साजिश कर खत्म करवा दिए हजारों वन्यजीव : गजब विडंबना बस्तर में दो राष्ट्रीय उद्यान और तीन अभयारण्य होने के बावजूद वन्यजीव कहीं भी नजर नहीं आते

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साजिश कर खत्म करवा दिए हजारों वन्यजीव : गजब विडंबना बस्तर में दो राष्ट्रीय उद्यान और तीन अभयारण्य होने के बावजूद वन्यजीव कहीं भी नजर नहीं आते

भुवन वर्मा बिलासपुर 11 मार्च 2022


हेमंत कश्यप,जगदलपुर की रिपोर्ट
जगदलपुर । जिस बस्तर में इकत्तीस साल पहले 99 शेर और 300 तेंदुआ और हजारों चीतल थे। वहां अब वन्यजीवों का दर्शन दुर्लभ हो गया है। सही कहा जाए तो बस्तर के वन्यजीवों को बेदर्दी से मारने का सिलसिला छप्पन साल पहले ही शुरू हो चुका था। जब वर्ष 1966 में मध्य प्रदेश वन विभाग ने बाकायदा वाइल्ड लाइफ डायरी जारी कर बस्तर के 14 हजार 24 वर्ग किलोमीटर जंगल में वन्यजीवों को शूट करने आरक्षित कर दिया था। अब यह एक विडंबना ही है कि बस्तर में दो राष्ट्रीय उद्यान और तीन अभयारण्य होने के बावजूद वन्यजीव कहीं भी नजर नहीं आते और अगर दिखते भी हैं तो मात्र खाल की शक्ल में।


सूत्र बताते हैं कि बड़ी ही चतुराई के साथ मध्यप्रदेश के कान्हा- पन्ना सहित अन्य जंगलों के वन्यजीवों को बचाने के उद्देश्य से बस्तर के जंगलों को चिन्हित कर लायसेंसी शिकारियों को यहां भेजा गया, इसलिए चिन्हित 52 फारेस्ट ब्लाकों में विभाग की अनुमति से जमकर शिकार हुए वहीं पारद करने वाले ग्रामीणों ने भी यहां के वन्य जीवों का सफाया किया।
मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा बस्तर संभाग को पांच हिस्सों में विभक्त कर वन्यजीवों के शिकार हेतु 52 शूटिंग ब्लॉक निर्धारित किए गए थे। जहां कोई भी लाइसेंसी शिकार कर सकता था। इन फारेस्ट ब्लाकों में बीते छप्पन वर्षों में वैध और अवैध तरीक़े से इतने शिकार हुए कि सभी ब्लॉक लगभग वन्यजीव विहीन हो गए हैं। वे शिकार शूटिंग ब्लॉक निम्नानुसार है।
वन विभाग ने शूटिंग जोन निर्धारित करने के साथ ही यह नियम बनाया था कि कोई भी व्यक्ति ₹10 शुल्क अदा कर शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक तथा ₹5 शुल्क अदा कर हिरण जैसे शाकाहारी वन्यजीवों का शिकार कर सकता है। इस छूट के चलते ही वन विभाग के कर्मचारी स्वयं शाम को बंदूक लेकर आसपास के जंगलों में निकल जाते थे। जब गांव वालों ने देखा कि खुद वन कर्मी ही जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं तो उन्होंने भी ऐसा करना प्रारंभ किया। वन्यजीवों को सामूहिक रूप से मारने की इस प्रथा को आज हम पारद कहने लगे हैं। इस छूट और लोगों की निर्भीकता के कारण ही आज बस्तर नहीं छत्तीसगढ़ के अधिकांश वन वन्यजीव विहिन हो चुके हैं।
बस्तर में इन स्थानों पर मिली थी शूटिंग की छूट…
उत्तर बस्तर
नारायणपुर में सोनपुर – कोलार 188.21, परलकोट 134.38, फरसगांव में आलोर 59.13, माकड़ी 88.22, सिलाटी 38.41, ओरछा 63.78 और धौड़ाई 71.29 वर्ग मील।
पूर्व बस्तर
कांगेर में कोटमसर 47.00, कोलेंग 81.41, दरभा में चंद्रगिरी 118.25, माचकोट 89.02, कावापुलचा 52.79, माटवाड़ा 153.04, आमादुला 15.20, कोंडागांव में गोलावानी 334.07, बनियागांव 41.24, अमरावती में मालेगांव 99.64, बीरगोली 103.81 तथा गीदम में बारसूर 384.62 वर्ग मील।
दक्षिण बस्तर
गोल्लापल्ली में 99.28, कोंटा में सावारी 151.99, भेजी 338.39, गोगवाड़ा 160.10, सुकमा में चिंतलनार 67.38, सुकमा 78.07, दंतेवाड़ा में चंदेनार 122.38, बैलाडीला 202.30 और क्रिष्टाराम 224.10 वर्ग मील।
पश्चिम बस्तर
भैरमगढ़ में कोण्डापाल 4.40, बेचापाल 22.40, तोयनार 105.40, काकलूर 27.20, बीजापुर 99.04, गंगालूर 133.76, पाल- जैतालूर 6.00, आवापल्ली में उसूर 111.34, पामेड़ 13.46, टांकीगुट्टा 20.00, कुरागुट्टा 122.00, भोपालपटनम में अन्नाराम 67.50, बोंडापारा 91.44, इंद्रावती 60.00, जमसेरगुट्टा 31.48 और बंगारानी कुंटा 22.16 वर्ग मील।
कांकेर डिवीजन

कांकेर में साईंमुंडा 56.59, कुरुस्टीपुर 18.10, कोरर में कानागांव 17.64, जालपुर 11.34, भानुप्रतापपुर 28.12, केशकाल में कोसमी 89.44, अंतागढ़ में मातला 118.04 तथा प्रतापपुर 106.04 वर्ग मील जंगल शूटिंग हेतु आरक्षित किया गया था।

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