दुर्गा, कुमकुम और राधारानी करेंगी मधुमक्खी पालन ; हर माह 500 किलो होगा शहद का उत्पादन, मिलेंगे ढाई लाख रुपए

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दुर्गा, कुमकुम और राधारानी करेंगी मधुमक्खी पालन, हर माह 500 किलो होगा शहद का उत्पादन, मिलेंगे ढाई लाख रुपए

भुवन वर्मा बिलासपुर 04 नवम्बर 2020

कवर्धा- दुर्गा, कुमकुम, राधारानी व साईंराम के साथ 40 महिलाओं का समूह अब शहद उत्पादन से जुड़ने जा रहा है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत आजीविका संवर्धन की यह गतिविधि जब बाजार तक पहुंचेगी उसके बाद मिलने वाला प्रतिफल शहद सरीखा मीठा होगा।

कवर्धा के भोरमदेव आजीविका परिसर में पहली बार मधुमक्खी पालन व्यावसायिक गतिविधियां चलती हुई दिखाई देगी। अभी तक यह क्षेत्र प्रचुर गन्ना और शक्कर उत्पादन के रूप में मशहूर था। अब मिठास की इस कड़ी में शहद का नाम भी जुड़ने जा रहा है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत कृषि विज्ञान केंद्र और जिला पंचायत की संयुक्त पहल से आकार ले रही इस कोशिश से स्व सहायता समूह की 40 महिलाएं सीधे तौर पर जुड़ चुकी हैं जिनमें खुद का व्यवसाय करने की ललक है।

दिया गया प्रशिक्षण

मां दुर्गा कुमकुम राधारानी और साईंराम स्व सहायता समूह से जुड़ी 40 महिलाओं को मधुमक्खी पालन के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इस में मधुमक्खी पालन ,शहद उत्पादन, प्रसंस्करण के सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रशिक्षण के बाद जरूरी सामान दिए जा चुके हैं। जिनकी मदद से शहद उत्पादन किया जा सकेगा।

दी गई मधुमक्खी पेटी

जिला पंचायत के द्वारा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए चारों स्व सहायता समूह को मधुमक्खी पालन के लिए जरूरी 100 पेटी दी जा चुकी है। इसमें मानक संख्या में मधुमक्खियों का पालन और बाद में शहद उत्पादन किया जा सकेगा। देखरेख व मार्गदर्शन के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन का सहयोग एवं मार्गदर्शन हर समय मिलता रहे इसकी पक्की व्यवस्था भी जिला पंचायत ने कर दी है।

हर माह 25.सौ रुपए की आमदनी

प्रशिक्षण और जरूरी सामग्रियों की व्यवस्था किए जाने के बाद इन चारों स्व सहायता समूह द्वारा हर माह 500 किलो शहद उत्पादन का लक्ष्य लेकर चला जा रहा है। प्रसंस्करण के बाद बाजार में बेचे जाने पर प्रति पेटी 25 सौ रुपए की आय का अनुमान और लक्ष्य लेकर चला जा रहा है। राजा नवागांव में चालू हुई यह योजना इस समय पूरे जिले में चर्चा का विषय बनी हुई है।

यह काम पहले से ही

यह चारों स्व सहायता समूह इसके पहले भी सब्जी उत्पादन, पैकेजिंग , थैला निर्माण ,हर्बल सोप ,फिनायल उत्पादन और दोना पत्तल निर्माण के बाद अपनी सफल आर्थिक गतिविधियों में पहचान बना चुकी है। नए काम से जुड़ने के बाद अब पहचान का दायरा और भी ज्यादा फैलने का लाभ सीधे तौर पर व्यवसाय को बढ़ाने में मदद करेगा क्योंकि अब उनको प्रतिस्पर्धी बाजार में उतरने का अवसर मिल रहा है।

‘ शहद उत्पादन से समूहों को जोड़ने के पीछे एक ही उद्देश्य है वह है व्यावसायिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना। ग्लूकोज, मिनरल्स और जीवाणु रोधी क्षमता होने से शहद का बाजार लगातार बढ़त की ओर है। इस पहल का फायदा समूह को मिलेगा ’ – बी पी त्रिपाठी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र ,कवर्धा।

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