सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व का पर्व : आदर्श नारीत्व का प्रतीक वट सावित्री व्रत

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सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व का पर्व : आदर्श नारीत्व का प्रतीक वट सावित्री व्रत

भुवन वर्मा बिलासपुर 10 जून 2021

अरविन्द तिवारी

नई दिल्ली – वैसे तो हिन्दू धर्म में अनेकों पर्व और त्यौहार उत्साह पूर्वक मनाये जाते हैं मगर वट सावित्री का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिये खास महत्व रखता है। ये त्योहार उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या ही वट सावित्री अमावस्या कहलाती है। इस दिन शनि जयंती मनाने की भी परंपरा है। वट सावित्री व्रत को कुंवारी और विवाहित दोनों ही महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इसमें जहां कुंवारी कन्यायें इच्छानुसार वर की कामना के लिये ये व्रत करती हैं, तो वहीं शादीशुदा महिलायें अपने अखंड सौभाग्य और परिवार की समृद्धि के लिये इस व्रत को रखती हैं। जो पत्नी इस व्रत को सच्ची श्रद्धा के साथ करती है उसे ना केवल पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। आज के दिन सौभाग्यवती महिलायें सोलह श्रृंगार करके बरगद , पीपल , के पेड़ की विधिवत पूजा कर पेंड़ के तने के चारो ओर पीले रंग का पवित्र कच्चा धागा एक सौ आठ बार बांधती और फेरे लगाती हैं ताकि उनके पति दीर्घायु हों। प्यार , श्रद्धा और समर्पण का यह भाव हमारे देश में सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी के लिये प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना जाता है। वटवृक्ष दीर्घायु , अमरत्व , ज्ञान , निर्वाण का भी प्रतीक है । इस कारण पति की दीर्घायु और अपनी अपनी अखंड सौभाग्यवती के लिये वटवृक्ष का पूजा , आराधना इस व्रत का मुख्य अंग बन गया है। तत्पश्चात वट सावित्री की कथा सुनती हैं और पूजन समाप्ति पर घर के बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद लेती हैं। बिना कथा सुने यह व्रत अधूरा माना जाता है। इस व्रत की कथा के अनुसार इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी।

जानें वट सावित्री व्रत कथा

भद्र देश के अश्वपति नाम के एक राजा थे जिनकी कोई संतान नही थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिये मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। काफी लंबे समय से राजा अपनी बेटी सावित्री के लिये एक उपयुक्त वर खोजने में असमर्थ था तो इस प्रकार उसने सावित्री को अपना जीवनसाथी स्वयं खोजने के लिये कहा। अपनी यात्रा के दौरान सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पाया।

वट वृक्ष का महत्व

पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि वट का वृक्ष त्रिमूर्ति को दर्शाता है। इसकी जड़ों में भगवान ब्रह्माजी , तने में विष्णुजी और पत्तों में शिवजी का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन करने , व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। भगवान बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। अत: वट वृक्ष को ज्ञान , निर्वाण व दीर्घायु का पूरक भी माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रयाग के अक्षयवट , नासिक के पंचवट , वृंदावन के वंशीवट , गया में गयावट और उज्जैन के सिद्धवट। इन पाँचों वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है।

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