परमात्मा और जीवात्मा का मिलन ही महारास है – वर्षा पाठक

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परमात्मा और जीवात्मा का मिलन ही महारास है – वर्षा पाठक

भुवन वर्मा बिलासपुर 10 फ़रवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

चाँपा ( मुनुन्द) — काम के बीच में रहकर काम पर विजय पाना ही महारास लीला की महत्ता है। भगवान श्रीकृष्ण हजार गोपियों के बीच में रहते हुये भी कामदेव पर विजय पाकर योगेश्वर कहलाये। रासलीला के माध्यम से प्रभु ने अलौकिक प्रेम का वर्णन किया है। महारास में भगवान श्रीकृष्ण व गोपियों के निश्छल प्रेम का प्रमाण मिलता है।

उक्त पावन कथा समीपस्थ ग्राम मुनुन्द में धर्म जागरण मंच एवं समस्त ग्रामवासियों द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ महापुराण कथा के छठवें दिवस कथा व्यास चाम्पा निवासी नारायणरत्न सुश्री वर्षा पाठक ने अपने मुखारविंद से सुनायी।महारास लीला की विवेचना करते हुये सुश्री पाठक ने कहा कि महारास में पांच अध्याय है , उनमें गाये जाने वाले पंच गीत पंच प्राण है।

महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया। शरद पूर्णिमा की रात यमुना तट पर महारास का आयोजन किया गया जिसमें जितनी गोपी , उतने श्रीकृष्ण ने महारास की थी। रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण को छोंड़कर किसी अन्य पुरुष का जाना निषेध था जबकि भगवान भोलेनाथ ने गोपी के वेष में महारास का दर्शन किया था।महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा और परमात्मा का मिलन हुआ। अर्थात महारास का मतलब ही परमात्मा और जीवात्मा का मिलन हैं। महारास में जो रस था, वह सामान्य रस नहीं था। वो कोई सामान्य नाचने वालों का काम नहीं था, जिसको प्राप्त करने के लिये गोपियों को सर्वस्व त्यागना पड़ा था। ब्रज भूमि परमात्मा की प्रेम भूमि हैं, जहां के कण-कण में कृष्ण हैं।

भगवान कृष्ण-गोपियों के महारास लीला को जो श्रद्धा के साथ सुनता है, उसे भगवान के चरणों में पराभक्ति की प्राप्ति होती है। इससे पहले श्रद्धालुओं ने भगवान की जन्मोत्सव की कथाश्रवण की। बाल लीला का वर्णन करते हुये उन्होंने बताया कि जब श्रीकृष्ण सिर्स छह दिन के थे तब राक्षसी पूतना उनको मारने के लिये अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का असफल प्रयास करने लगी लेकिन भगवान ने उन्हें भी सद्गति प्रदान कर दी। उसके बाद गोवर्धन पूजा का वर्णन करते हुये उन्होंने कहा कि कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इन्द्र को प्रसन्न करने के लिये पूजन का कार्यक्रम करने के की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा उनको भगवान इन्द्र की पूजन करने से मना करते हुये गोवर्धन महाराज की पूजन करने की बात कहते हैं। इन्द्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने क्रोध से भारी वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं। जिससे हार कर इन्द्र एक सप्ताह के बाद बारिश को बंद कर देते हैं। जिसके बाद ब्रज में भगवान श्री कृष्ण और गोवर्धन महाराज के जयकारों लगाने लगते हैं।

रूक्मिणी विवाह की कथा प्रसंग पर उन्होंने बताया कि जब भगवान की अलौकिक लीलाओं को रुक्मिणी ने सुना तब प्रभु श्री कृष्ण को ही पति स्वरूप में प्राप्त करने की इच्छा रखी व अपने मन के भाव को गुरु के माध्यम से श्रीकृष्ण तक पहुंचाते हुये अवगत कराया कि मेरे भ्राता रूकमी के दबाव में मेरे पिता मेरा विवाह शिशुपाल के संग कर रहे हैं किंतु आप के चरित्र को श्रवण कर मैंने मन ही मन आपको ही पति रूप में स्वीकार कर लिया है। श्रोताओं ने रूक्मिणी-श्रीकृष्ण विवाह का भरपूर आनंद लिया। कथा व्यास ने कथा के महत्व को बताते हुये कहा कि जो भक्तप्रेमी श्रीकृष्ण रूक्मिणी विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है। कथा प्रसंग के अनुसार बीच बीच में श्रद्धालुओं को झांकी का भी दर्शन सुलभ हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय गो सेवा संगठन जांजगीर चाम्पा के जिला उपाध्यक्ष कोमल पांडेय के साथ बद्री प्रसाद यादव , चैतराम भारद्वाज विशेष रूप से उपस्थित थे।

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