शास्त्रसम्मत विद्या से देश के संचालन से ही समस्याओं का होगा समाधान – पुरी शंकराचार्य

17
IMG-20200416-WA0011

भुवन वर्मा, बिलासपुर 09 मई 2020

जगन्नाथपुरी — तीन दिवसीय आयोजित 21 साधना एवं राष्ट्र रक्षा शिविर को बीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुये पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी ने अपने पावन संदेश में साधना एवं राष्ट्र रक्षा तथा रामराज्य परिषद के संदर्भ में मार्गदर्शन प्रदान करते हुये कहा सृष्टि संरचना का उद्देश्य एवं मानव जीवन की उपयोगिता को बिना समझे जीवन सार्थक नहीं हो सकता। प्रवृत्ति के गर्भ से निवृत्ति एवं निवृत्ति के गर्भ से निर्वृत्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य है जो धर्म , अध्यात्म , उपासना का आलम्बन लिये बिना संभव नहीं है। आज जो देश व विश्व की दुर्दशा है उसके पीछे महायंत्रो का प्रचुर आविष्कार और प्रयोग ही मुख्य कारण है तथा वेदविहीन विकास को परिभाषित किया गया है। जिससे प्रकृति दूषित , विकृत तथा विक्षुप्त है।

दिव्य व्यक्ति तथा वस्तुओं का लोप हो रहा है , पृथ्वी के सात धारक तत्व प्रमुख है — गौ , गंगा , सेतु , पर्वत , सती , वेद , यज्ञ , वेदज्ञ ब्राह्मण तथा दानशील व्यक्तियों का लोप हो रहा है। इनके सुरक्षित रहने पर ही समाज एवं देश का सर्वविध उत्कर्ष संभव है। तभी हम अपने अस्तित्व और आदर्श को सुरक्षित रख पायेंगे तथा देश में सुख , शांति , समृद्धि , वैभव को पुनः प्रतिष्ठित किया जा सकता है। विकास के हम पक्षधर लेकिन नास्तिकता रहित , मंहगाई रहित विकास हो जिसमें पर्यावरण सुरक्षित हो।प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन , शोषण ना हो , संस्कृति का ह्रास ना हो, आदर्श परंपरा एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना हो। गंगा , गौवंश , सेतु धरोहर के रूप में स्थापित हो। अपने अपने वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन करते स्वधर्मपरायण बनकर समाज कर्मनिष्ठ बने , मादक द्रव्यों के सेवन , अश्लील मनोरंजन , तापस पदार्थों के सेवन से दूर रहकर समाज में सत्यनिष्ठा सदाचार , संयम , सात्त्विक वातावरण का निर्माण हो ऐसी विकास की आवश्यकता है। इसके लिये सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , सम्पन्न , सेवापरायण , सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना राजनीति की परिभाषा हो तथा इसी आधार पर विकास को परिभाषित किया जाये , जिससे कोई विप्लव की स्थिति निर्मित ना हो तथा समाज सुबुद्ध तथा स्वावलंबी बने , आत्मनिर्भर बने।

पूज्यपाद शंकराचार्य भगवान ने पूर्वकाल के इतिहास को अवगत कराते हुये बताया कि सनातन धर्म में जन्म से ही जीविकापार्जन का साधन सबके लिये सुरक्षित था कोई बेरोजगार नहीं , गरीबी नहीं लेकिन जबसे महानगर , स्मार्टसिटी का निर्माण हुआ। वन, गांव , जंगलों की स्थिति बिगड़ गई। लघु उद्योग , कुटीर उद्योग के द्वारा गांव क्षेत्र को विकसित करें , अपने ही क्षेत्र में लोगों को रोजगार की सुविधा प्राप्त हो तो कोई आर्थिक समस्या नहीं रहेगी। कोरोनावायरस तो एक चेतावनी है समय रहते देश , विश्व सम्हल जाये। प्रकृति मांँ है , भगवान की दूति माया है , उन्हीं के शरण में जाकर शासनतंत्र का दायित्व है उन्हें आश्वस्त करें। पंच महाभूत प्रदूषणमुक्त होंगे , प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं होगा , सनातन शास्त्रसम्मत विधा से देश का संचालन करेंगे तथा विकास के नाम पर संस्कृति का ह्रास नहीं होने देंगे ऐसी दशा में ही यथाशीघ्र समस्या का समाधान संभव है। पूर्वकाल में जैसे राजा व्यासपीठ ,गुरूगद्दी से मार्गदर्शन लेकर देश, विश्व का संचालन करते थे तो रामराज्य , धर्मराज्य की स्थापना होती थी, जिससे शिक्षा , रक्षा , अर्थ और सेवातंत्र सभी सुदृढ़ होते थे , भारत को विश्वगुरु के रूप में जानते थे। अंग्रेजों की कूटनीति को वरदान ना समझकरअभिशाप मानते हुये उसे विनष्ट करने की आवश्यकता है। इस पावन कार्यक्रम में देशभर के तथा नेपाल , भूटान आदि देशों के सामाजिक सांस्कृतिक , राजनैतिक , वैज्ञानिक क्षेत्रों से जुड़े प्रबुद्धजन तथा संत,महात्मा , विद्वान एवं राजा , धर्मसंघ – पीठपरिषद , आदित्य वाहिनी — आनन्द वाहिनी , राष्ट्रोत्कर्ष अभियान , हिन्दू राष्ट्र संघ , सनातन संत समिति के सदस्यों ने अपना भाव व्यक्त किया तथा शासनतंत्र से आह्वान किया कि यथाशीघ्र पूज्यपाद शंकराचार्य जी के पावन प्रेरणा के अनुरूप देश में वातावरण बने इस हेतु सार्थक पहल किया जायेगा।

अरविन्द तिवारी की रपट

About The Author

17 thoughts on “शास्त्रसम्मत विद्या से देश के संचालन से ही समस्याओं का होगा समाधान – पुरी शंकराचार्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *