मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना सराहनीय कदम – टेसूलाल धुरंधर
भुवन वर्मा बिलासपुर 03 अगस्त 2020
दिल्ली। 34 वर्षों बाद शिक्षा जगत में व्याप्त कमियों को दूर करने व्यापक विचार-विमर्श पश्चात ” नई शिक्षा नीति 2020″ को देश की कैबिनेट ने मंजूरी दे दी हैं। नई शिक्षा नीति के इस मसौदे में शिक्षा को समय की मांग के अनुरूप ढालकर विविध आवश्यक परिवर्तनों को उचित स्थान देते हुए नए कलेवर में प्रस्तुत किया गया है जो कि समर्थ राष्ट्र के नीव की आधारशिला होगी तथा देश को गौरवशाली व आत्म निर्भर बनाने में सहायक होगा।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर आधारित नई शिक्षा नीति में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। जैसे 3 से 8 वर्ष आयु वर्ग( कक्षा-2) तक के बच्चों के लिए गीत, संगीत, खेलकूद पर आधारित फाउंडेशन कोर्स तैयार होगा, इस प्रकार आंगनबाड़ी में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ने का पहली बार प्रयास किया गया है, पूर्व माध्यमिक स्तर पर वोकेशनल कोर्स व कंप्यूटर शिक्षा के साथ ही प्रोफेशनल तथा स्किल डेवलपमेंट की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थानीय स्तर पर इंटर्नशीप देने की व्यवस्था की गई है, मतलब 6वी कक्षा से ही छात्र अपनी पसंद के किसी हुनर को पढ़ाई के साथ अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकता है। कक्षा 9वी में प्रवेश के साथ ही छात्रों को विषय चयन की स्वतंत्रता दी गई है, मतलब अब छात्र पहले जैसे गणित के साथ विज्ञान ही पढे का जमाना नहीं रहा वह चाहे तो गणित के साथ फैशन डिजाइनिंग म्यूजिक या अन्य कोई विषय चुनने स्वतंत्र होगा। इस प्रकार अब विज्ञान वाणिज्य कला आदि संकाय नहीं होगा, वहीं खेलकूद, सामुदायिक सेवा, शिल्प, संगीत एवं योगा जैसे विषयों को पढ़ाई में मुख्य विषय के रूप में सम्मान प्राप्त होगा। उच्च शिक्षा में “मल्टीपल एंट्री व एग्जिट सिस्टम” योजना लागू की गई है, इसका मतलब यह है कि अगर कोई छात्र किसी वजह से बीच में पढ़ाई छोड़ देता है तो वह उसे बाद में भी जारी रख सकता है उसका साल खराब नहीं होगा जैसे कारणवश प्रथमवर्ष पढ़ाई के बाद पढ़ना छोड़ दिया तो सर्टिफिकेट कोर्स व द्वितीय वर्ष पढ़ने के बाद छोड़ दिया तो डिप्लोमा कोर्स का प्रमाण पत्र मिलेगा और जब चाहे तीसरे वर्ष की पढ़ाई करके अपनी डिग्री ले सकता है अभी की व्यवस्था में छात्रों को यह सुविधा नहीं है।
हर स्तर पर परीक्षा के भय से छात्रों को मुक्त रखने का उपक्रम किया गया है सतत् मूल्यांकन, व सेमेस्टर प्रणाली को महत्व दिया गया है इसके अलावा उल्लेखनीय बिंदु और भी हैं जैसे शिक्षा पर राष्ट्रीय जीडीपी का 6% खर्च का प्रावधान रखा गया है जो आज की स्थिति में किए जाने वाले खर्च के हिसाब से दोगुनी होगी, राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है, अभी तक शिक्षा को अलग-अलग संस्थाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता था अब एक ही विनियामक संस्था के द्वारा नियंत्रित किया जाएगा, शासकीय व निजी संस्थाओं के फीस का निर्धारण भी नियंत्रित किया जाएगा, कोई भी निजी संस्थान मनमाने फीस का निर्धारण अब नहीं कर सकेगा, जिससे पालकों को बड़ा राहत मिलने वाला है, हर जिले में कैरियर कला और खेल संबंधी गतिविधियों के लिए विशेष बोर्डिंग स्कूल होगा जिसे “बाल भवन” कहा जाएगा, मिड डे मील के साथ अब नास्ता देने का भी प्रावधान है, उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश हेतु “कॉमन एंट्रेंस एग्जाम” की व्यवस्था की जाएगी, टॉप मोस्ट विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी जिससे लाखों छात्रों का पढ़ाई हेतु विदेश जाना रुक सकेगा।
इन सब निर्णयों के साथ प्राथमिक शिक्षा को 5वी तक मातृभाषा /स्थानीय भाषा में देने का निर्णय अत्यंत सराहनीय कदम है, इस निर्णय से सभी भारतीय बोली भाषाओं को संरक्षण मिलने के साथ ही साथ साहित्य संस्कृति व कला की विधाओं को पोषण तथा प्रोत्साहन मिलेगा जिससे भारतीयता निखरेगी व विविधताओं में एकता की मधुरता का अहसास होगा। इस निर्णय से देश के शिक्षाविदों की मातृभाषा को शिक्षा का आधार बनाने की मंशा पूरी होने पर केंद्र की मोदी सरकार स्वाभाविक बधाई का पात्र है।
अतः अंत में हम कह सकते हैं कि देश की स्वतंत्रता के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने भारतीयता की पृष्ठभूमि में आधुनिकता का पुट देकर ‘नई शिक्षा नीति का’ आगाज किया है, यह शिक्षा नीति भावी भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।
टेसूलाल धुरंधर
पूर्व संगठन मंत्री छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ
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