प्रजारञ्जन राजा का मुख्य दायित्व है — पुरी शंकराचार्य
प्रजारञ्जन राजा का मुख्य दायित्व है — पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 2 जनवरी 2021
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी – श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज राजनीतिक संदेश के अन्तर्गत संकेत में शासनतन्त्र को मार्गदर्शन देते हुये सचेत करते हैं कि प्रज्ञाशक्ति और प्राणशक्ति से सम्पन्न जीव की प्राणी संज्ञा है। अभिप्राय यह है कि ज्ञान और कर्म से सम्पन्न जीव प्राणी है। ज्ञान तथा कर्म के उत्तरोत्तर उत्कर्ष की भावना से वेदादि शास्त्रसम्मत ज्ञान और कर्म का आलम्बन अपेक्षित है। जीव की चाह का वास्तव विषय उसका अंशीभूत मौलिकस्वरूप मृत्यु, जडता तथा दुःख से अतिक्रान्त सच्चिदानन्द ब्रह्म है। इस तथ्य के अधिगम की भावना से ज्ञान और कर्म का उपयोग तथा विनियोग अपेक्षित है। तदर्थ व्यासपीठ और शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक सामञ्जस्य अपेक्षित है। मनुस्मृति और महाभारत आदि आर्षग्रन्थों में राजधर्म, क्षात्रधर्म, दण्डनीति और अर्थनीति, राजनीति के पर्याय मान्य हैं। सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पत्र, सेवापरायण तथा स्वस्थ व्यक्ति और समाज की संरचना-वेदादि शास्त्रसम्मत राजनीति की स्वस्थ परिभाषा है। शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवा के प्रकल्प सबको सन्तुलित रूप से सुलभ होने पर स्वस्थ समाज की संरचना सम्भव है।महाभारत – शान्तिपर्व के अनुसार मन्त्रिमण्डल में चार मेधायुक्त, आठ रक्षा विशेषज्ञ, इक्कीस वाणिज्य विशेषज्ञ,तीन सेवाभावी और एक सामञ्जस्यसाधक सूत की नियुक्ति अपेक्षित है। इस तथ्य के अनुशीलन से यह निष्कर्ष निकलता है मेधाशक्ति, रक्षाशक्ति, अर्थशक्ति तथा श्रमशक्ति के सन्तुलन से व्यक्ति और समाज का सर्वविध समुत्कर्ष सुनिश्चित है। प्रजारञ्जन राजा का मुख्य दायित्व है। व्यक्ति और समाज को क्षतिग्रस्त होने से बचाना प्रशस्त क्षात्रधर्म तथा राजधर्म है। स्थावर-जंगम प्राणियों से मण्डित भूमि, जल, तेज, वायु और आकाश की निर्धारित सीमा राष्ट्र है। ऋग्वेदादि के अनुसार लोक और परलोक दोनों की राष्ट्र संज्ञा है।मत्स्यपुराण और अग्निपुराण आदि के अनुशीलन से यह तथ्य सिद्ध है कि साम, दान, दण्ड, भेद, उपेक्षा, इन्द्रजाल और माया के अधिगम और प्रयोग में दक्ष शासक उत्कृष्ट मान्य है और समाहित देहेन्द्रियप्राणान्त:करण से समन्वित शासक आदर्श मान्य है।लौकिक-पारलौकिक उत्कर्ष तथा परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करने में दक्ष राजा इन्द्रादि दश दिक्पालों के तेज से समन्वित देवकल्प मान्य है। मिलन , नमन तथा दमन के अपेक्षित प्रयोग में दक्ष राजा मनस्वी, तेजस्वी तथा यशस्वी सिद्ध है। बृहस्पति, शुक्राचार्य, वसिष्ठ, भृगु, व्यास सदृश नीति और अध्यात्मनिष्ठ ब्रह्मर्षि के स्वस्थ मार्गदर्शन में मन्वादि धर्मशास्त्रों के क्रियान्वयन से रामराज्य और धर्मराज्य का प्रस्थापक नरेश श्रीराम, युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त तथा शिवाजी के सदृश नरोत्तम मान्य है। मन्त्रबल और बाहुबल सम्पत्र राजा भव्य राष्ट्र की संरचना में समर्थ सिद्ध है।