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पुलिस जवान झेल रहे है तनाव – ‘स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया 2019’ की रपट

भुवन वर्मा 29 अगस्त , 2019

नई दिल्ली। देश में निचले पदों पर पदस्थ पुलिस हमेशा जवान तनाव में रहते है। सीनियर अधिकारी जूनियर्स से अपने निजी, घरेलू काम करने को कहते हैं। इस तनाव का असर पुलिसकर्मियों के रवैये पर भी पड़ रहा है।
यह हम नहीं बल्कि ‘स्टेटस ऑफ पोलिसिंग इन इंडिया 2019’ की रिपोर्ट कहती है। एनजीओ कॉमन कॉज, लोकनीति और सीएसडीएस के गहन सर्वेक्षण के बाद तैयार इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जे चेलमेश्वर ने मंगलवार को जारी किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिसकर्मियों की ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं होने की वजह से उन पर हमेशा तनाव रहता है। पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाले पुलिसकर्मियों को अपने ही सहकर्मियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है। हर दूसरा पुलिसकर्मी ओवरटाइम करने को मजबूर है। इतना ही नहीं 10 में से आठ पुलिस कर्मी को ओवरटाइम का पैसा भी नहीं मिलता है। निचले स्तर पर पुलिस प्रशिक्षण का स्तर काफी खराब है। बीते पांच सालों में सिर्फ छह प्रतिशत पुलिसवालों को कार्यकाल के दौरान प्रशिक्षण दिया गया। बाकी को सिर्फ भर्ती के वक्त ही प्रशिक्षण मिला है। प्रशिक्षण के अभाव में अधिकतर पुलिसकर्मियों को पता नहीं है कि अदालत में मामला कैसे पेश किया जाये या फिर एफआइआर किस तरह दर्ज की जाये। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों के मन में पुलिस का खौफ सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट में पाया गया है कि कई अपराध सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं हो रहे हैं क्योंकि लोग पुलिस के पास जाते हुए डरते हैं। अगर नाबालिग बच्चे किसी अपराध में पकड़े जाते हैं तो उनके साथ वयस्क अपराधियों जैसा सुलूक किया जाता है। उसी तरह महिलाओं के प्रति पुलिसवालों में संवेदनशीलता की कमी के चलते मामले दर्ज नहीं हो पा रहे हैं। एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज अधिकतर मामले झूठे और किसी खास मकसद से दायर किये जाते हैं। वहीं हर पांच में एक पुलिसकर्मी को लगता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दर्ज केस भी अधिकतर फर्जी होते हैं। वाहनों के साथ साथ थानों में संचार सुविधा की भी बेहद कमी है। वहीं 80 प्रतिशत पुलिसकर्मियों को लगता है कि अपराध स्वीकार कराने के लिए अपराधियों को पीटना गलत नहीं है। 40 प्रतिशत पुलिसकर्मियों का कहना है कि अपराध की जांच में पुलिस पर दबाव सबसे बड़ी बाधा 

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