रोहिंग्याओं की रिहाई भी नहीं और न ही अभी वापसी — सुप्रीम कोर्ट

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रोहिंग्याओं की रिहाई भी नहीं और ना ही अभी वापसी — सुप्रीम कोर्ट

भुवन वर्मा बिलासपुर 8 अप्रैल 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच आज जम्मू में हिरासत में रखे गये 168 रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने और उन्हें म्यांमार वापस नहीं भेजने की याचिका पर फैसला सुनायी। गत 26 मार्च को कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुये कहा कि रोहिंग्याओं को नियत प्रक्रिया का पालन किये बिना म्यांमार नही भेजा जायेगा। अभी इनकी रिहाई नही होगी और सभी को होल्डिंग सेंटर में ही रहना होगा।रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्ला ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के जरिये अर्जी में कहा था कि यह जनहित में दायर की गई है , ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किये जाने से बचाया जा सके। संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिये यह अर्जी दायर की गई थी।पिछली सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा था कि वे केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश देने की मांग कर रहे हैं कि जो रोहिंग्या हिरासत में रखे गये हैं , उन्हें रिहा किया जाये और वापस म्यांमार ना भेजा जाये। हालाकि केन्द्र सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया था। भूषण ने कहा था कि रोहिंग्या बच्चों की हत्यायें कर दी जाती है और उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तथा म्यांमार की सेना अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रही है। रोहिंग्याओं को भारत से वापस ना भेजा जाये साथ ही भारत में रह रहे सभी रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा दिया जाये। उन्होंने कहा था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रोहिंग्या लोग भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचा रहे हैं। वहीं इस मांग का विरोध करते हुये सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जिस अंतर्राष्ट्रीय समझौते के आधार पर वह फैसला आया , भारत ने उस पर दस्तखत नहीं किये हैं। भारत सरकार ने अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हित के आधार पर कई अंतर्रराष्ट्रीय समझौतों से दूरी रखी है। तुषार मेहता ने बताया था कि भारत सरकार की म्यांमार सरकार से बातचीत जारी है . म्यांमार सरकार की पुष्टि के बाद ही इन लोगों को वापस भेजा जायेगा। यानि तभी भेजा जायएगा जब म्यांमार इन लोगों को अपने नागरिक के रूप में स्वीकार करने में सहमति दे।

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