जिंक राईस -1 और गोल्डन राइस के बाद : अब बायोफोर्टीफाइड गेहूं और मक्का

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भुवन वर्मा बिलासपुर 26 जून 2020

दूर की जा सकेगी प्रोटीन, आयरन जैसे 22 सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को

महासमुंद- महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की आवश्यकता के लिए दवाइयों का सहारा लेने से अब बहुत जल्द छुटकारा मिलने जा रहा है। धान और गेहूं के बाद कृषि वैज्ञानिक मक्का बाजरा और गेहूं की ऐसी प्रजाति तैयार करने में सफलता पाने के करीब पहुंच चुके है जो आयरन और प्रोटीन की कमी जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में मददगार बनेगी। इनमें धान में छत्तीसगढ़ जिंक राईस -1 पहुंच चुकी है तो गोल्डन राइस बहुत जल्द खेतों तक पहुंचेगा। इसे बायोफोर्टीफाइड धान के नाम से जाना जाएगा।
कुपोषण अब प्रदेश और देश की सीमा से निकलकर विश्व स्तर पर पहुंच फैल चुका है।

अनेक तरह की दवाइयों की उपलब्धता के बीच आखिरकार यह पाया गया कि जब तक दैनिक आहार में सूक्ष्म पोषक तत्व की उपलब्धता आसान नहीं की जाएगी तब तक इस समस्या से निजात पाना संभव नहीं है। इसलिए कृषि वैज्ञानिकों की मदद लेने का फैसला किया गया। देश विदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने इस पर काम चालू किया। प्रदेश स्तर पर इस महत्वपूर्ण काम की जिम्मेदारी संभाली इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने। जेनेटिक प्लांट्स एंड ब्रीडिंग सेंटर ने इस पर जो अनुसंधान किया उसके बाद जो पहला बायोफोर्टीफाइड धान तैयार हुआ उसे छत्तीसगढ़ जिंक राइस- वन के नाम से पहचान मिली। धान की यह प्रजाति जिंक की कमी को पूरा करती है। इस सफलता के बाद रिसर्च का दायरा और बढ़ाया गया और अब गोल्डन राइस बहुत जल्द किसानों तक पहुंचने वाला है।

इसलिए बायोफोर्टिफिकेशन
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए 22 प्रमुख खनिज की मात्रा का आहार में होना आवश्यक है लेकिन इनकी कमी की वजह से कुपोषण की समस्या विश्व स्तर पर फैल चुकी है। इससे आर्थिक सामाजिक विकास के रास्ते बंद होते हैं। बाजार में जरूरी दवाइयां तो है लेकिन यह उन परिवारों की क्रय शक्ति से बाहर है जो कुपोषण का सामना कर रहे हैं। लिहाजा ऐसे सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की सहज उपलब्धता के लिए चावल गेहूं मक्का ज्वार और बाजरा में पहुंचाने का जिम्मा कृषि वैज्ञानिकों को दिया गया है जिस में सफलता मिलने लगी है।

ऐसे पहुंचाए सूक्ष्म पोषक तत्व
जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों ने सबसे पहले ऐसी खाद्य सामग्रियों का चयन किया जिनकी आसान पहुंच है। इसमें चावल गेहूं और मक्का के साथ बाजरा मुख्य है। सूक्ष्म पोषक तत्वों में से उस खनिज की पहचान सबसे पहले की गई जिसकी मात्रा इनमें कम थी। बंधनकारी प्रोटीन का पता लगा कर जिम्मेदार जीन को उर्वरक की मदद से पौधों तक पहुंचाया जाता है और इस तरह से यह तत्व जड़ों से होते हुए अनाज तक पहुंचते हैं। इसमें प्रयोग के बाद मिली सफलता से अपने प्रदेश में सबसे पहले जिंक की प्रतिपूर्ति करने वाला धान तैयार किया गया जिसे छत्तीसगढ़ जिंक राइस -वन के नाम से पहचान मिल चुकी है।

अब गेहूं मक्का और बाजरा
धान में छत्तीसगढ़ जिंक राइस- वन के बाद प्रोटीन वाली धान की नई किस्म गोल्डन राइस बहुत जल्द खेतों तक पहुंचेगी तो प्रोटीन वाली मक्का भी तैयार होने की अंतिम सीढ़ी पर पहुंच चुका है। इसी तरह बाजरा और गेहूं की भी आयरन व प्रोटीन वाली बायोफोर्टीफाइड प्रजाति तैयार हो रही है जिनकी मदद से कुपोषण को दैनिक आहार की चीजों में शामिल किया जा कर खत्म किया जा सकेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि बच्चों में कुपोषण की बढ़ती समस्या को देखते हुए स्कूलों में दिए जा रहे हैं मध्यान भोजन में ऐसे बायोफोर्टीफाइड अनाज को शामिल किए जाने के विचार हैं।

” दैनिक आहार में उपयोग की जाने वाली चावल गेहूं मक्का और बाजरा की ऐसी किस्मों पर अनुसंधान किया जा रहा है जिनकी मदद से कुपोषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा। इस क्रम में छत्तीसगढ़ जिंक राइस-वन किसानों तक पहुंच चुका है। शेष किस्में भी बहुत जल्द किसानों तक पहुंचाने के प्रयास है ” – डॉ संदीप भंडारकर, साइंटिस्ट, कृषि महाविद्यालय महासमुंद।

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