वे समय की आवश्यकता थे :’विदेशी आक्रांताओं की बर्बरता के विरुद्ध भारतीय क्षमता का सशक्त प्रतिरोधक शक्ति के अलावा एक आदर्श शासन का व्यवहारिक विकल्पक थे- शिवाजी महाराज

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वे समय की आवश्यकता थे : विदेशी आक्रांताओं की बर्बरता के विरुद्ध भारतीय क्षमता का सशक्त प्रतिरोधक शक्ति थे, एक आदर्श शासन का व्यवहारिक विकल्पक – शिवा जी महाराज

भुवन वर्मा बिलासपुर 19 फरवरी 2022

वीर शिवाजी–एक परिचय

रायपुर । वीर शिवाजी का जीवन आज भी प्रासंगिक व प्रेरक है! वीर शिवाजी छत्रपति महाराज भोसले भारतीय इतिहास में ही नहीं, भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं भारतीय जनमानस पर उकेरी ऐसी अमिट छवि है जो कभी समयातीत नहीं होगी।

 

थे। बीजापुर, गोलकुंडा की महत्वाकांक्षी सल्तनत ही नहीं, बल्कि औरंगजेब जैसे सर्व शक्तिशाली साम्राज्य की सत्ता लिप्सा को भी कड़ी टक्कर दे कर लगाम लगाई और दक्षिण में एक आदर्श मराठा राज्य की स्थापना की।
कुछ युवा मावलों को साथ लेकर छापामार युद्ध नीति से घोड़ों की पीठ से प्रारंभ होकर राजगढ़ राज्य के राज्याभिषेक पर ही नहीं रुका, बल्कि अत्याचार, व्यभिचार, दलित, शोषित, अपमानित होती हुई महिलाओं को सम्मान मिल सके सतत प्रयत्नशील रहे। माता जीजाबाई की शिक्षा और समर्थ गुरु रामदास जी के उपदेशों के अनुरूप एक हिंदू पादशाही की स्थापना में पल्लवित हुआ जिसके आदर्शों की आज भी मिसाल दी जाती है।
शिवाजी महाराज एक बहादुर बुद्धिमान,शूरवीर और दयालु शासक थे। उनका जन्म 19 फरवरी, 1627 को मराठा परिवार में महाराष्ट्र के शिवनेरी में हुआ। शिवाजी पिता शाहजी और माता जीजाबाई के स्नेह और वात्सल्य पूर्ण वातावरण में पले बढ़े। कहा जाता है कि शिवाजी के जन्म के पूर्व एक रात स्वप्न में शाह जी को भगवान भोले शंकर ने प्रकट होकर एक आम दे दिया और कहा इसमें से आधा अपनी पत्नी को खिला दीजिए। जब शाहजी सो कर उठे तो उनके हाथ पर एक आम था। शिव जी की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी, इसलिए इनका नाम शिवाजी रखा गया। महाराष्ट्र के निर्माता शिवाजी के जन्म के 4 वर्ष पश्चात शाह जी को अधिकतर युद्ध में रहना पड़ता था,अतः बचपन में पालन पोषण का भार माता जीजाबाई पर आया।
शाहजी को अति व्यस्तता, रणनीति युद्ध नीतियां और समय की आवश्यकता के अनुसार राज्य विस्तार एवं सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें बाहर रहना पड़ा।
जीजाबाई पुणे के निकट शाह जी की ज़मींदारी में रहने लगीं। ज़मींदारी के प्रबंधन को दादाजी कोणदेव के हाथों में सौंपा गया। जिस समय जीजाबाई यहां आई तबतक ज़मींदारी चौपट हो चुकी थी, किन्तु उनकी चतुराई और योग्यता से फिर से फलने फूलने लगी।
शिवाजी की माता जीजाबाई धार्मिक ग्रंथों, रामायण, महाभारत, वेद पुराणों की ज्ञानदाता बनी। शिवाजी को भीम और अर्जुन बनने की कल्पना का बीजारोपण किया। 19 वर्ष की अवस्था में शिवाजी निर्भीक, साहसी और श्रम साधक बन चुके थे। उनकी अभिलाषा हुई कि अपने प्रदेश को बीजापुर के शासन से स्वतंत्र करा लूं।
पुणे के दक्षिण तोरण के दुर्ग पर आक्रमण किया। वर्षा ऋतु में दुर्ग का शासक तथा सेना बाहर चली गई थी। शिवाजी ने इस अवसर को उपयुक्त समझा। उन्होंने न केवल दुर्ग पर विजय पाई बल्कि वहां के धन और शस्त्र को भी अपने कब्जे में कर लिया। दुर्ग के शासक ने बीजापुर सुल्तान के पास शिकायत भेजी परिणाम स्वरूप दुर्ग के शासक को बहुत डांट फटकार मिली। बीजापुर के निकट ही उन्होंने एक दुर्ग बनाया जिसका नाम रायगढ़ रखा।
सिंहगढ़ और पुरंदर के भी दुर्ग शिवाजी के अधिकार में आ गए। दुर्ग लेने और उन्हें बनवाने में शिवाजी का समस्त धन समाप्त हो गया। बीजापुर सुल्तान के सैनिक धन और शस्त्र लेकर जा रहे थे। शिवाजी ने छापामार पद्धति के द्वारा गोरिल्ला वार कर सब कुछ अपने अधिकार में ले लिया। सुल्तान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने शिवाजी महाराज के पिताजी जिन्हें बंदी बना रखा था दीवार में चुनवा दिया। केवल सांस लेने के लिए एक छोटा छेद रखा था खबर भेज दी कि सारा माल, असबाब लेकर दरबार में पेश हो। शिवाजी महाराज ने कहा जितने भी दुर्ग और किले आपने हम से छीने हैं हमें वापस लौटा दीजिए हम दरबार में पेश हो जाएंगे। शिवाजी की धमकी से सुल्तान ने उनके पिता को रिहा कर दिया।
शिवाजी का विवाह 14 मई,1640 में सहबाई निंबालकर के साथ संपन्न हुआ। कुछ समय बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम संभाजी जी रखा गया। वीर संभाजी के शिक्षण में भी जीजाबाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शास्त्र से लेकर शस्त्र विद्या तक का कार्य बखूबी अंजाम दिया। अल्पायु में ही शास्त्र लिख डाले। नखशिखा गणपति का गुणगान के साथ-साथ 60 किलो की तलवार लेकर युद्ध करने की कला भी सीख ली। छोटी आयु में ही उस पुत्र को घोड़े पर बैठा कर शिवाजी महाराज ने आगरा तक यात्रा की। वहाँ उन्हें आगरा किले के कारागार में बंदी बना लिया गया। कारण यह था कि शिवाजी का साहस निरंतर बढ़ता जा रहा था। जहां भी स्थान और संपत्ति मिलती वे उसे अपने कब्जे में कर लेते। सुल्तान जब किसी तरह से विजय प्राप्त नहीं कर पाए तो उन्होंने शिवाजी महाराज को बंदी बनाने का निश्चय किया। शिवाजी के जासूसों के द्वारा खबर मिलते ही शिवाजी वहां से निकल गए। सफल शासक के पास कवि कलश के मार्गदर्शन में 23 वर्ष की उम्र में औरंगजेब की बड़ी लूट करके 20 हजार हाथियों के साथ हुसैन अली सेन 1680 से 1682 तक आक्रमण कर आते रहे| आगे भी 9 साल मैं 120 लड़ाई हुई और शिवाजी महाराज एक भी लड़ाई नहीं हारे।
शिवाजी छोटे-छोटे राज्यों को जीतते जा रहे थे। उन्होंने हर जाति वर्ग के लोगों को एक करने के लिए बहुत सारी शादियां की ताकि समाज में समभाव जागृत हो सके। छोटे-छोटे सभी राज्य मिलकर एक विशाल शक्तिशाली सेना का निर्माण हो रहा था। दक्कन से लेकर गुजरात तक राज्य फैल गया। शाहजहां दिल्ली में था उन्होंने दबाव डाला । बिना लड़े युद्ध जीते जा रहे थे समानांतर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा इत्यादि।
आदिलशाह बहुत परेशान था। मैत्री करने के लिए अफजल खान को भेजा। शिवाजी को अफजल खान की नियत पर शक था। मुलाकात करने का समय निर्धारित हुआ। एक तंबू में दोनों को निहत्थे मिलना था। जैसे ही शिवाजी महाराज और अफजल खान गले मिलने लगे, अफजल खान ने खंजर निकाल कर शिवाजी की पीठ में घुसा दिया। शिवाजी लोहे का जामा पहने हुए थे। शिवाजी ने अपने हाथ से बघनखा (लोहे का नाखून) निकाल कर अफ़जल खाँ के पेट में घुसा दिया उसकी सारी की सारी अँतरिया बाहर आ गई। अफ़जल खाँ मर गया और प्रतापगढ़ का किला जीत गए। 18 दिन में पन्हाला का किला जीत कर जयसिंह को मिर्जा बना दिया।
पहले 23 किले उनके हाथ से निकल गए थे, मगर शिवाजी निराश नहीं हुए। कभी भी थके नहीं, रुके नहीं और 360 किले जीत लिए।
वे धर्म के खिलाफ नहीं थे। केवल मराठा और उनकी रक्षा करने के लिए सफल और कुशल समझदार कवि कलश के मार्गदर्शन में मात्र 23 वर्ष की उम्र में औरंगाबाद में औरंगजेब की बड़ी सेना को लूटा। 120 लड़ाइयां लड़ीं और एक भी नहीं हारे। आक्रमणकारियों को इस्लामिक शक्तियों को कभी भी ऊपर नहीं उठने दिया। राजकुंवर बाई, काशी बाई, सहबाई, हल्कू बाई के अतिरिक्त उनके कुल 8 रानियां थीं। छोटे- छोटे सूबे में विवाह कर अनेकों परिवारों, वर्गों और वर्ण एक सूत्र में बांधने के लिए सदैव प्रयासरत रहे।
15वीं,16वीं और 17 वीं सदी इतिहास के मध्य युगीन काल का स्वर्णिम काल था। साहस, वीरता, त्याग, बलिदान और देशप्रेम से भरा हुआ। मुगलों के राज्य उन्नत अवस्था में थे। लड़ाई बहुत होती थी। मुगल शासक स्त्रियों और बच्चों को प्रताड़ित करते। शोषित, दलित, व्यभिचारी, हवस के भूखे अत्याचार की अनीति अपनाकर पैरों तले रौंद कर रखते थे।
मराठा लोग बहादुर थे, ईमानदार थे। शिवाजी ने उन्हें शिक्षा दी थी कि परस्त्री का सम्मान करें। सभी धर्मों का आदर करें। धार्मिक स्थलों को कभी भी क्षति न पहुंचाएं। दया पूर्ण नीति से जरूरतमंदों की मदद करें। व्यभिचार और अत्याचार से अपनी प्रजा की रक्षा करना ही मराठा सैनिकों का धर्म है। अपने देश को मुगलों की गुलामी से मुक्त कराना ही शिवाजी का प्रमुख उद्देश्य था। राजपूतों की सेना को मराठा सेना में सम्मिलित कर युद्ध नीति का निर्माण किया। मराठा सब एक हो गए। स्त्रियों को भी सेना में शामिल कर लिया गया। मुगलों के खिलाफ वह लड़ाई जीते जा रहे थे। राज्य का विस्तार होता जा रहा था। संभाजी महाराज को भी गोवा से लड़ाई शुरू करने के लिए आदेश दे दिया था।
वे अपनी उम्र से बहुत आगे थे। स्वदेशी ताकतें वापस आ गई थीं। सारे मोची और दर्जी, तीर और बारूद बनाने के काम में संलग्न हो गए थे। नए-नए आविष्कार हो रहे थे।
शिवाजी को उनके युद्ध में विजय और साम्राज्य स्थापना के लिए ही नहीं याद किया जाता बल्कि उनकी शासन व्यवस्था एवं आदर्शों के लिए भी याद किया जाता है। उनकी अष्ट प्रधान मंत्री परिषद व्यवस्था, चौथ और स्वदेश मुखी आधारित राजस्व व्यवस्था, सुदृढ़ किलों की सुव्यवस्था, निगरानी व्यवस्था, थल सेना, नौसेना की दूरदर्शिता उन्हें तत्कालीन शासकों में उच्च स्थान दिलाते हैं।
उन्हें फादर ऑफ द नेवी भी कहा जाता है। उनके सरदारों से उनके आत्मीय संबंध, विजित मुगलों के परिवारों, महिलाओं, बच्चों के प्रति उनकी चिंता और सम्मान समयानुसार कूटनीति एवं संधि के सफल प्रयोग आदि गुण, उनके उपरांत भी मराठा शासकों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बने रहे। आज भी उनका जीवन चरित्र उतना ही प्रेरणादायक बना हुआ है।
संकलन—डॉ, सत्यभामा आडिल द्वारा विशेष आलेख,,

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