पोहा मिलो में बायोमास यूनिट : न राख न धुंआ, सॉलि़ड वेस्ट भी कम
भुवन वर्मा बिलासपुर 26 जून 2020
कोयला धान भूसा की जगह एस्टेला का उपयोग
भाटापारा- पोहा मिलो की चिमनियां अब राख युक्त धुंआ नहीं उगलेंगी। बढ़ते प्रदूषण और हो रही परेशानी को देखते हुए मिलों ने बायोमास यूनिट लगवाने का काम चालू कर दिया है। फिलहाल आधा दर्जन पोहा मिलों में इस बायोमास यूनिट का सफल संचालन हो रहा है। इसे देखते हुए शहर की कई पोहा मिलो ने इस यूनिट की स्थापना को लेकर दिलचस्पी दिखाई है और संबंधित निर्माता कंपनी से संपर्क साधा है।
शहर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही पोहा मिलो की चिमनियों से निकलने वाला राख युक्त धुआं पहले से कई तरह की दिक्कतें देता रहा है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां वे स्थापित है। साथ ही यूनिटों के किनारों से गुजरने वाली सड़कों से निकलने वाले राहगीर सबसे ज्यादा परेशान होते रहे हैं। इसी तरह मिलो से निकलने वाली राख के निपटान को लेकर भी बरती जा रही लापरवाही को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अब इन सब का निपटारा एक साथ करने की कोशिश के बीच एक ऐसी यूनिट खोज निकाली गई है जिसकी स्थापना और परिचालन से ना तो चिमनियों से राख निकलेगी और ना ही ठोस अपशिष्ट निकलेगा। इसे बायोमास यूनिट के नाम से जाना जाता है जो आधा दर्जन से ऊपर की संख्या में पोहा मिलो में सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
कोयला और भूसा नहीं
पोहा मिलो ने जिस बायोमास यूनिट की स्थापना की है और परिचालन करना चालू किया है उसमें कोयला या धान भूसा या कोढा की बजाय एस्टेला का उपयोग किया जाता है। बायोमास के बर्नर में एस्टेला डाले जाने के बाद यह तेज ऊर्जा देती है और एक क्विंटल एस्टेला जलने के बाद केवल 2 किलो ही राख छोड़ती है। यह आसानी से सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत व्यवस्थित किया जा सकता हैः
किसमें कितनी राख
पोहा मिलो की भठि्ठयां जलाने के लिए आमतौर पर धान भूसा या कोढा का उपयोग किया जाता है। इसमें भी पोहा मिलो की पहली पसंद धान भूसा ही है क्योंकि वह हर काम के लिए आसान संसाधन है। लेकिन कोयला का उपयोग तेजी से कम हो चला है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लगातार नोटिसों के बाद तेजी से बायोमास यूनिट लगाई जा रही है। इसके बाद आने वाले कुछ सालों मे चिमनियां न तो राख उगलेंगी ना धुआ निकलेगा। क्योंकि इसमें कोयला और भूसा नहीं बल्कि एस्टेला का उपयोग होगा। बता दे कि कोयला में 18 प्रतिशत राख निकलती है तो धान भूसा मे भी राख की मात्रा इतनी ही होती है। जबकि एस्ट्रेला में महज दो प्रतिशत ही राख का निकलना पाया गया है।
इतनी है लागत
शहर की पोहा मिलो में सबसे पहले बायोमास यूनिट की स्थापना करने वाली संस्थान में महादेव पोहा उद्योग के संचालक शंकर किंगरानी ने बताया है कि गुजरात की जिस कंपनी के माध्यम से यह बायोमास यूनिट लगाई गई है उसकी लागत 5 लाख 50 हजार रुपए है। लागत भले ही दूसरी पोहा मिलो को ज्यादा लग सकती है लेकिन इसके जो फायदे हैं वह दूरगामी और सुखद परिणाम देने वाले हैं। श्री किंगरानी ने बताया कि परिचालन में धान भूसा और कोयला की जगह एस्टेला याने काजू का छिलका उपयोग किया जाता है। उसकी कीमत लगभग 850 रुपए क्विंटल पड़ती है। और वह जलने के बाद महज 2 फ़ीसदी राख छोड़ती है। इस तरह चिमनियों से ना तो धुआं निकलेगा ना राख और ना इसकी ज्यादा मात्रा। जिसकी वजह से सॉलिड वेस्ट की मात्रा भी घटाई जा सकती है।।
” पोहा मिलो में बायोमास यूनिट की स्थापना बहुत अच्छी पहल है। इससे राख और धूएं से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। सभी संस्थानों को इस सिस्टम को लगाने का आग्रह किया जा रहा है ” – कमलेश कुकरेजा, संरक्षक, पोहा मिल एसोसिएशन,भाटापारा।
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