बिजली संकट के लिये कोयले पर अपनी निर्भरता हमे कम करनी होगी : सौर और पवन ऊर्जा नये कोयला पावर प्लांट के मुकाबले सस्ती सुदीप

0

बिजली संकट के लिये कोयले पर अपनी निर्भरता हमे कम करनी होगी : सौर और पवन ऊर्जा नये कोयला पावर प्लांट के मुकाबले सस्ती सुदीप

भुवन वर्मा बिलासपुर 06 जून 2022

कोरबा ।हसदेव अरण्य के घने जंगल को काटकर कोयला उत्पादन पूरी तरह अनावश्यक देश के कोयला भण्डारों में से 85 % घने जंगलों के बाहर यह 70 साल तक पर्याप्त • 50 साल में बिजली उत्पादन कोयले पर निर्भर नहीं रहेगा राजस्थान को मध्यप्रदेश के कोल ब्लॉक लेने चाहिये बिलासपुर 31.05.2022 – हसदेव अरण्य जंगलों में कोयला खनन के खिलाफ 2012 से एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने आज बिलासपुर के नागरिकों द्वारा जंगल की कटाई के विरोध निकाली गई रैली को सही कदम ठहराया । उन्होंने ब्यौरा देते हुये बताया कि देश में बने जंगलों के बाहर पर्याप्त कोयला उपलब्ध है अतः हसदेव जैसे घने जंगल जो हाथियों का रहवास और बांगों बांध का जल ग्रहण क्षेत्र है उसे उजाड़ना पूरी तरह अनावश्यक है । अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर निम्न जानकारी दी । देश में कोयले का कुल ज्ञात भण्डार 3.20 लाख मिलियन टन इस कोयले में से उत्पादन योग्य कोयला- 2.50 लाख मिलियन टन घने जंगल के नीचे स्थित कोयला भण्डार लगभग 40 हजार मिलियन टन घने जंगल के बाहर उत्पादन योग्य कोयला -2.10 लाख मिलियन टन देश की वर्तमान कोयला मांग- 1000 मिलियन टन वार्षिक देश की 2050 में कोयला मांग 2000 मिलियन टन वार्षिक देश को 2070 तक की कोयला मांग- 1.00 लाख मिलियन टन अर्थात भारत घने जंगलों के नीचे स्थित कोयला भण्डार को खनन किये बगैर अपनी वर्तमान और भविष्य की सभी आवश्यकता पूरा कर सकता है । 2050 के बाद पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के कारण कोयले की मांग घटती जायेगी । 2070 के बाद कोयले का युग ही समाप्ति की ओर बढ़ेगा । इस स्थिति में हसदेव अरण्य जैसे घने जंगल जो कि कार्बनडाई ऑक्साइड शोषित करते है , उन्हें काटकर कोयला जलाना दोगुना नुकसान देह है । इससे मानव हाथी संघर्ष और खदान की मिट्टी बहने से हसदेव बांगो बांध की क्षमता भी कम होती जायेगी । जहा तक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की आवश्कता का प्रश्न है , उसे मध्यप्रदेश में सोहागपुर कोलफील्ड में स्थित कोल ब्लॉकों में से कोयला लेना चाहिये । ऐसा करने से उसे कोल परिवहन की लागत में 300 से 400 रूपये प्रति टन की बचत होगी ।

गौरतलब है कि सोहागपुर कोलफील्ड के बहुत सारे कोल ब्लॉक जंगल विहीन है । ऊर्जा के कोयले के अलावा अन्य विकल्प मौजूद कोयले पर निर्भरता प्रदूषण पलायन विस्थापन लायेगी जलसुरक्षा पर भी खतरा छत्तीसगढ़ में रेलों का संचालन बाधित होगा देश में 4 लाख मेगावाट के पॉवर प्लॉट स्थापित इसमें से 2.10 लाख ( 55 % ) मँगावॉट कोयले पर आधारित परंतु कुल बिजली में इसकी भागीदारी 80 % तक – सौर और पवन ऊर्जा के 91 हजार मेंगावाट के पॉवर प्लॉट स्थापित जो कुल क्षमता के 23 % परन्तु उसका आधा भी उपयोग नहीं है । बिजली संकट के लिये कोयले पर अपनी निर्भरता हमे कम करनी होगी सौर और पवन ऊर्जा नये कोयला पावर प्लांट के मुकाबले सस्ती बिजली दे रहे है । यदि कोयले पर अत्यधिक निर्भरता बनी रही तो छत्तीसगढ़ में पैसेजर एक्सप्रेस ट्रेन चलना मुश्किल हो जायेगा । हजारो हेक्टेयर वन और कई आदिवासी गांव भी उजड़ जायेगे । इसदेव अरण्य में खनन का सीधा नुकसानं हसदेव बांगो डेम को होगा । इसका जल ग्रहण क्षेत्र समाप्त होने से बांध की क्षमता घटेगी और खुले खदान की मिट्टी बहने से सिलटिंग भी तेजी से होगी । वर्तमान में 2.55 लाख हेक्टेयर खरीफ और 1.27 लाख हेक्टेयर रवि के साथ – साथ 64 हजार हेक्टेयर गर्मी की फसल को पानी देने के लिये बनाया गया डेम पहले से ही बहुत दबाव में है । यही बांध 12 हजार मेगावाट के ताप विद्युत सयंत्र को भी पानी देता है । कोरबा शहर जांजगीर जिला पूरी तरह और रायगढ़ तथा बिलासपुर जिला आंशिक रूप से इस पानी पर आश्रित है । इन सब कारणों से हसदेव अरण्य के खनन को हर हालत में रोका जाना चाहिये ।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *