श्रीगोवर्धन मठ पुरी का युवाओं के लिये प्रकल्प — आदित्यवाहिनी

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भुवन वर्मा बिलासपुर 30 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — आज भारत की जनसंख्या में लगभग आधी आबादी युवाओं की है। युवा वर्ग के पास शिक्षा , हुनर , कला , श्रमशक्ति उपलब्ध है किन्तु उनको सही मार्ग नहीं दिखता कि इन योग्यताओं का वह स्वयं , परिवार , समाज एवं राष्ट्र के उत्कर्ष के लिए किस प्रकार उपयोगिता सिद्ध करें। ऐसी अवस्था में यदि युवा वर्ग श्रीगोवर्धन मठ पुरी के प्रकल्प आदित्यवाहिनी के संयोजन के मूल भावना को समझकर इससे जुड़ता है तो स्वयं स्वावलंबी व सुबुद्ध बनकर अन्यों के लिये भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है। आईये जानते हैं कि श्रीगोवर्धन मठ पुरी क्या है ? इसके प्रकल्प आदित्यवाहिनी से जुड़कर कैसे हम अपने लौकिक और पारलौकिक उद्देश्यों को प्राप्त कर सकेंगे। ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व भगवान आदि शंकराचार्य जी महाभाग का प्रादुर्भाव हुआ था । तात्कालिन बौद्ध धर्म की बहुलता के समय उन्होंने सनातन धर्म को पुनर्स्थापित किया था तथा अपने जीवन काल में सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिये सम्पूर्ण भारतवर्ष को चार भागों में विभक्त करके अपने चिन्मय करकमलों द्वारा चार मान्य पीठ की स्थापना करके अपने प्रमुख शिष्यों को शंकराचार्य के पद पर आरूढ़ कराया था , तब से इन चारों मान्य पीठों में शंकराचार्य परंपरा चली आ रही है। भारत के पूर्वी भाग पुरी उड़ीसा में स्थित श्रीगोवर्धन मठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मान्य पीठों में से एक है । वर्तमान में ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरी में श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी पीठ के 145 वें शंकराचार्य के रूप में विराजमान मान है । जब हम सृष्टि की , सम्पूर्ण विश्व की , यहांँ के समस्त प्राणियों के कल्याण की भावना रखते हैं यह तभी संभव है जबकि हम सनातन संस्कृति का आलंबन लें। हमारे वेदादि शास्त्रों में निहित ज्ञान विज्ञान वर्तमान वैज्ञानिक , दार्शनिक एवं व्यावहारिक धरातल पर आज भी प्रासंगिक है तथा इस कम्प्यूटर , मोबाईल , ऐटमबम के युग में भी इनकी उपयोगिता सर्वोत्कृष्ट है। पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी इस पद पर प्रतिष्ठित होने के पूर्व धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्री जी महाराज के दीक्षित शिष्य होकर उनसे धर्म , अध्यात्म , गोरक्षा , राष्ट्ररक्षा , व्यासपीठ एवं शासनतन्त्र का शोधन आदि विषयों पर कार्य हेतु आशीर्वाद प्राप्त किया। स्वामी श्रीकरपात्री जी ने राजसत्ता के शोधन हेतु रामराज्य परिषद का गठन किया था , उन्हीं के प्रेरणास्वरूप समाज के सभी धर्मप्रेमी , राष्ट्रप्रेमी महानुभावों को एक संगठन के रूप में मंच प्रदान करने के पावन उद्देश्य से वर्तमान पुरी शंकराचार्य जी ने धर्मसंघ पीठ परिषद् की स्थापना की है ।धर्मसंघ पीठ परिषद के अंतर्गत आदित्यवाहिनी , आनन्दवाहिनी , राष्ट्रोत्कर्ष समिति , हिन्दू राष्ट्रसंघ, सनातन सन्त समिति कार्य करती है। इसमें 05 से 14 वर्ष तक के बालक बाल आदित्यवाहिनी , 14 से 45 वर्ष तक के युवक आदित्यवाहिनी तथा उसके ऊपर के आयु के सज्जन पीठ परिषद के सदस्य होते हैं। ठीक इसी प्रकार 05 से 14 वर्ष तक की आयु की बालिका बाल आनन्दवाहिनी के सदस्य तथा 14 से लेकर 45 वर्ष तक की मातृशक्ति आनन्दवाहिनी की सदस्या होती है । धर्मसंघ पीठ परिषद , आनन्द वाहिनी और इनसे संबद्ध संगठन प्रेरकमंडल , मार्गदर्शकमंडल का कार्य करते हैं , युवा शक्ति आदित्य वाहिनी का कार्य होता है पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी के संदेशों के अनुसार संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिये धर्म ,अध्यात्म , राष्ट्र रक्षा के साथ साथ स्वयं के लौकिक पारलौकिक उत्कर्ष की भावना से स्वयं को प्रस्तुत करना है। संस्था का उद्देश्य है कि अन्यों के हित का ध्यान रखते हुये हिन्दुओं के अस्तित्व एवं आदर्श की रक्षा , देश की एकता , अखण्डता तथा सुरक्षा के लिये कार्य करना। अब प्रश्न यह उठता है कि आदित्यवाहिनी से जुड़कर उपरोक्तानुसार कार्य कैसे करें ? किसी पुनीत कार्य , समष्टि कार्य को करने के लिये आत्मबल आवश्यक है , इसको प्राप्त करने के लिये प्रतिदिन लगभग सवा घंटे की उपासना की आवश्यकता है जो कि प्रंदह प्रंदह मिनट के रूप में भी प्रात: , स्नानोपरांत , दोपहर , सायं एवं रात्रि को किया जा सकता है। आत्मबल से युक्त आदित्यवाहिनी के सदस्य सांगठनिक रूप में कार्य करें क्योंकि इस कलिकाल में संगठन में ही शक्ति निहित होती है। प्रतिदिन प्रत्येक हिन्दू परिवार से एक रूपया एकत्रित कर एवं एक घंटा समयदान, श्रमदान के रूप में देकर उस क्षेत्र को सनातन मानबिन्दुओं के अनुरूप स्वावलंबी , समृद्ध , सुबुद्ध बनाने का कार्य करना है । ध्यान रहे एकत्रित राशि का उपयोग एवं श्रमदान उसी क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण , नदी – नालों व तालाबों का संरक्षण एवं निर्मलीकरण , वृक्षारोपण , देसी गोवंश संरक्षण , मठ – मंदिरों का जीर्णोद्धार – रखरखाव , क्षेत्रवासियों को स्वरोजकार प्रदान करने एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिये क्षेत्रीय आवश्यकतानुसार कुटीर उद्योगों के लिये प्रशिक्षण की व्यवस्था , संगोष्ठी के माध्यम से सनातन संस्कृति अनुरूप संयुक्त परिवार की आवश्यकता पर जनजागरण तदानुसार कुलदेवी , कुलदेवता , कुलगुरू , कुलपरंपरा का महत्त्व प्रतिपादित करना , नैतिक शिक्षा के माध्यम से बच्चों में प्रारंभ से ही संस्कार स्थापित करना , प्रतिभाओं के लिये खेलकूद , सांस्कृतिक , आध्यात्मिक गतिविधि का आयोजन कराना , स्वास्थ्य परीक्षण , निर्धन , असहाय , दिव्यांग की सहायता की भावना जैसे अनेक प्रकल्प संभव हो सकते हैं। प्रत्येक सप्ताह सभी की सुविधा की दृष्टि से समय निर्धारित कर मठ मंदिर या सार्वजनिक स्थान पर सामूहिक संकीर्तन का आयोजन इससे संगठन के सभी सदस्यों का आपस में मेल-मिलाप होगा , भगवत भजन से आध्यात्मिक बल मिलेगा। सामयिक विषयों पर चर्चा तथा भावी क्रियान्वयन के लिये भी चर्चा की जा सकती है। धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज का कथन है कि समष्टि हित की भावना मनुष्य को ईश्वर कल्प बना देता है , समष्टि हित की भावना से कार्य करने से ही स्वयं का हित संभव है क्योंकि समष्टिहित में ही व्यष्टहित समाहित है। जब हम राजनीति या शासनतन्त्र की बात करते हैं तो भावना यह होती है कि सबको बराबर का अवसर मिले ,ऐसी व्यवस्था हो कि सबकी हित की भावना हो। यह सनातन संस्कृति के अनुकरण में ही संभव है कि जब हम रामराज्य के रूप में धर्मनियन्त्रित , पक्षपातविहीन , शोषणविनिर्मुक्त , सर्वहितप्रद शासनतन्त्र की स्थापना की देश में संकल्पना करें। शास्त्रसम्मत एवं वैदिकपरक राजनीति की विश्वस्तर पर चर्चा करते हुये पुरी शंकराचार्य जी का कथन है कि सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , संपन्न , सेवापरायण , स्वस्थ एवं सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना ही राजनीति की विश्व स्तर पर शुद्ध परिभाषा हो सकती है। ऐसी स्थिति में वैदिक सिद्धांत में आस्थान्वित समस्त महानुभावों का परम दायित्व होता है कि वे सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर द्वारा प्रतिपादित वैदिक सिद्धांत की अर्थात सनातन मानबिन्दुओं की रक्षा के लिये पूज्यपाद श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पुरीपीठाधीश्वर महाभाग के संगठनों , अभियानों से जुड़े। सुशीलता , सक्रियता , सूझबूझ का परिचय देकर नीति और अध्यात्म का प्रशिक्षण लें , भारत तथा विश्व के मंगलमय स्वरूप को उद्भासित करें। धर्मप्राण देश भारत में धर्म एक आवश्यक तथ्य है, लेकिन वर्तमान काल में हिन्दू जनमानस इससे दूर होता दिख रहा है। जैसे किसी को अच्छे चिकित्सक का पता ना हो तो वो किसी फर्जी चिकित्सक के चपेट में आ जाता है, जो उनके स्वास्थ्य , सम्पत्ति और समय के लिये घातक ही सिद्ध होता है। वैसे ही परम्पराप्राप्त आचार्यों का पता न होने पर व्यक्ति धर्म के नाम पर ऐसी जगह चला जाता है , जहांँ पर उसके आस्था, विश्वास, श्रद्धा, सम्पत्ति व समय का क्षरण होता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक हिन्दू परिवार का दायित्व होता है कि वो शास्त्रोचित धार्मिक आचरण, धार्मिक ज्ञान व धर्म के ऊपर आ रहे खतरों से निबटने के लिये गोवर्धनमठ पुरी से जुड़े। जहाँ सनातन धर्म के सर्वोच्च आचार्य शिवावतार श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज का सान्निध्य सर्वदा सुलभ रहता है।
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