आईएएस अधिकारियों की सोच : सच्चाई यह है कि हम कुप्रबंध और अराजकता फैला कर पनपते हैं – प्रशासनिक अधिकारी

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आईएएस अधिकारियों की सोच : सच्चाई यह है कि हम कुप्रबंध और अराजकता फैला कर पनपते हैं – प्रशासनिक अधिकारी

भुवन वर्मा बिलासपुर 28 अगस्त 2020

जाने माने वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण की कलम से,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आईएएस अधिकारियों की सोच सच्चाई यह है कि हम कुप्रबंध और अराजकता फैला कर पनपते हैं -प्रशासनिक अधिकारी

दिल्ली ।दीपाली आईएएस लिखती हैं कि, हम आईएस में सेवा करने के लिए आते हैं पर हम शायद ही कभी सेवक की तरह बर्ताव करते हैं। हमें अकूत धन और विशाल मानव संसाधन सौपे जाते हैं, जबकि इन्हें संभालने की योग्यता हममें नहीं होती क्योंकि हमें वैसा प्रशिक्षण ही नहीं दिया जाता।
हम अपने बारे में, अपनी बुद्धिमता के बारे में और अपने अनुभव के बारे में बहुत ऊंची राय रखते हैं और सोचते हैं कि लोग इसीलिए हमारा सम्मान करते हैं। जबकि असलियत यह है कि लोग हमारे आगे इसलिए समर्पण करते हैं क्योंकि हमें फायदा पहुंचाने या नुकसान करने की ताकत दी गई है। पिछले दशकों में हमने एक आदत डाल ली है कि हम बड़ी तादाद में खैरात बांटने के अभ्यस्त हो गए हैं, चाहे वह वस्तु के रूप में हो या विचारों के रूप में। असलियत यह है कि जो हम बांटते हैं वो हमारा नहीं होता।

हमें वेतन और हस्तक्षेप भारतीय गणतंत्र की अफसरशाही भ्रम और हकीकत सुविधाएं इसलिए मिलती हैं कि हम अपने काम को कुशलता से करें और सिस्टम विकसित करें। सच्चाई यह है कि हम कुप्रबंध और अराजकता फैला कर पनपते हैं क्योंकि ऐसा करने से हम कुछ को फायदा पहुंचाने के लिए चुन सकते हैं और बाकी की उपेक्षा कर सकते हैं। हमें भारतीय गणतंत्र का स्टील फ्रेम’ माना जाता है। सच्चाई यह है कि हममें दूरष्टि ही नहीं होती। हम अपने राजनैतिक आकाओं की इच्छा के अनुसार औचक निर्णय लेते हैं।

हम पूरी प्रशासनिक व्यवस्था का अपनी जागीर की तरह अपने फायदे में या अपने चहेते लोगों के फायदे में शोषण करते हैं। हम काफी ढोंगी हैं क्योंकि हम यह सब करते हुए यह दावा करते हैं कि हम लोगों की मदद कर रहे हैं। हम जानते हैं कि अगर हम ऐसी व्यवस्था बनाएं जिसमें हर व्यक्ति आसानी से हमारी सेवाओं का लाभ ले सके, तो हम फालतू हो जाएंगे।

इसलिए हम अव्यवस्था को चलने देते हैं। हम अपने कार्यक्षेत्र को अनावश्यक विस्तार देते जाते हैं। बिना इस बात की चिंता किए कि हमारे द्वारा बनाई गई व्यवस्था में कुशलता है कि नहीं। सबसे खराब बात यह है कि हम बहुत दिखावटी, दूसरों को परेशान करने वाले और बिगड़ैल लोगों का समूह है। बावजूद इसके हम यह कहने में संकोच नहीं करते कि हम इस देश की जनता के

लिए काम करते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इस देश से हमें कोई लेना देना नहीं है क्योंकि हमारे बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं और हमने जो भी सुख सुविधाएं. इस व्यवस्था में मिल सकती हैं उन्हें अपने लिए जुटा कर अपने सुखी जीवन का प्रबंध कर लिया है। हमें आम जनता के लिए कोई सहानुभूति नहीं होती। हालांकि हम सही प्रकार का शोर मचाने के लिए सतर्क रहते हैं।

अगर इस देश में न्याय किया जाता तो हम बहुत पहले ही विलुप्त हो जाते। पर हम इतने ज्यादा ताकतवर हैं कि हम अपने अस्तित्व को कभी समाप्त नहीं होने देते। क्योंकि हम भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं।

यह लिखते हुए मुझे गर्व है कि दीपाली मेरी छोटी ममेरी बहन हैं, जो हमेशा जनहित में काम करती हैं और अपने स्वार्थ के लिए कोई समझौता नहीं करतीं।

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