गोवर्धन पर्वत की और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है आज गोवर्धन पूजा पर

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गोवर्धन पर्वत की और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है आज गोवर्धन पूजा पर

भुवन वर्मा बिलासपुर 15 नवम्बर 2020

– अरविन्द तिवारी की ✍️ कलम से

रायपुर — हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। दीपावली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानि आज गोवर्धन पूजा की जाती है , इसे देश के कुछ हिस्सों में अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा कर भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाया जाता है। इन पकवानों को ही ‘अन्नकूट’ कहते हैं। मूलतः यह प्रकृति की पूजा है, जिसका आरम्भ भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में किया था और धीरे धीरे यह पूजा पूरे भारतवर्ष में आंरभ हो गई। इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है। आज के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन की मूर्ति बनाते हैं और रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। गोवर्धन भगवान की पूजा करने से सालभर भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है। गोवर्धन पूजा से संबंधित एक प्राचीन कथा प्रचलित है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों से इंद्रदेव की पूजा करने के बजाय गोवर्धन की पूजा करने को कहा। इससे पहले गोकुल के लोग इंद्रदेव को अपना इष्ट मानकर उनकी पूजा करते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों से कहा कि गोवर्धन पर्वत के कारण ही उनके गौमाताओं सहित अन्य प्राणियों को खाने के लिये चारा मिलता है , गोर्वधन पर्वत के कारण ही गोकुल में बारिश होती है , इसलिये इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना की जानी चाहिये। जब इंद्रदेव को श्रीकृष्ण की इस बात के बारे में पता चला तो इंद्र अपने अभिमान में चूर होकर सात दिनों तक लगातार बारिश करने लगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनके अहंकार को तोड़ने और जनता की रक्षा के लिये अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को ही अपनी छोटी ऊँगुली पर उठाकर ब्रजवासियों एवं जीव जंतुओं को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। इसके बाद देवराज इंद्र को क्षमायाचना करनी पड़ी थी। कहा जाता है कि उस दिन के बाद से गोवर्धन की पूजा शुरू हुई , तभी से जमीन पर गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर पूजा की जाती है।

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