तत्त्व ज्ञान का फल मोक्ष है — पुरी शंकराचार्य

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तत्त्व ज्ञान का फल मोक्ष है — पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 8 जनवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज संकेत करते हैं कि धर्म के मार्ग पर चलने पर जीवन पर तपना पड़ता है । पुरी शंकराचार्य जी कहते हैं कि हे प्रभु ! हे जगद्गुरु ! मोर्चे पर, पग-पग पर मुझे विपत्ति विपत्ति विपत्ति का वरदान चाहिये। अब प्रश्न उठता है, विपत्ति का वरदान कौन चाहेगा, कुंती ने चाहा। रंतिदेव का वर्णन है श्रीमद्भागवत में , हे प्रभु ! विश्व में जितने पापी तापी हैं, उनको जो यातना प्राप्त हो रही है, वो सारी यातना मैं झेल लूँ। किसी को दुःख प्राप्त ना हो। तो दुःख वरदान के रूप में कौन प्राप्त करना चाहता है, लेकिन कुंती ने कहा मुझे पग-पग पर क्या चाहिये ? विपत्ति चाहिये। इससे क्या होगा ? ऐसी पीड़ा, ऐसी वेदना, ऐसा कष्ट जो आपके आलावा कोई हर ही ना सके, तो प्रतिक्षण आपका स्मरण होगा। देह, इन्द्रिय, प्राण, अंतःकरण में अनुपम लोकोत्तर त्याग का बल, जो भी कलुषित भाव हैं, उनका क्षालन धर्म का वास्तविक फल है। साथ ही साथ मैं एक संकेत करता हूँ, मैंने एक नियम बचपन में लिया स्वाभाविक रूप से, साथ वालों को मालूम है। जितने कष्ट हो सकते हैं, सब कष्ट मिलते हैं। अनुचित किसी को दबाना नहीं, अनुचित किसी से दबना नहीं। मेरा व्रत है। एक ही नियम ले लीजिये, जीवन भर कष्ट ही कष्ट मिलेगा। अनुचित किसी को दबाना नहीं, अनुचित किसी से दबना नहीं। मेरा बचपन का व्रत है। चारों ओर से संकट आता रहता है, मैं मुस्कुराता रहता हूँ। पहली बात मैंने ये कही कि धर्म का वास्तविक फल जो मिलता है, सत्संग की कमी के कारण व्यक्ति समझता है संपत्ति नहीं, संपत्ति मिलनी चाहिये , विपत्ति मिल गयी। नल को देखिये, जो भी धर्म के मार्ग पर चले जीवन भर तो उनको तपना पड़ा। लेकिन इतिहास उन्ही का बना क्योंकि धर्म का वास्तविक फल है ‘धर्मते वीरति’ । ‘योगते ज्ञाना’ वैराग्य का फल समाधि, ‘अत्यंत वैराग्य वतः समाधि, समाहितस्य .. प्रबोधः’ समाधि का फल है तत्त्व ज्ञान, तत्त्व ज्ञान का फल है मोक्ष। अब मैं थोड़ी व्याख्या करके बताता हूँ। यज्ञ , ये धर्म है या नहीं, थोड़ा विचार कीजिये,विधिवत शास्त्र-सम्मत विधा से यज्ञ करेंगे तो द्रव्य की पकड़ ढीली होगी। एक वो व्यक्ति है कि द्रव्य को, मर जायेगा, छोड़ेगा नहीं, जिसका आपने वर्णन किया। एक वो व्यक्ति है जो यज्ञ के माध्यम से द्रव्य की पकड़ को छोड़ेगा। द्रव्य की पकड़ को नहीं छोड़ेंगे तो यज्ञ का संपादन नहीं होगा। विधिवत दान करना है रूपये , सोने, चांँदी। द्रव्य की पकड़ को ढीली नहीं करेंगे तो दान नहीं दे सकते। निर्जल व्रत किया, एक व्यक्ति गुलछर्रा उड़ा रहा है, एक माता है निर्जल एकादशी का व्रत किये हुये है। उसकी जीभ जलेगी और जो रसगुल्ला पा रहा है, बार-बार पानी पी रहा है उसकी जीभ कहाँ जलेगी। प्रत्यक्ष में तो दुःख वो पा रही है ना जो निर्जल एकादशी का व्रत कर रही है। और गुलछर्रे उड़ा रहा है, मलाई चाट रहा है वो तो बड़ा मौज-मस्ती में है। व्रत करेंगे तो क्या होगा ? भोग का त्याग करना ही पड़ेगा, तप करेंगे तो सुख का त्याग करना ही पड़ेगा। भगवत प्राप्ति के लिये सर्वस्व त्याग करना ही पड़ेगा। तो अनुपम त्याग का बल और वेग, धर्म के मार्ग पर चलने पर प्राप्त होता है। त्याग का जो बल और वेग प्राप्त होता है उसी के बल पर व्यक्ति भगवत तत्त्व की ओर जाता है। धर्म के द्वारा चित्त का इतना शोधन होता है जिससे आत्मा, परमात्मा, महात्मा की और ही व्यक्ति आकृष्ट होता है, अन्यत्र आकृष्ट नहीं होता।

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