प्रेम और वात्सल्य की प्रतीक है स्कन्दमाता : नवरात्रि का पांचवा दिवस
प्रेम और वात्सल्य की प्रतीक है स्कन्दमाता : नवरात्रि का पांचवा दिवस
भुवन वर्मा बिलासपुर 17 अप्रैल 2021
– पं अरविन्द तिवारी की कलम से ,,,,,
रायपुर — नवरात्रि के पांँचवे दिन आज माँ दुर्गा के पांँचवे स्वरुप स्कंदमाता की पूजा-आराधना- उपासना की जाती है। स्कंदमाता की पूजा करने से साधन , ध्यान और उपासना में सफलता प्राप्त होती है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। स्कंदमाता सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इसलिये स्कंदमाता की उपासना करने वाले साधक सदा तेजस्वी और निरोगी रहते हैं। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास , ज्ञान का आशीर्वाद और समस्त व्याधियों का अंत हो जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन के बारे में अरविन्द तिवारी ने बताया कि आज के दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। माना जाता है कि मांँ स्कंदमाता की उपासना से सुख , ऐश्वर्य मिलने के साथ साथ भक्त की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है और उसके लिये मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। छांदोग्य श्रुति में भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुये सनत्कुमार का नाम ‘स्कंद’ है। स्कंद की माता होने से ये देवी स्कंद माता कहलायी। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अत: साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये। इन्हें अत्यंत दयालु माना जाता है। कहते हैं कि देवी दुर्गा का यह स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है।
नि:संतानों को देती हैं संतान
ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को संतान की चाहत होती है उन्हें सच्चे मन से स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिये। कहते हैं कि उनकी उपासना करने से निसंतानों को भी शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होती है। जिन व्यक्तियों को संतानाभाव हो वे माता की पूजन-अर्चन तथा अत्यंत सरल मंत्र ‘।।ॐ स्कन्दमात्रै नम:।।’ का जाप कर लाभ उठा सकते हैं। शेर पर सवार स्कंद माता का वाहन मयूर भी है। इनकी पूजा केसर युक्त चंदन व सफेद वस्त्र से करते हैं। विभिन्न आभूषणों के अलंकार चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। आज माँ को चम्पा के पुष्प के साथ साथ श्रृंगार में हरे रंग की चूड़ियाँ अर्पित करें। पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिये। कालिदास द्वारा रचित रघुवंश महाकाव्यम् और मेघदूत रचनायें स्कंदमाता की कृपा से ही स़ंभव हुई है। पूरी नवरात्रि दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिये।
स्कन्दमाता नाम क्यों पड़ा ?
स्कन्दमाता ममता की मूर्ति प्रेम और वात्सल्य की प्रतीक साक्षात दुर्गा का स्वरूप मानी जाती हैं। पार्वती और शिव के पुत्र है स्कंद(कार्तिकेय) जो प्रसिद्ध देव असुर संग्राम मे सेनापति बने थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्हें कुमार और शक्ति कहा गया है। माता पार्वती ने जब कार्तिकेय को जन्म दिया तब से वह स्कंदमाता हो गयी। यह भी मान्यता है कि मां दुर्गा ने बाणासुर के वध के लिये अपने तेज से छह मुख वाले सनतकुमार को जन्म दिया, जिनको स्कंद भी कहते हैं। इन्ही स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण ही इन्हे माँ के पाँचवाँ स्वरूप स्कंदमाता कहा गया है।
यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है।
स्कन्दमाता का स्वरुप –
स्कंदमाता (चतुर्भूज) चार भुजाओं वाली हैं। देवी दुर्गा के अन्य स्वरूपों की तरह स्कन्दमाता के हाथों में कोई अस्त्र-शस्त्र नही है। यह पूरी तरह से माता के रूप में ही अपने भक्तों को दर्शन देकर तृप्त करती है। ये अपने दो हाथों मे कमल पुष्प धारण की हुई हैं।और अपने तीसरे हाथ मे कुमार स्कंद (कार्तिकेय) को सहारा देकर बैठायी हैं। इनका चौथा हाँथ भक्तों के कल्याण के लिये है अर्थात वरमुद्रा में है। माँ अपने इस स्वरुप मे पूर्णत: ममतामयी हैं। देवी स्कंदमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं।इन्हे शिव की पत्नी होने के कारण मातेश्वरी कहा गया तथा इनके गौर वर्ण के कारण इन्हे देवी गौरी कहा गया है। माँ का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है जो शांति और सुख का प्रतीक है और यह देवी कमल पर विराजमान रहती हैं इसलिये इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। स्कंदमाता का वाहन सिंह है।स्कंदमाता सदैव ही अपने भक्तो के लिये कल्याणकारी हैं। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। यह देवी अग्नि और ममता की प्रतीक मानी जाती हैं। इसलिये अपने भक्तों पर सदा प्रेम आशीर्वाद की कृपा करती रहती है।
नवरात्र के पांचवें दिन लाल वस्त्र में सुहाग की सभी सामग्री लाल फूल और अक्षत के समेत मां को अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा भी देवी दुर्गा के अन्य स्वरूपों की तरह ही होती है। स्कंदमाता को भोग स्वरूप केला अर्पित करना चाहिये। मां को पीली वस्तुयें प्रिय होती हैं, इसलिये केसर डालकर खीर बनाकर उसका भी भोग लगा सकते हैं।
एकाग्रता की देती है सीख
स्कन्दमाता हमें सिखाती है कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे इसलिये मां स्कन्दमाता की पूजा-आराधना करनी चाहिये। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिये जिससे कि ध्यान , चित्त् और वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है। कहते हैं कि स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस वजह से इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। मन को एकाग्र रखकर और शुद्ध रखकर स्कंदमाता की आराधना करने वाले भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती हैं। विधि विधान से पूजा कर स्कन्दमाता को प्रसन्न करने से शत्रु आपको पराजित नहीं कर पाते हैं। इनकी कृपा से व्यक्ति जीवन – मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
स्कन्दमाता का मन्त्र-
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिये आराधना योग्य निम्न श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिये आज नवरात्रि के पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिये।
— सिंहासन गता नित्यं पद्माश्रितकर्द्वया
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता याशश्विनी ॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
— हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे आपको मेरा बार – बार प्रणाम है।
माँ दुर्गा के सामने दीप प्रज्वलित कर षोडशोपचार पूजन करने के बाद इस मन्त्र के साथ “ऊँ स्कंदमात्रै नम:” का जप अवश्य करना चाहिये तब भगवान स्कंद ( कार्तिकेय) सहित माता की कृपा प्राप्त होगी। मांँ को केले का भोग अति प्रिय है ,इन्हें केसर डालकर खीर का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिये।
स्कन्दमाता का ध्यान –
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
स्कंदमाता की कथा
प्राचीन कथा के अनुसार तारकासुर नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या कर रहा था। उस कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर उनके सामने आये। ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुये तारकासुर ने अमर करने के लिये कहा। तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही उसकी मृत्यु हो। तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे , इसलिये उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। फिर उसने लोगों पर हिंसा करनी शुरू कर दी। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और तारकासुर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। तब मांँ पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिये प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिये प्रशिक्षित किया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया।
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