वन्यजीव जैव विविधता और लघु वनोपज को @2047 तक शुव्यवस्थित करना होगा – कुलपति बाजपेयी

भुवन वर्मा बिलासपुर 07 अक्टूबर 2024
बिलासपुर । खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी विभाग, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर, (छ.ग.)एवं भारतीय प्राणि सर्वेक्षण, मध्य क्षेत्रीय केंद्र, जबलपुर (मध्य प्रदेश)” के सयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया । विषय -“वन्यजीव जैव विविधता और लघु वनोपज संधि दृष्टिकोण @2047” पर आधारित व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय कुल के मुख्या आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी कुलपति के द्वारा किया गया। विश्वविद्यालय कुल के मुख्य आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी कुलपति द्वारा “वन्य जीव संरक्षण एवं प्रबंधन” पुस्तक का विमोचन किया गया।कार्यकम के संयोजक डा. सौमित्र तिवारी, सहायक प्राध्यापक,अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर, (छ.ग.) तथा डॉ. संदीप कुशवाहा, वैज्ञानिक ‘सी’, भारतीय प्राणि सर्वेक्षण, द्वारा किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.सौमित्र तिवारी जी के द्वारा अतिथियो का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया ।कार्यक्रम में डॉ. सौमित्र तिवारी ने अपने व्याख्यान में बताया की शिक्षा विभाग में जैव विविधता का अध्ययन जरूरी है ताकि हम भविष्य की पीढ़ियों को पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने और प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए तैयार कर सकें। उन्होंने बताया की जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) का अध्ययन पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अध्ययन से हमें प्रकृति के संतुलन, पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता, और मानव जीवन पर इसके प्रभाव को समझने में मदद मिलती है।
व्याख्यान मे मुख्य वक्ता, आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी कुलपति के द्वारा किया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया की हमे “वन्यजीव जैव विविधता और लघु वनोपज को @2047 तक सुवेवस्थित करने की बात कही है। उन्होंने बताया कि आदिवासी समुदायों का जैव विविधता के संरक्षण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनकी परंपरागत ज्ञान और जीवनशैली प्रकृति के साथ सामंजस्य में होती है, जो जैव विविधता के संरक्षण को बढ़ावा देती है। उन्होंने बताया की आदिवासी लोग जंगलों पर निर्भर होते हैं और उनका संरक्षण करते हैं। वे वनों की सुरक्षा और पुनर्जनन में मदद करते हैं, जिससे न केवल जैव विविधता का संरक्षण होता है बल्कि जलवायु परिवर्तन को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है। समग्र रूप से, आदिवासी समुदायों की भूमिका जैव विविधता के संरक्षण में बेहद महत्वपूर्ण है। उनके पारंपरिक ज्ञान को मान्यता देकर और उनका सम्मान करके, हम अधिक प्रभावी और टिकाऊ संरक्षण रणनीतियाँ बना सकते हैं।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता, डॉ. पी.एस. भटनागर, वैज्ञानिक ‘ई’, भारतीय प्राणि सर्वेक्षण जी उपस्थित हुए उन्होंने बताया कि मध्य भारत में जैव विविधता से संबंधित समस्याएं को उजागर करते हुए हमारे साथ उन समस्याएं को साझा किया और बताया की मध्य भारत के जंगल, विशेष रूप से सतपुड़ा, विंध्याचल और अन्य वन क्षेत्र, तेजी से कट रहे हैं। वनों की कटाई के कारण प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे वन्यजीवों की प्रजातियाँ संकट में हैं। जंगलों का विनाश कई कारणों से हो रहा है, जैसे शहरीकरण, उद्योगों के विस्तार, खनन और कृषि भूमि की बढ़ती मांग। इसका सीधा असर जैव विविधता पर पड़ता है। उन्होंने अपने व्याख्यान में प्रकाश डालते हुए बताया की मध्य भारत के वन्यजीव, जैसे बाघ, तेंदुआ, हाथी और कई अन्य प्रजातियाँ अवैध शिकार का शिकार हो रही हैं। वन्यजीवों के अवैध शिकार से उनकी संख्या तेजी से घट रही है। इसके अलावा, मानव-पशु संघर्ष एक गंभीर समस्या है, जहां वन्यजीव अपने आवास खोने के कारण इंसानों के क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं, जिससे मानव और जानवरों के बीच टकराव बढ़ रहा है। उन्होंने बताया की मध्य भारत के आदिवासी और ग्रामीण समुदाय लघु वनोपज पर निर्भर हैं, लेकिन इनके अति-शोषण से जंगलों की प्राकृतिक क्षमता कम हो रही है। गोंद, तेंदू पत्ता, शहद, और औषधीय पौधों का अत्यधिक दोहन जैव विविधता के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
डॉ. कौशल त्रिपाठी, वैज्ञानिक ‘सी’, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद – उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर” जी ने प्रकाश डालते हुए कहा कि,युवाओं से मेरा अनुरोध है कि वे पृथ्वी और जैव विविधता को सुरक्षित रखने के लिए सक्रिय रूप से काम करें। आज की पीढ़ी के पास एक महत्वपूर्ण अवसर और जिम्मेदारी है कि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और स्थिर पर्यावरण सुनिश्चित करें। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, वनों की कटाई, और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन जैसी चुनौतियों के कारण हमारी पृथ्वी और जैव विविधता खतरे में हैं।युवाओं को यह समझना होगा कि पृथ्वी और जैव विविधता का संरक्षण केवल सरकारों या संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति का योगदान आवश्यक है।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. संदीप कुशवाहा जी ने बताया की,युवा नए विचारों और तकनीकी नवाचारों के लिए जाने जाते हैं। वे जैव विविधता संरक्षण के लिए नए और उन्नत तरीकों को विकसित कर सकते हैं। जैसे, पर्यावरणीय समस्याओं का तकनीकी समाधान, पुनर्चक्रण की तकनीकें, और सतत कृषि के मॉडल। उन्होंने बताया की युवाओं को जैव विविधता संरक्षण में सक्रिय रूप से काम करने की जरूरत है, क्योंकि यही वह पीढ़ी है जो भविष्य में पर्यावरणीय नेतृत्व करेगी। जैव विविधता हमारी पृथ्वी की संपत्ति है, और इसे सुरक्षित रखना हर व्यक्ति, खासकर युवाओं की जिम्मेदारी है। रौनक़ गोयल आईएफ़एस एवं डीएफ़ओ मारवाही डिवीज़न ने अपने और भालू के संरक्षण साझा किया।साथ ही वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की भारी कमी बताई जिसने विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की असीम संभावना है।
कार्यक्रम में डॉ. नीतू हारमुख, वरिष्ठ वैज्ञानिक, छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड, नया रायपुर, डॉ. सोनम जहाँ, शोध छात्रा, शासकीय विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर, से भी उपस्थित हुए। कार्यक्रम का संचालन आकृति सिंह सिसोदिया के द्वारा किया गया।कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन श्री, यशवंत कुमार पटेल (विभागाध्यक्ष), खाद्य प्रसंस्करण एवं प्रौद्योगिकी विभाग, द्वारा दिया गया। कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर डॉ. कलाधर,डा. सोमोना भट्टाचार्य, डॉ. सीमा बिलोरकर, जितेंद्र गुप्ता, डॉ. रश्मि गुप्ता, डॉ. गौरव साहू, डॉ. हामिद अब्दुला, रेवा कुलश्रेष्ठ,लीना प्रीति लकड़ा, आस्था विठलकर, केशव कैवर्थ एवं शिक्षण विभाग के समस्त शिक्षक गण उपस्थित रहे।
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