श्रीराम मंदिर निर्माण के सरकारीकरण पर धर्माचार्यो की सख्त चेतावनी

5

भुवन वर्मा बिलासपुर 27 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — श्रीराम के जन्मभूमि अयोध्या में ज्यों ज्यों भूमिपूजन का समय नजदीक आते जा रहा है। त्यों त्यों हमारे देश के मान्य शंकराचार्य , धर्माचार्य , वैष्णवाचार्य और अखाड़ों के प्रतिनिधि द्वारा श्रीराम मंदिर निर्माण के सरकारीकरण एवं शास्त्रसम्मत विधानों की अवहेलना पर सरकार को भविष्य में होने वालों दुष्परिणामों के लिये आगाह करते नजर आ रहे हैं। लेकिन दिशाहीन शासनतंत्र इस प्रकरण पर अपनी मनमानी करने पर दृढ़ संकल्पित होते नजर आ रही है। इसी कड़ी में मोक्षदायी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिये 05 अगस्त को होने वाले भूमिपूजन के मुहुर्त के संबंध में समर्थन विरोध के क्रम में निर्मोही अखाड़ा के राष्ट्रीय प्रवक्ता महंत सीताराम दास ने कहा कि देवशयन के पश्चात कोई शुभ मुहुर्त नहीं होता है । वहीं श्रीराम मंदिर आंदोलन में निर्मोही अखाड़े की 500 वर्षों के संघर्ष का इतिहास है अतः भूमिपूजन का पहला अधिकार निर्मोही अखाड़ा का है। मंदिर निर्माण का कार्य शंकराचार्यों , अखाड़ों , संतों को सौंपते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी संरक्षण करें। राजा का कार्य धर्म की रक्षा करना होता है , धर्माचार्य बनना नही। इसी तरह द्वारिका एवं बद्रीकाश्रम पीठ के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीस्वरूपानन्द सरस्वती जी का मानना है कि श्रीराम मंदिर निर्माण का अधिकार केवल रामालय ट्रस्ट को है तथा भूमिपूजन के लिये 05 अगस्त को कोई भी शुभ मुहुर्त नहीं है। इसकी अगली कड़ी में ज्योतिष एवं द्वारिकापीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य के कृपापात्र शिष्य दंडीस्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने कहा है कि जिन मुसलमानों से 500 से अधिक वर्षों से हम लड़ते रहे , जिन्होंने हमारे मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने की कोशिश की। तीन लाख से अधिक लोगों के बलिदान के बाद 500 वर्षों में मंदिर निर्माण का यह मौका आया है। जिन मुसलमानों ने हमारे मंदिर को तोड़ा उनके हाथ से हम आधारशिला कैसे रखवायेंगे ? मुसलमानों ने हमारे मंदिर तोड़े आज भी काशी में विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर उनका कब्जा है। हम अपने मूल मंदिरों में पूजा नहीं कर पा रहे हैं। उनके धर्म स्थान मक्का में गैर-मुस्लिम को 40 किलोमीटर पहले ही रोक दिया जाता है , वहांँ पर कोई गैर-मुस्लिम प्रवेश नहीं कर सकता। अयोध्या में कोई सर्वधर्म सम्मेलन नहीं हो रहा है , हमारे सनातनियों के आस्था के केन्द्र भगवान श्रीरामचन्द्र जी का मंदिर बन रहा है। किसी व्यक्ति से , किसी मुस्लिम से हमारा विरोध नहीं है। लेकिन मुसलमानों ने ही हमारी मंदिर तोड़ी , आज भी विभिन्न मंदिरों पर काबिज है। हमारा मानना है कि किसी गैर हिन्दू को यदि श्रीराम जी में , हमारी गौमाता में आस्था है तो पहले अपने पूर्वजों के कर्मों का प्रायश्चित करें , गौमांँस का भक्षण करने वालों से नाता तोड़कर हिन्दू धर्म स्वीकार करे तभी उसकी आस्था प्रमाणित होगी। धार्मिक स्थान के निर्माण में किसी धर्मनिरपेक्ष सरकार को नहीं आना चाहिये क्योंकि धर्म की बारीकियांँ धर्मनिरपेक्ष सरकार या उनके अधिकारी नहीं जान सकते । अतः मंदिर निर्माण का कार्य चार मान्य शंकराचार्यों , पांँच वैष्णवाचार्यो एवं तेरह अखाड़ों को सौंपना चाहिये। वहीं श्रीगोवर्धन मठ पुरी के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी पहले भी मंदिर मस्जिद दोनों बनने की शर्त के कारण रामालय ट्रस्ट पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। उनका मानना है कि इन 25 वर्षों में सिर्फ इतना परिवर्तन हुआ है कि पहले अगल बगल मंदिर मस्जिद निर्माण की बात थी तो वर्तमान में मस्जिद निर्माण के लिये अयोध्या के बाहर भूमि दी जा रही है। पुरी शंकराचार्य जी का मानना है कि भारत के भविष्य की दृष्टि से भारत भूमि पर कहीं भी बाबर के नाम से मस्जिद निर्माण की अनुमति नहीं मिलना चाहिये। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि भारतवर्ष में हम भविष्य के लिये एक और मक्का निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।अपने नवीनतम वक्तत्व में पुरी शंकराचार्य जी ने लिखा है कि श्रीरामभद्र के मन्दिर- निर्माण के प्रकल्प का पूर्ण स्वागत है ; तथापि धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प का सेकुलरकरण सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण अवश्य है। वहीं भूमिपूजन के लिये कटिबद्ध सत्तापक्ष की मान्यता है कि कोरोना महामारी के प्रतिबंधात्मक समय से अच्छा शुभमुहूर्त हो ही नहीं सकता क्योंकि इस समारोह में वही अधिकृत संत , महात्मा , राजनीतिज्ञ भाग ले सकते हैं जिसको प्रशासन अनुमति देगा। आध्यात्मिक आचार्य गण लौकिक पारलौकिक हितों को देखते हुये शुभ अशुभ की बात करते हैं वहीं राजनीतिज्ञ की सोच जिनके लिये सत्ताधर्म ही सर्वोपरि होता है तात्कालिक लाभ व दूरदृष्टि आगामी होने वाले चुनाव के संदर्भ में रखकर की जाती है चूंँकि उनको प्रजातंत्र में आमजनता के भावनाओं पर भरोसा होता है।

About The Author

5 thoughts on “श्रीराम मंदिर निर्माण के सरकारीकरण पर धर्माचार्यो की सख्त चेतावनी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *