आइए जरूरतमंद लोगों के साथ मिलकर मनाये सार्थक दीपावली : अपने जीवन व इस दीपावली को करे सार्थक,,,,
आइए जरूरतमंद लोगों के साथ मिलकर मनाये सार्थक दीपावली : अपने जीवन व इस दीपावली को करे सार्थक,,,,,,,,,,,,
भुवन वर्मा बिलासपुर 25 अक्टूबर 2022
बिलासपुर । दीपो के महापर्व के पावन अवसर पर आइए हम सब मिलकर मनाएं सार्थक दिवाली खुशियां और मिठाई की मिठास प्यार भरे उपहार के साथ अपने आसपास रहने वाले जरूरतमंद बच्चे व परिवार में खुशियां शेयर कर सकते हैं । माध्यम बहुत ही आसान है उन जरूरतमंद को आप मिठाई पटाखे नए कपड़े कुछ अंशदान कर उनकी चेहरे में भी खुशियां ला सकते हैं । अस्मिता और स्वाभिमान पत्रिका परिवार यह अभियान गत वर्षों से चला रहा है । इसके सार्थक परिणाम भी देखने मिलने लगे हैं । आप भी जुड़े प्रयास करें किसी के चेहरे में मुस्कान के साथ सार्थक दीपावली मनाकर उनके साथ अपनी फोटो हमें जरूर शेयर करें ।
विदित हो कि दीपों का महापर्व दीपावली,,,,
प्र्रकाश पर्व दीपावली हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और पुरे देश और विदेशों में जहां भारतीय समुदाय के लोग रहते है बहुत ही धूम धाम और भव्यता से मनाया जाता है यदपि विभिन्न प्रदेशो में मनाने की विधी में थोडा अंतर दिखाई देता है. यह 5 दिन का त्यौहार होता है जो धन तेरस से शुरू हो कर भाई द्वीज तक मनाया जाता है। इसमें अँधेरे को दूर कर प्रकाश करा जाता है हमें इसी तरह अपने अन्दर के बुराईयों के अन्धकार को धो कर अपने अन्दर अनुशासन सत्य और सदाचार रुप प्रकाश करना चाहिए। .इसके अलावा बरसात के बाद गंदगी को दूर करने के लिए भी सफाई कीये जाते है.इस त्यौहार मनाने के विभिन्न मानयाताये है।
इस त्यौहार में दीयों से प्रकाश किया जाता है जो बहुत प्राचीन परंपरा है मोहनजोदड़ो और सिन्धु घाटी में खुदाई में भी दीपक मिले थे यदपि उनकी आकर में विभिन्नता है. अभी तक उपलब्ध दीया कम से कम 5000 वर्ष पुराना है। हमारे यहां हर शुभ कार्य में दिया जलाने की परंपरा है. ऋग्वेद में दीपक की उत्पति सूर्य से मानी गई है। ये व्यापारिओं के लिए बहुत शुभ मन जाता क्योंकि वे लोग इसदिन नई बही खाता की शुरूआत करते हैं। दीपावली का अर्थ होता है दीयों की लाइन क्योंकि इन दिनों दीए पंक्ति में लगा कर जलायए जाते है।
देश में त्योहारों की अध्यात्मिक महत्व के साथ सामाजिक महत्व भी है लेकिन आज कल हम लोग इसकी परंपरा को भूलते आधुनिकता के रंग में रंग कर इसकी महत्वता खत्म करते जा रहे। हम अपनी संस्कृत से दूर हो कर व्यापारीकरण के कारण मूल रूप से दूर हो कर राष्ट्र का नुकसान करते जा रहे है। कुछ विदेशी कंपनियों के प्रभाव और विज्ञापनों के चकाचौंध ने हमको असली रास्ते से भटका दिया और हम विदेशी वस्तुओं और परंपरा के बहाव में बहते जा रहे है। अंधाधुन पैसा खर्च करना इसकी सार्थकता को नष्ट करता है। हम स्वदेशी दीयों, और बिजली के झालरों की जगह चाइना की चीजों का उपयोग कर रहे, यहाँ तक लक्ष्मी माता और गणेशजी की मूर्तियां भी चाइना की खरीदते है जिससे देश का बहुत सा पैसा चाइना जाने के साथ अपने लोगों का रोजग़ार भी मारा जाता है। कुछ अध्यक्ष विगत वर्षों से इस पर काफी सुधार आया है अब पहले की तरह चाइनीस उत्पादों की उपयोगिता में कमी आई है । इस पर्व को सार्थक दिवाली के रूप में मनाते हुए कुछ पैसे को गरीब लोगों की किसी तरह की मदद करने में लगा कर उनकी जिन्दगी बनाने में योगदान दे।
शुभ दिवाली शुभकामनाएं बधाई ………….
भुवन वर्मा बिलासपुर 9827124304