वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप आर्य की मौत दम घुटने से हुई : आर बी हॉस्पिटल में लगाया था खाली ऑक्सीजन सिलेंडर , कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश

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वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप आर्य की मौत दम घुटने से हुई : आर बी हॉस्पिटल में लगाया था खाली ऑक्सीजन सिलेंडर , कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश

भुवन वर्मा बिलासपुर 14 अप्रैल 2021

बिलासपुर । प्रेस क्लब के वरिष्ठ सदस्य पत्रकार जगत के चहेते प्रदीप आर्य की मौत ऑक्सीजन के अभाव में दम घुटने से हुई हॉस्पिटल की घोर लापरवाही आर बी हॉस्पिटल के कारनामे की जांच होनी चाहिए । आरबी अस्पताल बिलासपुर प्रबंधन की लापरवाही से वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप आर्य की मौत हो गई. प्रदीप आर्य को इलाज के दौरान जो ऑक्सीजन सिलेंडर लगाया गया था उसमें ऑक्सीजन ही नहीं था. अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के चलते वरिष्ठ पत्रकार ने दम तोड़ दिया. सिम्स प्रबंधन और निजी आरबी अस्पताल में घोर लापरवाही बरतने का मामला सामने आया है. दिवंगत पत्रकार प्रदीप आर्य के परिजनों से जानकारी मिली कि सिलेंडर में ऑक्सीजन नहीं था ।जिस वजह से प्रदीप आर्य की मौत साँस लेने में कठिनाई और दम घुटने से हुई है. कलेक्टर डॉ सारांश मित्तर ने इस मामले में जाँच के आदेश दिए हैं.वही बिलासपुर प्रेस क्लब द्वारा आरबी हॉस्पिटल के स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई हैं,उचित कार्यवाही ना होने पर प्रेस क्लब आंदोलन के लिए भी तैयार हैं।
तो इस तरह से जान ली गई हमारे प्रदीप भाई की..

पूरी घटना क्रम पढ़े बिटिया की जुबानी,,,,,,,
“अंकल, तीन चार दिन से पापा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। हमने उनको प्रेस जाने से मना कर दिया था। मैं ऑक्सीजन का छोटा यूनिट लेकर घर आ गई। पर डर था, कब कैपिसिटी खत्म हो जाये। “
“सिम्स लेकर आये। ऑक्सीजन सिलेंडर में लिया गया। कुछ देर बाद पता चला कि सिलेंडर का लेवल गिर रहा है। डॉक्टर आयें तो बात करें। बात कोई सुनने वाला नहीं था। फिर पता किया, किसी प्राइवेट अस्पताल में कोई ऑक्सीजन बेड खाली नहीं है। एक स्टाफ ने बताया, आरबी हॉस्पिटल में अभी-अभी एक ऑक्सीजन बेड खाली हुआ है, ले जाओ। ”
“दूसरा ऑक्सीजन इक्विपमेंट वहां था ही नहीं। नीचे एम्बुलेंस खड़ी थी। मैं घर से जो पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ले आई थी, उसे तीसरे माले से पापा पर लगाकर नीचे उतरी। पापा बुरी तरह हांफ रहे थे। बस उम्मीद थी, जल्दी से जल्दी एम्बुलेंस आरबी हॉस्पिटल पहुंचें, ऑक्सीजन मिले और पापा को बचा लें।”
“आर बी में एम्बुलेंस रुकते ही व्हील चेयर आ गई। ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ। मैंने अपनी यूनिट हटाई। उन्होंने अपनी ऑक्सीजन यूनिट लगाई। पर, उनका हांफना बंद नहीं हुआ। स्टाफ से पूछा तो बताया कि बस दो चार मिनट में काम करने लगेगा। पापा को ऑक्सीजन मिलने लगेगा।“
“उसी हाल में पापा को आर बी के ऊपर बने कोविड हॉस्पिटल में मैं खुद रोते-रोते ले गई। आईसीयू में पापा पहुंच गये। आईसीयू में पहुंच गये थे, पर बस दो चार मिनट तक राहत महसूस कर सकी। उनका तड़पना बंद नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया। मैं भागे-भागे नीचे आई। जिन नर्सों ने एम्बुलेंस अटैंड किया था, उनसे बात बताना चाह रही थी। मगर उन तीन में से दो मोबाइल फोन पर व्यस्त थीं। तीसरी मेरी ओर बड़ी उपेक्षा से देख रही थी।“
“मुझे समझ में आ गया कि इन्हें किसी के जान की परवाह बिल्कुल नहीं है। मुझे करंट सा लगा- जब एक ब्वाय ने बताया कि जो ऑक्सीजन सिलेंडर आपके पापा को यहां आने पर लगाया गया उसमें ऑक्सीजन तो था ही नहीं। वह तो खाली है। ये नौटंकी तो आपको संतुष्ट करने के लिये की गई।“
“मैं ऊपर भागी, अपने साथ लाये हुए आक्सीजन कंस्ट्रेटर को लेकर। दरवाजे पर पहुंची। रोका गया। बताया गया….
…….तुम्हारे पापा अब नहीं रहे।“
“अंकल, मेरी ही गलती थी। न तो उनको अस्पताल ले जाती, न उनकी मौत होती।“

जैसी बिटिया ने वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल जी को बतायी,,,

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