उम्र के साथ शरीर को फिट रखना जरूरी; करें लाइटवेट एक्सरसाइज, ओल्ड एज में रहेंगे फिट-एनर्जेटिक
सदानंद जी, जिनकी उम्र 57 वर्ष है अपने दोनों हाथों में फल, सब्जियों और राशन के थैले उठाए अपने घर की ओर जा रहे थे। उनके पड़ोसी रामेश्वर जी रिक्शे में बैठकर उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने आवाज लगाई, सदानंद जी, क्यों इस उम्र में इतना बोझ उठाकर पैदल जा रहे हैं, आइए रिक्शे पर बैठ जाइए, उधर ही जा रहा हूं, आपके घर के सामने उतार दूंगा। सदानंद जी ने मुस्कुराकर कहा, ‘रामेश्वर जी, मुझे तो आदत पड़ गई है। ये मेरा रोज का रूटीन है। वॉकिंग भी हो जाती है और वेट लिफ्टिंग का अभ्यास भी बना रहता है। इस उम्र में ऐसा करने का मुझे ही इसका फायदा मिलेगा।’
सदानंद जी ने बहुत समझदारी की बात कही। उनकी बात विज्ञान सम्मत भी है। अगर आप अपना बुढ़ापा आने से पहले ही नियमित रूप से वजन उठाने की आदत डाल लें तो आपको बुढ़ापे में वजन उठाना और चलना-फिरना सताएगा नहीं। क्योंकि तब तक आप इतने मजबूत हो जाएंगे कि बोझ उठाना आपके लिए आसान हो जाएगा।
क्या कहते हैं शोध
सेहत विज्ञानियों द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध में पाया गया है कि नियमित बोझ उठाने का अभ्यास करने से पैरों और शरीर की अन्य मसल्स में ना सिर्फ मजबूती आती है बल्कि इनका लचीलापन और मोबिलिटी भी बढ़ जाती है। यह रिपोर्ट बीएमजे ओपन स्पोर्ट एंड एक्सरसाइज मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुई है। 64 से 75 वर्ष की आयु समूह के कुछ स्वस्थ बुजुर्गों पर किए गए अध्ययन के बाद पता चला कि एक वर्ष की हैवी रेजिस्टेंस ट्रेंनिंग शरीर की नसों को मजबूत, लचीला और क्रियाशील बनाने में महत्वपूर्ण रूप से फायदेमंद साबित होती है। इससे पैरों में मजबूती आती है। साथ ही बुढ़ापे में शरीर अचल, शिथिल और कमजोर नहीं बल्कि फुर्तीला और मजबूत बनता है।
बढ़ती है मसल्स मास-बोन डेंसिटी
वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट-स्पाइन सर्जन डॉक्टर यश गुलाटी कहते हैं कि हैवी रेजिस्टेंस ट्रेंनिंग उम्रदराज वयस्कों के लिए काफी लाभकारी होती है। क्योंकि इससे मसल्स मास, बोन डेंसिटी और मोबिलिटी बढ़ती है। लेकिन इसका मतलब क्षमता से ज्यादा या बहुत भारी वजन उठाना कतई नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्तिगत स्तर पर आकलन करके नियमित यथाशक्ति वजन उठाना चाहिए। यह वजन इतना जरूर हो कि 6 से 12 बार उठाते ही थकान महसूस होने लगे, तभी यह प्रभावी होगा। हां, शुरू-शुरू में वजन थोड़ा कम और धीरे-धीरे से बढ़ना चाहिए।
सार्कोपीनिया से बचाव
कोलकाता स्थित बेल व्यू क्लिनिक में वरिष्ठ अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉक्टर राजेश मोर कहते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, उम्रदराज लोग सार्कोपिनिया नामक सिचुएशन का सामना करते हैं। इसमें मसल्स मास, विशेष रूप से शरीर के निचले हिस्सों में कम होने लगता है। इससे उनकी मोबिलिटी कम होने लगती है, चलने की गति धीमी होने लगती है और चलते वक्त गिरने की संभावना बढ़ने लगती है। इसलिए मसल्स की स्ट्रेंथ को मेंटेन रखना बेहद जरूरी है। सार्कोपेनिया का असर कम करने के लिए वेट लिफ्टिंग ट्रेनिंग आवश्यक है।