गोपाष्टमी ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व

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गोपाष्टमी ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व

भुवन वर्मा बिलासपुर 21 नवंबर 2020

कल गोपाष्टमी विशेष — अरविन्द तिवारी की ✍️ कलम से

रायपुर — गोपाष्टमी ब्रज में भारतीय संस्कृति  का एक प्रमुख पर्व है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि यानि आज ही के दिन गोपाष्टमी त्यौहार मनाया जाता है। यह तिथि गायों की पूजा , प्रार्थना , उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करने के लिये समर्पित है। गाय पृथ्वी का ही एक रूप है। गायों  की रक्षा करने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण जी का अतिप्रिय नाम ‘गोविन्द’ पड़ा। हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं और उन्हें माँ का दर्जा दिया गया है। गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर घरों एवं गौशालाओं में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझकर गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं। शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिये कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि षोडशोपचार से उनका पूजन करना चाहिये। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिये। गोपाष्टमी से जुड़े कई कहानियाँ प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त करते हुये कहा कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिये। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलायी। माता यशोदा ने बाल कृष्ण के श्रृंँगार किया और जैसे ही पैरो में जूतियांँ पहनाने लगी तो बाल कृष्ण मना करते हुये बोले मैय्या यदि मेरी गौयें जूतियांँ नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूंँ ? और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियांँ नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांँसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुये ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुये भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गायों को भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय माना जाता है। एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार गोपाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के समय से ही मनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान इंद्र अपने अहंकार के कारण वृंदावन के सभी लोगों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते थे। इसलिये उन्होंने बृज के पूरे क्षेत्र में बाढ़ लाने का फैसला किया ताकि लोग उनके सामने झुक जायें और इसलिये वहांँ सात दिन तक बारिश हुई। इंद्र के प्रकोप से गोप गोपियों और गायों को बचाने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया। आठवें दिन भगवान इंद्र को उनकी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांँगी। तब भगवान श्रीकृष्ण पर गौमाता ने दूध की वर्षा की , वह विशेष दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन बछड़े और गायों की एक साथ पूजा व प्रार्थना करने का दिन है। इस दिन घरों , मंदिरों और गोशालाओं में गायों की षोडशोपचार पूजन की जाती है। इस दिन गाय , गोवत्स (बछड़ों) तथा गोपालों के पूजने का विधान है।

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