विकास के मापदण्ड शास्त्रसम्मत होने पर ही सर्वहितकारी — पुरी शंकराचार्य

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विकास के मापदण्ड शास्त्रसम्मत होने पर ही सर्वहितकारी — पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 13 सितंबर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग समय समय पर जनसामान्य से संबंधित किसी विपरीत अधिनियम के क्रियान्वयन के दुष्प्रभाव से सचेत करते रहते हैं। इसी कड़ी में वे अपने नवीनतम संदेश में वर्तमान में विकास की अवधारणा को त्रुटिपूर्ण बताते हुये कहते हैं कि सनातन वैदिक शास्त्रसम्मत सिद्धांतों के तहत विकास को परिभाषित करना ही सर्वहितकारी सिद्ध होगा , अन्यथा विकास के गर्भ से सिर्फ विस्फोट ही उत्पन्न होगा । पुरी शंकराचार्य जी विकास के मापदण्ड शीर्षक के द्वारा संकेत करते हैं कि
नीति तथा अध्यात्मसमन्वित शिक्षापद्धतिके माध्यम से सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ तथा सर्व-हितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना के प्रकल्प का क्रियान्वयन ; ब्राह्मणादि वर्ण एक – दूसरे के पूरक घटक की मान्यता को प्रोत्साहन ; हम परमात्मा के अंश सदृश होते हुये प्राणी, प्राणी होते हुये मनुष्य, मनुष्य होते हुये ब्राह्मणादि ,इस मान्यताको प्रोत्साहन ; जन्म से जीविका के संरक्षण के प्रकल्प का पुन: क्रियान्वयन ; पृथिवी आदि उर्जा के स्रोतों को तथा विमलवंश परम्परा को दूषित तथा क्षुब्ध किये बिना विकास की परियोजना इन सभी प्रकल्पों के द्वारा ही सर्वहितकारी विकास संभव हो सकेगा।

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