आज कालरात्रि पूजा – अरविन्द तिवारी की कलम से

0

आज कालरात्रि पूजा – अरविन्द तिवारी की कलम से

भुवन वर्मा बिलासपुर 23 अक्टूबर 2020

माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। नवरात्रि पूजा के सातवें दिन यानि आज मां कालरात्रि की पूजा आराधना की जाती है। मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से दुष्टों का अंत होता है। देवी मां के इस रूप को साहस और वीरता का प्रतीक मानते हैं।जगत्जननी माँ दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में माँ कालरात्रि का रूप सबसे शक्तिशाली है।

वैसे तो माँ काली की पूजा भारत व विश्व के अन्य देशों में भी होती है लेकिन बंगाल व आसाम में उनकी पूजा बड़े ही धूमधाम से होती है। पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाने और पाप को फैलने से रोकने के लिये मांँ दुर्गा अपने तेज से इस भयंकर रूप को प्रकट की थी। माँ नव दुर्गा के सभी स्वरूपों मे ऐसा इस स्वरूप को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र मे अवस्थित होता है।और उसी कारण ब्रम्हाण्ड की सभी शक्तियों का द्वार साधक के लिये धीरे- धीरे खुल जाता है।काली,भद्रकाली,भैरवी,रुद्राणी,चंडी इन सभी विनाशकारी रुपों में एक माना गया है । माँ कालरात्रि की उपासना से सभी प्रकार के संकटो का विनाश हो जाता है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। माँ कालरात्रि की उपासना से जितने भी भूत पिशाच दैत्य गण और जितनी भी नकारत्मक शक्तियाँ हैं उन सभी का विनाश हो जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बहुत बड़ा दानव रक्तबीज था। इस दानव ने जनमानस के साथ देवताओं को भी परेशान कर रखा था। रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो हूबहू उसके जैसा दानव बन जाता था। दानव की शिकायत लेकर सभी भगवान शिव के पास पहुंँचे। भगवान शिव जानते थे कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं , भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति संधान किया , इस तेज ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाली रक्त को मांँ कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह से देवी मांँ ने सबका गला काटते हुये दानव रक्तबीज का अंत किया।रक्तबीज का वध करने वाला माता पार्वती का यह रूप कालरात्रि कहलाया।

माँ कालरात्रि का स्वरुप

माँ कालरात्रि का स्वरुप भयानक है मगर वह सदैव शुभफल देने वाली है। इसी कारण इनका एक नाम शुभंकारी भी है। अत: इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार की भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नही है। माँ कालरात्रि की स्मरण मात्र से नवग्रह बाधायें दूर हो जाती है।उनकी आराधना सेअग्निभय,चोरभय,शत्रुभय सब दूर हो जाता है और मुक्ति मिल जाती है। माँ कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है इसलिये इसे कालरात्रि भी कहा जाता है। इनके सिर के बाल बिखरे हुये हैं और गले मे विद्युत के समान चमकने वाली माला है। उनके शिवजी की तरह तीन नेत्र हैं अर्थात वह त्रिनेत्री हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के समान गोल है जो हमारे अंतर्मन का प्रतीक है। इनकी नासिका से अग्नि के समान भयंकर ज्वालामुखी निकलती है।उनका वाहन गदर्भ अर्थात गधा है। इनका एक हाथ वरमुद्रा और एक हाथ अभयमुद्रा मे है। बाकी के दो हांथो मे से एक मे लोहे का एक काँटा और दुसरे हाथ मे खड्ग है। इसप्रकार माँ कालरात्रि का स्वरुप सभी प्रकार के दुखों का निवारण करती हैं। इनका प्रिय पुष्प रातरानी है , इनका प्रिय रंग लाल है , आज के दिन माँ को गुड़ जरूर अर्पित करना चाहिये।

माँ कालरात्रि का मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता ,
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णि तैलाभ्यक्तशरिरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह लता कंटक भुषणा ,
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरि ।।
अर्थात — मांँ दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है भीतर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुये हैं , गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं , इनकी नाक से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं , इनका वाहन गधा है। इस मंत्र का जाप माँ कालरात्रि के सामने गाय की घी का दीपक जलाकर करें । अगर आप शत्रुभय से पीड़ित हैं तो सरसो के तेल से दीपक जलाकर माँ कालरात्रि के सामने इस मंत्र का जाप करेंं।इससे माँ कालरात्रि शत्रुभय को दूर करती हैं।

अगर आपको धनलाभ चाहिये तो तिल के तेल से दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें।
— या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात — हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें।

कालरात्रि (मां काली) का मंत्र

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्रै नम:।
परेशानी में हों तो सात या सौ नींबू की माला देवी को चढ़ायें। सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलायें। सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिये। यथासंभव, इस रात्रि संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed