गुरू घासीदास जयंत आज 18 दिसंबर पर विशेष

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गुरू घासीदास जयंत आज 18 दिसंबर पर विशेष

भुवन वर्मा बिलासपुर 18 दिसंबर 2020

– अरविन्द तिवारी की कलम से

रायपुर – बाबा गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 में छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी नामक ग्राम में गरीब और साधारण परिवार में
हुआ था। उनके पिता का नाम मंहगू दास , माता का नाम अमरौतिन और उनकी धर्मपत्नी का नाम सफुरा था। इनका जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में छुआछूत, ऊंँच-नीच, झूठ-कपट का बोलबाला था। बाबा ने ऐसे समय में समाज में समाज को एकता, भाईचारे तथा समरसता का संदेश दिया। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिये लम्बी तपस्या भी की। गुरु घासीदास ने सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म की सात सिद्धांत दिये। सत्गुरू घासीदास जी की सात शिक्षायें हैं- (१) सतनाम् पर विश्वास रखना। (२) जीव हत्या नहीं करना।(३) मांसाहार नहीं करना। (४) चोरी, जुआ से दूर रहना। (५) नशा सेवन नहीं करना। (६) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना। और (७) व्यभिचार नहीं करना। गुरू घासीदास ने दुनियाँ को सत्य, अहिंसा और सामाजिक संभावना का मार्ग दिखाया और सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया जिसका असर आज तक दिखाई पड़ रहा है। सत्य के प्रति अटूट आस्था की वजह से ही इन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाये जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने ना सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा की और अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया। उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति को ‘मनके-मनके एक समान’ के अनिश्चितक वाक्य के साथ यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य एक समान है। गुरू घासीदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से दलित-शोषित समाज कोरे कुरितियों, रूढ़ियों से दूर कर उनके नैतिक और चारित्रिक विकास का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। गुरू बाबा घासीदास जी ने लोगों को मानवीय गुणों के विकास के लिये रास्ता दिखाया और उन्हें नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गये। फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में ‘सतनाम पंथ’ की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिये सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है। बाबा ने तपस्या से अर्जित शक्ति के द्वारा कई चमत्कारिक कार्यों कर दिखाये। बाबा गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को प्रेम और मानवता का संदेश दिया। संत गुरु घासीदास की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर से एक माह तक बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनायी जाती है। बाबा गुरु घासीदास की जयंती से हमें पूजा करने की प्रेरणा मिलती है और पूजा से सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ती है। इससे समाज में सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती हे। गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिये गोवंशों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिये भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। बाबा के बताये मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति ही अपने जीवन में अपना तथा अपने परिवार की उन्नति कर सकता है , उनके उपदेश पूरे मानव जाति के लिये अनुकरणीय है।आज गुरु घासीदास की 264वीं जयंती मनायी जायेगी। इस अवसर पर जगह-जगह पवित्र जैतखाम पर सफेद ध्वज फहराया जायेगा। प्रदेश भर में कई जगहों पर कार्यक्रम आयोजित होंगे। राज्य शासन के आदेशानुसार आज निकाय सीमा क्षेत्र अंतर्गत समस्त मांस विक्रय पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके तहत आज गुरु घासीदास जयंती पर मांस विक्रय पर नहीं होगा।

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