हिन्दूओं के लिये सनातनी शिक्षा आवश्यक – पुरी शंकराचार्य

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हिन्दूओं के लिये सनातनी शिक्षा आवश्यक – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 09 अक्टूबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठ उड़ीसा के 145 वें वर्तमान शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श के विलोप होने के कारणों को स्पष्ट करते हुये संकेत करते हैं कि सनातन वैदिक आर्य हिन्दुओं का उदात्त सिद्धांत प्राय: ग्रन्थों तक सीमित रह गया है। कूटज्ञ मेकाले की चलायी गयी शिक्षा और तदनुकूल जीविका पद्धति ने संयुक्त परिवार को प्राय: विखण्डित कर दिया है। संयुक्त परिवार के विखण्डित होने के कारण सनातन कुलधर्म , जातिधर्म , वर्णधर्म , आश्रमधर्म , कुलदेवी , कुलदेवता , कुलपुरोहित , कुलवधू , कुलधर्म , कुलपुरूष , कुलाचार , कुलोचित जीविका तथा कुलीनता का द्रुतगति से विलोप हो रहा है। सनातन संस्कृति में सबको नीति तथा अध्यात्म की शिक्षा सुलभ थी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नीति तथा अध्यात्मविहीन साक्षरता को प्रश्रय और प्रोत्साहन प्राप्त होने पर भी परिश्रम के प्रति अनभिरुचि और न्यायपूर्वक जीविकोपार्जन के प्रति अनास्था के कारण बेरोजगारी , आत्महत्या में प्रवृत्ति , आक्रोश और चतुर्दिक् अराजकतापूर्ण वातावरण महामत्स्य न्याय को प्रोत्साहित कर रहा है।

आर्थिक विपन्नता , कामक्रोध की किंकरता और लोभ की पराकाष्ठा ने मनुष्यों को पिशाचतुल्य उन्मत्त बनाना प्रारम्भ किया है। धन , मान , प्राण , तथा परिजन में समाशक्त तथा पार्टी और पन्थों में विभक्त हिन्दू अपने अस्तित्व और आदर्श को एवम् भारत के महत्त्व को सुव्यवस्थित रखने में सर्वथा असमर्थ है। सन्धि , युद्ध , आक्रमण , आत्मरक्षा , कपट और मित्रों के सहयोग से शत्रुजय संज्ञक छै राजगुणरूप षड्यन्त्र कारियों द्वारा छलबल समन्वित सामने ,दान , दण्ड , भेद , उपेक्षा , इन्द्रजाल और माया के विवश हिन्दू हतप्रभ,मूर्छित तथा मृतप्राय हो चुका है। सत्तालोलुपता और अदूरदर्शिता के कारण दिशाहीन शासनतन्त्र तथा व्यापारतन्त्र के वशीभूत हिन्दुओं के द्वारा ही हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श का द्रुतगति से अपहरण हो रहा है।

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