मिट्टी रहित हरा चारा ; कृषि वैज्ञानिकों का विशिष्ट अनुसंधान : अलीशा

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मिट्टी रहित हरा चारा ; कृषि वैज्ञानिकों का विशिष्ट अनुसंधान: अलीशा

कोरिया । बढ़ती आबादी और शहरीकरण के वजह से जब जमीन की कमी पनपने लगी तो मुश्किलों का तांता शुरू हो गया और आबादी का पेट भरने जमीन पर्याप्त नहीं रही तब इस मिट्टी रहित खेती की सोच उपजी और कृषि वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी केवल पानी और सूखे नारियल के बुरादे से फसल उगाने का परिक्षण किया जिसमें वे सफल रहे और धीरे धीरे हर जगह यह पद्धति फैल गई, जिसे अंग्रेज़ी में हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है। हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हाइड्रो’ तथा ‘पोनोस’ से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य। अर्थात् पानी के द्वारा खेती करना।

जब भी खेती की बात आती है तो बिना मिट्टी, पानी, प्रकाश और खाद के खेती के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, परन्तु इस तकनीक में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसमें पौधों को एक उचित तापमान और आर्द्रता में उगाया जाता है। मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए इनके पानी में एक खास तरह का घोल मिलाया जाता है जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्व एक खास अनुपात में उपस्थित होते हैं, जो पौधों को उपयुक्त पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

हाइड्रोपोनिक्स के लिए कम जगह का उपयोग किया जाता है, आमतौर पर इसका उपयोग फसल उगाने में या चारों को उगाने में किया जाता है और इसी तकनीक का फायदा उठाया कृषि विज्ञान केन्द्र, कोरिया ने, जहां के कृषि वैज्ञानिकों ने छोटे से क्षेत्र में हाइड्रोपोनिक्स की यूनिट बना दी और उसमें हरा चारा उगाने लगे।

के.वी.के कोरिया के उद्यानिकी विषय विशेषज्ञ डॉ. केशव राजहंस ने बताया स्वचलित स्प्रिंकलर की मदद से हर 3 मिनट में पानी बीजों तक पहुंचता है और हर एक ट्रे में 1 किलो मक्के , 1 किलो जौ और अन्य हरे चारे के दाने डाले जाते हैं, जो कि करीब 8 से 9 दिनों में 5 किलो हरे चारे का उत्पादन करते है। इसमें उपयोग होने वाले पानी का प्रसंस्करण कर दुबारा इस्तेमाल किया जाता है और इसमें केवल 12 से 15 यूनिट बिजली की खपत होती है जिसमें महीने के मात्र 100 रुपए लगते हैं। साथ ही यह साल के 365 दिन हरा चारा उपलब्ध कराता है, अगर मौसम साथ दे तब और पारंपरिक रूप से उगाए चारों की तुलना में इसके द्वारा उगे हुए चारों में 3 से 5 प्रतिशत अधिक न्यूट्रीशन पाया जाता है। और यह निरंतर उपज देने में भी कारगर है। हाइड्रोपोनिक्स हरे चारे के उपयोग से पशुओं में अधिक ऊर्जा, विटामिन और अधिक दूध का उत्पादन होता है और उनकी प्रजनन क्षमता में भी सुधार होता है।

हाइड्रोपोनिक्स कम लागत में अधिक उपज देने वाली तकनीक है आज बड़े बड़े शहरों में लोग अपने घरों में ही प्लास्टिक के खाली बॉटल का इस्तेमाल कर अपनी बालकनी या आंगन में ही छोटे जगह पर फल और सब्जियां उगा रहे और इसकी सबसे खास बात यह है कि इनमें किसी भी कीटनाशक या रसायन का उपयोग नही किया जाता इसलिए ये पूरी तरह से सेहत के लिए फायदेमंद हैं।

इतने फ़ायदे के बाद भी लोगों का रुझान इसकी ओर क्यों नहीं है? तो जवाब है कि परंपरागत खेती की तुलना में इस हाइड्रोपोनिक्स पद्धति में शुरुआती खर्च थोड़ा ज्यादा होता है, उसके अलावा बिजली और पानी की आवश्यकता इसमें सबसे महत्वपूर्ण है जिसके बिना खेती नहीं की जा सकती और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग नई चीज़ों को अब तक खुले मन से अपनाने के लिए तैयार नहीं हुए हैं जिसकी वजह से यह पद्धति लोगों के बीच अबतक अपनी छवि नहीं बना पायी है, लेकिन जिस तरीके से रसायन का अत्यधिक उपयोग औेर जमीन कि कमी बनी हुई है तो यह निश्चित है कि भविष्य में इस हाइड्रोपोनिक्स की खेती की तरफ लोगों का रुझान काफी बढ़ने वाला है।

शेख अलीशा
कृषि स्नातकोत्तर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

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