वेद वेदांत का सार है गीता – झम्मन शास्त्री
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वेद वेदांत का सार है गीता – झम्मन शास्त्री
भुवन वर्मा बिलासपुर 26 दिसंबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
चंद्रपुर — मोक्षदा एकादशी के पावन पर्व में माँ चंद्रहासिनी के पावन भूमि में कल गीता जयंती महोत्सव उल्लास पूर्वक मानस मंच चंद्रपुर के दिव्य प्रांगण में मनाया गया। इस पुनीत अवसर पर पूजन, आराधना गीता पाठ के पश्चात पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य जी महाराज की कृपापात्र शिष्य आचार्य झम्मन शास्त्री के सुमधुर वाणी द्वारा गीता के महत्व तथा वर्तमान समय में उनकी उपयोगिता पर विशेष आध्यात्मिक प्रवचन श्रवण का लाभ प्राप्त हुआ। यह पावन कार्यक्रम तीन दिवसीय आयोजित है। आचार्य श्री ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुये बताया कि गीता में 700 श्लोक 18 अध्याय है जो भगवान श्री कृष्णचंद्र के मुखारविन्द दिव्य प्रसारित वाणी हैं। जिसका प्रचार पूरे विश्व में सनातन धर्म का अलौकिक ग्रंथ है। जो समस्त वेद वेदांत उपनिषदों का सार सर्वस्व है। क्रांतिकारी समाज के निर्माण में गीता परम प्रेरणा दायी सत्य , न्याय, नीति के लिये संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। इस महान महिमा मय गीता शास्त्र के श्रवण मनन, चिंतन के द्वारा पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति संभव है। जीवन में धर्म ,अर्थ काम, मोक्ष चार पुरुषार्थ को वास्तविक रूप में धारण करना हो तो गीता शास्त्र का प्रतिदिन अध्ययन करे। युवा पीढ़ी को सत्यनिष्ठा, कर्तव्य, परायण,धर्मनिष्ठ, संघर्षशील, सेवा परायण, राष्ट्रभक्त बनाने के लिये गीता परम उपयोगी है , जो मानव मात्र के लिये कल्याणकारी है। इसी ज्ञान की कारण भारत विश्व गुरु रहा है। जो अमुल्य् निधि भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिये परम धरोहर है । इस अनुपम ज्ञान का अधिक से अधिक हम सब प्रचार प्रसार करे जिससे सनातन धर्म संस्कृति के प्रति आस्था निष्ठा प्रेम विश्वास बढे जिससे समाज और राष्ट्र का सर्वविध उत्कर्ष हो सके। आचार्य ने बताया कि जब अर्जुन मोह ग्रस्त हो गया विषाद के स्थिति में पलायन वादी बनकर युद्ध के मैदान में गांडीव त्याग दिया भगवान कृष्ण ने मोह विद्या कर्तृत्वा भिमान को मिटाने हेतु गीता के ज्ञानोंपदेश के माध्यम से सत्य,धर्म ,न्याय, नीति की स्थापना के लिये धर्ममार्ग में चलकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी। “स्वधर्मोनिधनः श्रेयः परधर्मो भयावहः ” जिससे अपने छात्र धर्म का पालन कर विजय श्री प्राप्त करने मे पांडव सफल हुये।सनातन परंपरा प्राप्त वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन करना अनिवार्य है । आज भी दो प्रवृत्तियो में संघर्ष हो रहा है ।सात्विक एवं समस्त तामस प्रवृति इस संक्रमण काल मे भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रसारित अमृत कृपा प्रसाद का अनुशरण कर हम भक्ति मुक्ति तथा विरक्ति प्राप्त कर सकते है। इसके लिये परंपरा प्राप्त व्यास पीठ का मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक है। पूज्य पाद गुरुदेव भगवान शंकराचार्य जी हिंदू के सार्वभौम धर्मगुरु है। उनके द्वारा बताये जा रहे आदर्श सन्मार्ग में चलकर भारत आदर्श राष्ट्र तथा विश्व गुरु के रुप में ख्यापित हो सकता है। तथा हिंदू राष्ट्र संघ की स्थापना भी हो सकता है। इस अवसर पर बिलासपुर सिटी, रायगढ़, सारंगढ़, चाँपा,तमनार,दुर्ग भिलाई , रायपुर खरसिया ,भाटापारा आदि से धर्म संघ पीठ परिषद , आदित्य वाहिनी- आनंद वाहिनी , राष्ट्र उत्कर्ष अभियान के पदाधिकारी सदस्यगण तथा मानस समिति के सभी पदाधिकारी सदस्यगण मांँ श्री चंद्रहासिनी ट्रस्ट के सदस्यगण एवं श्रद्धालु भक्तजन अधिक संख्या में उपस्थित होकर सतसंग लाभ प्राप्त कर जीवन को धन्य बनाये।
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