तकनीकी ने जीवन शैली को ही परिवर्तित कर दिया, आज सोशल मीडिया एक दूसरे को जोड़ने का मुख्य माध्यम :राम बालक

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तकनीकी ने जीवन शैली को ही परिवर्तित कर दिया, आज सोशल मीडिया एक दूसरे को जोड़ने का मुख्य माध्यम :राम बालक

भुवन वर्मा बिलासपुर 9 अक्टूबर020

पाटेश्वर धाम ।विज्ञान और और तकनीकी युग में, हर क्षेत्र में विज्ञान का हस्तक्षेप विदित है, और तकनीकी ने जीवन शैली को ही परिवर्तित कर दिया है, आज सोशल मीडिया एक दूसरे को जोड़ने का सबसे बड़ा साधन बन गया है, जीवन का कोई भी क्षेत्र हो चाहे वह, सामाजिक हो राजनीतिक हो या धार्मिक हो सभी क्षेत्रों में तकनीकी का भरपूर उपयोग हो रहा है इसी तकनीकी का उपयोग करते हुए पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी ने सभी को धार्मिक दृष्टिकोण से एक साथ जोड़ कर अपने अद्भुत ज्ञान से सबके मन हृदय को प्रकाशित कर दिया है वे प्रतिदिन अपने वाट्सएप ग्रुपों में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन करते हैं साथ ही 3 महीने से अपने यूट्यूब चैनल
rambalakdas
पर संध्या 4:00 बजे बाबा जी की पाती अद्भुत कार्यक्रम की प्रस्तुति की जाती है एवं अभी पुरुषोत्तम मास में पूरे एक माह से पुरुषोत्तम मास की कथा का प्रतिदिन 2:00 से 5:00 बजे यूट्यूब पर लाइव प्रसारण किया जाता है, प्रतिदिन की भांति आज भी सीता रसोई संचालन ग्रुप में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन श्री पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा किया गया इसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कीये
सत्संग परिचर्चा में मनीषा गुप्ता जी चौकी ने मल मास से संबंधित जिज्ञासा रखते हुए बाबा जी से कहा कि मलमास की कथा में भगवान विष्णु एवं श्री कृष्ण जी को एक साथ बताया गया है, गुरुदेव यह कैसे संभव है इस विषय को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि आजकल हमारे हिंदू धर्म के हर पर्व पर कथा पुस्तके बाजार में उपलब्ध है और इन पुस्तकों का कोई औचित्य और पुरातन वेद शास्त्रों से लेना देना ही नहीं है यह अपनी सुविधाओं से लिखा गया है, और इसमें कथा रचनाकार को जिस भी चीज की आवश्यकता पड़ी उसे दान रूप मे कथा पुस्तकों पर लिख दिया गया है अतः आप इस तरह के कथा पुस्तकों पर कभी विश्वास न करें
भगवान श्री कृष्ण और विष्णु भगवान के एक साथ आने का प्रसंग अगर आता है तो ऐसा नहीं कि भगवान विष्णु ने राम अवतार और कृष्ण अवतार लिया है तो उनका स्थान रिक्त हो जाएगा वे उनके अंश है, इसे हम रामचरितमानस मे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जिसमें भगवान विष्णु के दशावतार में से एक परशुराम जी और पूर्ण रूप अवतार भगवान श्री राम जी के एक साथ आने का वर्णन हमें मिलता है वे एक समय में कई जगह प्रकट हो सकते,है भगवान श्री कृष्ण की 16000 पटरानी थी
श्री कृष्ण पति रूप में हर पटरानी के समक्ष उपस्थित रहते थे अतः भगवान की लीला अपरंपार है
रामेश्वर वर्मा जी भीम पुरी ने जिज्ञासा रखी की राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल ।।जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ।। इस पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरुदेव, रामचरितमानस के इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि विवेक का जागरण सत्संग से होता है और सत्संग मिलन सद्गुरु की कृपा से होता है रामचरितमानस में राम नाम की महिमा बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि राम नाम स्वयं नरसिह रूप हैं, कलयुग में राम नाम का बहुत अधिक महत्व है, भक्त पहलाद जो हर क्षण हर घड़ी भगवान राम का नाम जपता था उनका सुमिरन करता था, तो उसे हिरण्यकश्यप के त्रास और वेदना से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान ने नरसिंह भगवान का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया इसी प्रकार जो भी कलयुग में भगवान श्री राम का नाम लेता है सुमिरन करता है तो भगवान श्रीराम उसे अपनी शरण में लेते हैं और उसे सहारा प्रदान करते हैं
रोम साहू भरदा कला ने जिज्ञासा रखी की कहते हैं सीता स्वयंवर मे दस हजार राजा एक साथ धनुष को तोड़ने के लिए उठाने का प्रयास करते हैं। तो सभी उस छोटे से धनुष को एक साथ कैसे पकड सकते हैं।, रामचरितमानस में सीता जी के स्वयंवर में धनुष यज्ञ के विषय को स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि धनुष यज्ञ से संबंधित संतो के तीन मत है प्रथम मत में स्पष्ट किया गया है कि इस स्वयंवर में रावण बाणासुर और सहस्त्रार्जुन उपस्थित थे, रावण जो कि 10 शीश वाला और 20 हस्त वाला था तो सहस्त्र अर्जुन, की 1000 भुजाएं थी, और शिव जी के धनुष को उठाने के लिए रावण और सहत्रार्जुन ने एक साथ प्रयास किया था इसीलिए तुलसीदास जी ने चौपाई में वर्णित किया कि” भूप शस्त्र दस ” यहां पर सहस्त्रार्जुन और 10 से 10 सिर वाला रावण के होने का वर्णन मिलता है यह एक साथ प्रयास किए फिर भी शिवजी का धनुष नहीं उठा पाए
दूसरा मत है कि वह बहुत से राजा एकत्रित हुए जो कि सीता जी के स्वयंवर में उस धनुष को तोड़ने के लिए प्रयास कीये, तो उसमें एक राजा सहस्त्र दस भी हुआ तो “भूप सहस्त्र दश एक ही वारा ” मैं उसके नाम का वर्णन मिलता हैं
तीसरे मत में संत ने स्पष्ट किया है कि यह धनुष यज्ञ 1 दिन नहीं कई दिन तक चला, जिसमें प्रतिदिन हजारों राजा इस धनुष को उठाने का प्रयास करते रहे और असफल होते रहे, इस प्रकार जिसे हजारों राजा उठाने में असफल रहे उसे भगवान श्रीराम ने एक ही बार में उठा लिया इस का मुख्य कारण यह रहा कि भगवान श्री राम स्वयं धर्म और धर्म ही श्रीराम है
इस प्रकार आज का आनंददायक सत्संग पूर्ण हुआ
जय गोमाता जय गोपाल जय सियाराम पटेस्वर ।

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