फर्श पर आया दलहन : कमजोर ग्राहकी के बाद अब नगदी संकट से सामना
भुवन वर्मा बिलासपुर 27 जुलाई 2020
भाटापारा– लॉक डाउन की बढ़ती तारीखों के बीच अब फर्श पर आने की बारी दलहन की है। बेहद तेजी से नीचे आती कीमतों के बाद दलहन में अब ग्राहकी के लिए यह बाजार तरस रहा है। इसका असर मिलों को भुगतान संकट के रूप में सामने आ रहा है। अर्श से फर्श पर आ चुका दलहन बाजार अब इतना हताश हो चुका है कि उसने 2020 से अब कुछ मिलने की उम्मीद छोड़ दी है।
जान है तो जहान है। कोरोना संक्रमण के प्रारंभिक चरण में देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात कही थी। स्थिति अब बिल्कुल वैसी ही आ चुकी है। संक्रमण के डराने वाले आंकड़ों के सामने आते रहने के बीच चल रहे नियंत्रण के उपायों के साथ बाजार किसी भी दिन पूरी तरह बैठ सकता है। पोहा के बाद अब दाल मिलों के लिए तो ऐसा ही कहा जा सकता है जहां कारोबार पूरी तरह चौपट हो चुका है लेकिन उम्मीद का दामन थामे चल रहा दलहन बाजार में उठाव इस वक्त केवल मंदी का ही दौर है।
कमजोर उठाव ने तोड़ी कमर
शादियों के सीजन में बाजार को उम्मीद थी कि ग्राहकी निकलेगी लेकिन सावधानी के उपाय और कोरोना गाइडलाइन ने दलहन बाजार को लाइन से बाहर कर दिया। सीमित संख्या में ही आमंत्रित को बुलाए जाने की शर्तें इतनी कड़ी है कि उम्मीद को जमीन पर आता देखता रह गया दलहन बाजार। मानसून की दस्तक के बीच उम्मीदों ने फिर जोर मारा लेकिन संक्रमितों के आंकड़े इतने भयावह रहे कि रही सही ग्राहकी भी जाती रही। इस तरह दलहन मिलो की कमर कमजोर ग्राहकी की मार से टूट चुकी है।
अब नगदी संकट से सामना
पूरी तरह जमीन पर आ चुका बाजार गंभीर अर्थ संकट को जन्म दे चुका है। होलसेलर से दाल मिलों को भुगतान नहीं हो पा रहा है क्योंकि रिटेल काउंटर सूने पड़े हैं तो दाल मिलें बैंकों का दबाव झेल रही है। नगदी संकट इतना भयावह है कि मिलें कब बंद हो जाएंगी इसकी आशंका भयभीत किए हुए हैं। बाहर भेजी गई दलहन की पेमेंट को अटके महीने हो चुके हैं। ऐसे में पूरा दलहन बाजार नगदी संकट का सामना कर रहा है।
कमजोर ग्राहकी के बीच ऐसी है कीमत
लॉक डाउन की बढ़ती तारीखों और बीच की अवधि में दी जाने वाली छूट के बाद अरहर दाल की थोक कीमत 8500 रुपए क्विंटल, चना दाल 58 सौ रुपए, मसूर दाल 65 सौ रुपए, मूंग दाल धुली 85 सौ रुपए, उड़द दाल धुली 78 सौ रुपए, तीवरा दाल 45 सो रुपए और बटरी दाल 47 सौ रुपए पर आ चुकी है। इसके जैसी है उसके बाद इसमें अब तेजी की संभावना फिलहाल नहीं है क्योंकि अब उपभोक्ता जरूरत की मात्रा की ही खरीदी कर रहा है।
2020 से टूटी हुई उम्मीदें
कमजोर ग्राहकी, अंतर प्रांतीय कारोबार पर तरह-तरह के रुकावट, नगदी संकट और भुगतान में होते विलंब के साथ बैंकों का दबाव का सामना कर रही दाल मिलें चालू साल यानी 2020 से उम्मीदें छोड़ दी है क्योंकि परिस्थितियां सामान्य हुई तो भी संभलने में ही बाकी के 4 माह गुजर जाएंगे इसलिए नए साल के लिए केवल अच्छे दिन की ही आशा है।
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