नेपाल अपने सतयुगकालीन अलौकिक धरोहर के अनुरूप नीति का पालन करें — पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 3 जुलाई 202
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — जब हम अखण्ड भारत की कल्पना करते हैं , इसका तात्पर्य पूर्व की स्थिति है ,जब नेपाल , भूटान , बर्मा , पाकिस्तान , अफगानिस्तान आदि देश भारतवर्ष में समाहित थे । सतयुग में रामायणकालीन समय में वर्तमान नेपाल में विदेहराज राजा जनक का राज्य रहा है , जिनके यहांँ भगवती सीतामैया ने पुत्री के रूप में अवतार लिया। जनकपुरी और अयोध्या का संबंध तात्कालिक समय में ऐसे विचारधाराओं का मिलन था जो आज भी ज्ञान , तप , धर्म , वचनपालन , प्रजापालन आदित्य सत्कर्मों के लिये आदर्श के रूप
पालन हेतु धरोहर है। भारत नेपाल की भूमि रामायणकालीन अलौकिक लीलाओं का साक्षी है।इस युग में भी ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में भगवत्पाद शिवावतार आदि शंकराचार्य महाभाग ने नेपाल में पशुपतिनाथ तथा पुरी में भगवान जगन्नाथ की पुनः प्राणप्रतिष्ठा सर्वमंगल की थी। पुरी शंकराचार्य जी ने उस गौरवशाली इतिहास एवं धरोहर को आदर्श मानकर वर्तमान नेपाल शासनतंत्र को नीतिगत पालन हेतु पुनः अपने भाव व्यक्त किये हैं। श्रीगोवर्धनमठ पुरी शंकराचार्य जी ने अपने संदेश में कहा कि राजर्षि-जनक और श्रीदशरथजी के सम्बन्ध को, सीतामढ़ी और जनकपुर के सम्बन्ध को, भगवती-सीता और भगवान् श्रीरामभद्र के सम्बन्ध को, महाभारत शान्तिपर्व ३२५.११ में निरूपित “याज्यो मम” के अनुसार भगवान् वेदव्यास और उनके यजमान जनकजी के सम्बन्ध को; तद्वत् अशोकवाटिका में भगवती सीता से श्रीहनुमान् जी का संस्कृत में सम्भाषण न कर क्षेत्रिय भाषा मे सम्भाषण की गाथा को; तद्वत् गण्डकी आदि की स्थिति को एवं श्रीशङ्कराचार्य के द्वारा २५०४ वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित श्रीपशुपतिनाथ और श्रीजगन्नाथ के सम्बन्ध को तिरस्कृत कर भव्य नेपाल की संरचना का प्रलाप सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण है ।
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