मच्छर से बचने हर दिन सवा करोड़ ₹ धुंआ लिक्विड में फिर भी नहीं मिल रही मुक्ति: काम नहीं आ रहे निकाय के उपाय

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मच्छर से बचने हर दिन सवा करोड़ ₹ धुंआ लिक्विड में फिर भी नहीं मिल रही मुक्ति: काम नहीं आ रहे निकाय के उपाय

भुवन वर्मा बिलासपुर 21 अगस्त 2020

बिलासपुर- स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत अभियान को पलीता लगा रहे हैं वे मच्छर ,जिनकी वजह से छत्तीसगढ़ की जेब से हर दिन एक करोड़ 30 लाख रुपए इससे बचने के लिए निकल जा रहे हैं। हालांकि निकाय अपनी तरफ से हर जरूरी उपाय कर रहे हैं लेकिन मच्छरों ने अपनी प्रतिरोधक क्षमता इतनी विकसित कर ली है कि अब निकाय के उपाय काम नहीं आते। ऐसे में बाजार में उपलब्ध अगरबत्ती, काँयल या सारी रात जलने वाले ऑल आउट पर अच्छी खासी रकम खर्च करनी पड़ रही है।

मच्छरों के अच्छे दिन आ चुके हैं। मौका भी है। सीजन भी है। पनपने के लिए माकूल वातावरण भी मिल रहा है। ऐसे में मच्छरों की फौज में रोज नए सदस्य शामिल हो रहे हैं और दे रहे हैं उस बाजार को चुनौती जो इनसे बचने के उपाय लेकर मौजूद हैं। मच्छरों की यह चुनौती उन निकायों को भी मिल रही है जो ब्लीचिंग पाउडर या अन्य उपाय के सहारे इनका उन्मूलन करने निकले हुए हैं। फर्क नहीं पड़ता कि उन्मूलन करने में सफलता मिल ही जाएगी। कम से कम बाजार से उपलब्ध आंकड़े तो इस बात को प्रमाणित कर ही रहे हैं कि मच्छरों ने सभी सुरक्षा उपाय के बीच अपनी सुरक्षा के लिए भी खुद को तैयार कर लिया है।



कॉयल पर भारी स्टिक

मच्छरों से बचने के उपायों की खोज के बाद सबसे पहले बाजार में काँयल ने दस्तक दी। हाथों हाथ लिया गया। जवाब में रेपेलेंट आया। प्रतिस्पर्धा अब कड़ी होने लगी थी इसलिए ऑल आउट ने बाजार में दस्तक दी। काँयल के बाद मच्छर से बचने के लिए यह उपाय सफलता की नई ऊंचाई पर पहुंचा और इस क्षेत्र में संभावनाओं से अनजान कंपनियों का भी ध्यान गया। अब जमाना है स्टिक का। 10 रुपए में 8 तीली वाला यह पैक शहरी क्षेत्र में तेजी से अपनी जगह मजबूत बना चुका है तो क्वाइल को अर्ध ग्रामीण क्षेत्रों में नए बाजार की तलाश करनी पड़ रही है। यहां अब भी क्वाइल की ही ज्यादा डिमांड है।


ऑल आउट इसलिए आउट

शहरी क्षेत्रों में लोकप्रियता के साथ जमे हुए ऑल आउट की बिक्री में अब कुछ गिरावट आती दिखाई देती है वजह यह कि उपलब्ध दूसरे संसाधन की तुलना में ये महंगे पड़ रहे हैं। पहला तो कीमत ज्यादा है ऊपर से बिजली बिल और रही सही कसर मात्र 45 या 60 दिन चलने के बाद इसे फिर से नई खरीदी पूरी कर रही है। इसलिए यह खरीदी की सूची में सबसे नीचे आता नजर आ रहा है। खाली की गई जगह पर स्टिक का कब्जा बढ़ता नजर आ रहा है।


यहां ब्लीचिंग पाउडर

निकाय क्षेत्रों में अब भी मच्छरों से बचने के लिए वही बरसों पुराना ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग किया जा रहा है जो डालने के कुछ ही घंटों बाद बेअसर हो जाते हैं लेकिन मच्छरों से बचाव संभव होता होगा यह कहना जरा मुश्किल है क्योंकि घर- घर में क्वाइल, स्टिक और ऑल आउट जैसे साधन पर ज्यादा भरोसा किया जा रहा है। इसके बावजूद ब्लीचिंग पाउडर की बिक्री का आंकड़ा क्वाइल, स्टिक और आल आउट को पीछे छोड़ रहा है क्योंकि खरीदी और उपयोग का क्षेत्र काफी फैल चुका है। इसी अनुपात में मच्छरों की आबादी भी बढ़त की ओर है।


ऐसा रोजाना का बाजार

प्रदेश में क्वाइल और स्टिक की बिक्री का प्रतिदिन का अनुमानित आंकड़ा 5 लाख प्रतिदिन का है इसमें 3 लाख पैकेट की हिस्सेदारी के साथ स्टिक शीर्ष पर है। शेष दो लाख का पूरा हिस्सा क्वाइल का है। अब खर्च हो रही रकम पर जाएं तो जानकारी आ रही है कि अपना छत्तीसगढ़ स्टिक की खरीदी पर रोज 80 लाख रुपए के आसपास रकम खर्च कर रहा है तो 50 लाख रुपए क्वाइल की खरीदी पर खर्च किए जा रहे हैं। निकायों की खरीदी ब्लीचिंग पाउडर में करोड़ों की रकम को पार कर रही है क्योंकि बढ़ती आबादी ने खरीदी की मात्रा भी बढ़ा दी है।

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