वैदिक गणित की महत्ता और आधुनिक विज्ञान – पुरी शंकराचार्य

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वैदिक गणित की महत्ता और आधुनिक विज्ञान – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 28 दिसंबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरी शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज ने वैदिक गणित पर दस ग्रन्थों की रचना की है, उसमें प्रमुख है स्वस्तिक गणित, अंकपदियम और गणित दर्शन। इन ग्रन्थों के संबंध में स्वयं पुरी शंकराचार्य जी स्पष्ट करते हैं कि इन तीनो ग्रंथो में जिन सूत्रों का मैंने प्रयोग किया है उन सब का स्थल वेदों में , गीता आदि में कहाँ है , इसका उल्लेख कर दिया गया है , ताकि भविष्य में कोई आक्षेप ना करे कि यह सूत्र मनगढ़ंत है । एक भी ऐसा शोध नहीं है , जिसका मूल स्त्रोत्र वैदिक वाङ्गमय में ना हो ! हमने उन सब वचनों को समुद्धित करके स्थल निर्देश भी किया है। इन तीनो ग्रंथो की अपूर्वता क्या है कि अंको की गणना शून्य से प्रारंभ होना चाहिये और शून्य कोई अभाव पदार्थ नहीं है बल्कि भाव पदार्थ है। अंक पदियम जो मेरे द्वारा विरचित ग्रन्थ है उसका मूल विषय यही है कि शून्य भाव पदार्थ है और अंको की गणना शून्य से प्रारंभ होना चाहिये ना कि एक से , जब तक शून्य से गणना प्रारंभ नहीं होगी तब तक चिकित्सा के क्षेत्र में , अंतरिक्ष विज्ञान , ज्योतिष विज्ञान आदि के क्षेत्र में जो विसंगतिया है वो विसंगतिया सृष्टि को प्रभावित करती रहेंगी और उचित विकास विज्ञान का भी संभव नहीं होगा , यह अंक पदियम का मुख्य विषय है उसमे यह प्रयास किया गया। जब मैंने वैदिक वाङ्गमय का हरिगुरु से अनुशीलन किया तो पता चला कि व्याकरणों
के यहाँ श्री भृतहरी के द्वारा विरचित वाक्यपदियम , उसका जब मैंने अनुशीलन किया तो एक विचित्र तथ्य यह पाया कि सृष्टि का मूल विष्फोट होता है , जिसको हम कहते है शब्दब्रह्म , परावाक् , उससे सृष्टि की अभिव्यक्ति होती है । आपको यह सुनकर प्रसन्नता होगी कि अमेरिका ने नवीनतम अनुसन्धान में पाया कि सृष्टि के आरम्भ में एक विस्फोट , विचित्र ढंग के अद्भुत आवाज , वह था ॐकार , तो ॐकार को ही , प्रणव को ही शब्द ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है वाक्यपदियम में , जिस प्रकार अक्षरों का , वर्णों का , अद्भुत महत्त्व वाक्यपदियम के द्वारा पस्तुत किया गया उसी के आधार पर वैयाकरणों का दार्शनिक स्वरुप दर्शाया गया , इस प्रकार अंको को लेकर कोई ग्रन्थ विश्व में अब तक सुलभ नहीं था , उस अभाव कि पूर्ति के लिये हमने अंकपदियम कि रचना की , हमारा विश्वास है कि भगवत कृपा से निकट भविष्य में व्याकरणों के यहाँ जो वाक्यपदियम का स्थान है , वही गणितज्ञो के यहाँ अंक पदियम का हो सकेगा , साथ ही साथ इस ग्रन्थ में एक विचित्रता यह है कि शून्य , एक , दो , तीन , चार , पांच , छः , सात , आठ , नौ इन अंको का मान निकला गया है , जिसके आधार पर भविष्य में विविध प्रकार के यंत्रो का अविष्कार भी हो सकता है , यह हमने संक्षेप में अंकपदियम से सम्बंधित बात हमने आपसे कह दी। स्वस्तिक गणित – स्वस्तिक गणित में केवल इतनी बात सिद्ध की गयी है कि शून्य को प्रायः अभाव पदार्थ माना जाता है जबकि वह युक्ति पूर्वक दार्शनिक विधा का आलंबन लेकर और गणित कि अपनी जो दार्शनिकता , वैज्ञानिकता , व्यवहारिक धरातल पर उसकी उपयोगिता है उसको लेकर अभाव पदार्थ बिलकुल सिद्ध नहीं होता है , यह तथ्य उसमें अकाट्य युक्तियों से सिद्ध किया गया है , साथ ही साथ स्वस्ति का अर्थ होता है कल्याण , स्वस्तिक गणित का अभिप्राय है कल्याण करने वाला गणित। जो हमारे तंत्रों में आगम सिद्धान्तों में स्वस्तिक का चिन्ह बताया जाता है और स्वाति शब्द का प्रयोग वाङ्गमय में साक्षात् वेदों में भरपूर है , उस स्वस्तिक चिन्ह कि दार्शनिकता , वैज्ञानिकता क्या है और व्यापार आदि का जितना भी अर्थशास्त्र , वाणिज्य शास्त्र का स्वरुप है वह स्वस्तिक में कैसे प्रतिष्ठित है , गणित को हम स्वस्तिक के माध्यम से कैसे समझ सकते है ? यह उसकी एक विशेषता है , स्वस्तिक चिन्ह में ही असंख्य तक की संख्या को कैसे हम पिरो सकते है ? जोड़ , ऋण , गुणन , भाग आदि को स्वस्तिक चिन्ह आदि में कैसे समाहित कर सकते है ? यह दिव्य् दृष्टि से स्वस्तिक चिन्ह में ही हमको पूरे ब्रह्माण्ड का परमेश्वर से लेकर पृथ्वी और पार्थिव प्रपंच का दर्शन हो सकता है यह सब तथ्य भी दर्शाया गया है। उसमे भी शून्य से लेकर १० , ११ , १२ इन सब और अन्त असंख्य तक संख्या का मान कैसे निकाल सकते है संक्षेप में उस वैज्ञानिकतम द्रुतगति का परिचय दिया गया है। तीसरा है गणित दर्शन , एक दिन विचार में आया गणित का विनियोग अर्थ शास्त्र में , वाणिज्य शास्त्र में होता है , यज्ञ आदि में , ईंट इत्यादि कि गणना में , दिशा आदि कि गणना में होता है लेकिन गणित अपने आप में दर्शन है , इस विषय पर कोई ग्रन्थ नहीं है तो वैदिक वाङ्गमय का आलंबन लेकर विशेष योगदर्शन , सांख्यदर्शन , वेदांत दर्शन का आलम्बन लेकर अकाट्य युक्तियो के द्वारा गणित को दर्शन सिद्ध किया गया है , उसकी यह विशेषता है गणितदर्शन में स्वस्तिक गणित में जो मान निकलने की विधा उपलब्ध करायी गयी है उसमे भी एक द्रुत प्रक्रिया का आलंबन लेकर मान निकलने कि द्रुत प्रक्रिया प्रस्तुत कर दी गयी है तो मै समझता हूँ उस आधार पर कई अद्भुत यंत्रो की भी भविष्य में रचना हो सकती है। इसी सन्दर्भ में मै एक संकेत कर देना चाहता हूँ कि मेरे द्वारा भगवत कृपा से , गुरुओ के द्वारा प्राप्त अध्यन के बल पर विरचित सार्वभौम सनातन सिद्धांत नामक ग्रन्थ है , जिसमे मैंने दस सूत्रों को सन्नहित किया है दस नियम , जैसे न्यूटन ने एक नियम का रहस्योद्घाटन किया , प्रक्रति में जो नियम पहले से चरितार्थ था उसका साक्षात्कार किया कि प्रत्येक क्रिया के समान व विपक्षी प्रतिक्रिया होती है , कालांतर में उस सूत्र के आधार पर या नियम के आधार पर अनेको यंत्र कि संरचना हुई। उसी प्रकार मैंने उत्पत्ति , स्थिति , स्मृति , निग्रह , अनुग्रह ,परक दस प्रकार के सूत्रों को ग्रंथित किया है ,समग्र वैदिक वाङ्गमय का अनुशीलन करके , और कोई मेधावी व्यक्ति , अंतर्मुख व्यक्ति , संयमी व्यक्ति मेरा या मेरे जैसे किसी व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त करे तो कालांतर में हजारो लोकोपकारी यंत्रो का अविष्कार भी उसके आधार पर हो सकता है। निकट भविष्य में मेरा विचार वैदिक गणित की व्याख्या का है , संभव हुआ तो द्रुत प्रक्रिया का और उसी के आधार पर द्रुत प्रक्रिया निकलने का भी।

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