुई हैं। रतनजोत से कार चलाने के सपने हवा हो चुके हैं।भूपेश बघेल ने उल्टी राह चुनी। इसीलिए लोगों ने उनकी बातों को शुरू में मजाक में लिया। योजनाओं में खामियां हो सकती हैं पर खामियों के कारण योजना को ही दरकिनार नहीं किया जा सकता।सच कहें तो गौठान, गोबर किसानों को और युवाओं को जैविक खेती की ओर ले जाएंगे।यदि चार-पांच बरस इस मॉडल पर गंभीरता से काम किया जाएगा तो गौठान आबाद हो सकते हैं और गोबर के बाय प्रोडक्ट को नया बाजार मिल सकता है। जिस तरह ग्रामीण विकास को ध्यान में रखकर राज्य सरकार स्व सहायता समूह से एमओयू करवा रही है उससे अच्छा संकेत मिल रहा है। वर्मी कंपोस्ट का भंडार तैयार हो रहा है। गोपालको को अच्छी खासी रकम मिल रही है। आलोचना करने वालों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर पुरानी सरकारों ने गोपालको के खाते में पैसा क्यों नहीं दिया। यदि उनकी योजनाएं सफल थी तो किसी गरीब किसान के खाते में रकम क्यों नहीं गई। यह संतोष का विषय है कि गांव तक सरकार का पैसा पहुंचने लगा है। और जो वर्मी कंपोस्ट है वह कहीं ना कहीं जरूर उपयोग में लाई जाएगी। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कि सकारात्मक सोच भूपेश मॉडल को सफलता की राह दिखा सकती है। नितिन गडकरी ने पेंट बनाने में गोबर के उपयोग का सुझाव दिया है। यदि यह कारगर हो गया तो गोबर का एक नया बाजार तैयार हो जाएगा। छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन योजना का फायदा पशुपालकों को मिलने वाला है। पशुपालकों के लिए मवेशी पहले बोझ लगते थे लेकिन यदि चारे की व्यवस्था हो जाए तो मवेशी गांव के लिए पोषक का काम करेंगे। सरगुजा और जांजगीर जिले में स्व सहायता समूह की महिलाएं जैविक खेती की दिशा में अच्छा काम कर रही हैं। इसी दिशा में काम करते हुए सिक्किम की तरह छत्तीसगढ़ को भी जैविक कृषि के क्षेत्र में मॉडल बनाया जा सकता है। बिलासपुर जिले में भी स्व सहायता समूह अच्छा काम कर रहे हैं।यदि उन्हें विशेषज्ञों से मदद मिल जाए तो कृषि क्षेत्र के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती है।

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