समस्त तीर्थों में क्षमा परम तीर्थ – पुरी शंकराचार्य

0

समस्त तीर्थों में क्षमा परम तीर्थ – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 16 फ़रवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज विभिन्न प्रकार की शुद्धियां एवं उसकी महत्ता के संबंध में संकेत करते हैं कि संसार में मन तथा इन्द्रिय का संयम अर्थात दम के समान अन्य कोई धर्म नहीं है। लोक में सर्व धर्म के विचारशील महानुभावों ने अपने-अपने धर्म की आधारशिला के रूप में इन्द्रिय और मनोनिग्रहरुप दम को स्वीकार कर इसे सार्वभौम धर्म सिद्ध किया है। धर्म का सार सुनकर उसे धारण करना चाहिये। दूसरों के द्वारा किये हुये जिस बर्ताव को अपने लिये नहीं चाहते , उसे दूसरों के प्रति भी नहीं करना चाहिये। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन, स्वयं को सुख अभिमत है और दु:ख अनभिमत ; तद्वत् अन्यों को भी सुख अभिमत है और दु:ख अनभिमत। अतएव अन्यों से अपने प्रति अपेक्षित अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहादि संज्ञक मानवोचित शील का निर्वाह अन्यों के प्रति भी स्वसदृश करनेवाला योगी परमोत्कृष्ट मान्य है।

मनुष्य दूसरों द्वारा किये हुये जिस व्यवहार को अपने लिये उचित नहीं मानता , दूसरों के प्रति भी वह वैसा ना करे । उसे यह जानना चाहिये कि जो हिंसा , असत्य , चौर्य , व्यभिचार आदि बर्ताव अपने लिये अप्रिय है , वह दूसरों के लिये भी प्रिय नहीं हो सकता। जिसमें धैर्यरूप कुण्ड और सत्यरूप जल भरा हुआ है तथा जो अगाध , निर्मल और अत्यन्त शुद्ध है, उस मानस तीर्थ में सदा सच्चिदानन्दस्वरुप सर्वेश्वर के समाश्रित रहकर स्नान करना चाहिये। क्षमाशील को यश , स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतएव क्षमावान् साधु कहलाता है, क्षमी देवतुल्य है । शम , दम , यज्ञ , दान , तप , अहिंसादि सद्गुण क्षमा का ही अनुगमन करते हैं , क्षमाशील और क्षमा दोनों ही तीर्थ हैं।

महाभारत आश्वमेधिकपर्व में भगवान कहते हैं कि हे पाण्डव ! समस्त तीर्थों में भी क्षमा परम तीर्थ है, क्षमाशील पुरूषों को इस लोक और परलोक में भी सुख मिलता है। मन:शुद्धि , क्रियाशुद्धि , कुलशुद्धि , शरीरशुद्धि और वाक् शुद्धि — इस तरह पांच प्रकार की शुद्धि बतायी गयी है। इन पांच प्रकार की शुद्धियों में मन:शुद्धिरूप हृदय का शौच उत्कृष्ट है। हृदय के शुद्ध होने पर मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। आत्मारुप नदी परम पावन तीर्थ है , यह सब तीर्थों में प्रधान है। आत्मा को सदा यज्ञरूप माना गया है , स्वर्ग तथा मोक्ष सब आत्मा के ही अधीन हैं। जीवन में प्रज्ञान — स्वरूप आत्मतत्व का विज्ञान ही त्रिविध शरीर की शुद्धि का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप है। सम्प्राप्त संसाधनों में ममत्व का अभाव तथा निष्किञ्चनभाव और मन की प्रसन्नता शुद्धि है। भावतीर्थ परम तीर्थ है, सब कर्मों में वह प्रमाण है । पत्नी का लिङ्गन अन्य भाव से और पुत्री का लिङ्गन अन्य भाव से होता है । त्रिपथगा गङ्गा भारत के पूर्वोत्तर में प्रवाहित है । महातीर्थस्वरूप महोदधि भारत के पूर्व , पश्चिम और दक्षिण में प्रवाहित है। गङ्गा और सागर का सङ्गम सनातनियों का सर्वमान्य सनातनतीर्थ है। महाभारत भीष्मपर्व तथा योगशिखोपनिषत् में उल्लेखित वचनों के अनुशीलन से गङ्गा, सागर और तद्वत् गङ्गासागर का माहात्म्य हृदयङ्गम करने योग्य है।सूर्यमण्डलान्तर्गत सूर्यस्वरूप सर्वरूप अप्रतिरूप शिव अपनी ध्वजा और पताका पर सूर्य का चिन्ह धारण करते हैं। त्रिकोण रक्तवर्ण के वस्त्र पर अंकित श्वेत वर्ण के सूर्य को वैदिक ध्वज माना गया है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *