आज करवा चौथ विशेष आलेख
आज करवा चौथ विशेष आलेख-
भुवन वर्मा बिलासपुर 4 नवम्बर 2020
– अरविन्द तिवारी की कलम से
रायपुर — करवा चौथ हर वर्ग, आयु , जाति के हिन्दू सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है जिसे कर्क चतुर्थी भी कहते है। कई जगह अविवाहित कन्यायें भी अपने अच्छे जीवनसाथी की कामना के लिये यह व्रत रखते हैं। यह व्रत पति पत्नी में भावनात्मक लगाव और विश्वास को बढ़ाता है। इस व्रत को पहली बार करवा चौथ यानि नवविवाहिता महिलाओं के लिये बहुत अच्छा फलदायी बताया जा रहा है। इस बार करवा चौथ पर लगभग एक सौ साल बाद शंख , गजकेसरी , हंस और दीर्घायु नामक चार राजयोग के साथ साथ सर्वार्थसिद्धि , सप्तकीर्ति , महादीर्घायु , सौख्य , शिव , अमृत जैसे शुभ योग भी बन रहे हैं। ये सभी संयोग इस बार करवा चौथ को और अधिक मंगलकारी बना रहा है। इससे करवा चौथ व्रत करने वाली महिलाओं को पूजन का फल हजारों गुना अधिक मिलेगा। करवा चौथ का पर्व महिलाओं के लिये सुखद अहसास है जिनका उन्हें साल भर इंतजार रहता है। इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है तो कहीं नही भी है। किवदंती के अनुसार महाभारत काल से यह व्रत किया जा रहा है , भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अर्जुन के लिये इस व्रत को किया था। आज के दिन सभी सुहागिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य , सौभाग्य एवं सुखद दांपत्य की कामना के लिये यह व्रत रखती हैं जो बहुत ही कठिन होता है। इस व्रत में कुछ नियम है जिनका कड़ाई से पालन किया जाता है। इस व्रत अवधि में जल भी ग्रहण नही किया जाता अर्थात निर्जला रखा जाता है। यह व्रत सूर्योदय से पहले और चाँद निकलने तक रखा जाता है। रात्रि में चाँद और पति का दीदार के लिये सुहागिन स्त्रियाँ चाँद के उदय होने का इंतजार करती हैं। चाँद निकलने पर शिव परिवार की पूजन करती हैं। फिर छलनी में घी का दीपक रखकर चंद्रमा को अर्घ्यं देकर , छलनी में से चंद्रमा के साथ अपने चाँद यानि पति का चेहरा देखती हैं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं और पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। इस दिन खास तौर पर गणेश जी का पूजन होता है और उन्हें ही साक्षी मानकर ब्रत शुरु किया जाता है। गणेश जी को चतुर्थी का अधिपति देव माना गया है। पूजा करते और कथा सुनते समय सींक रखने की परंपरा है जो करवा माता की उस शक्ति का प्रतीक है जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था। पूजन के पश्चात अर्घ्य दिये जाने का विधान है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन जिसके द्वारा चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है , यहां अर्घ्य का मतलब चंद्रमा को जल देने से है। इस व्रत में चंद्रमा को अर्ध्य देकर छलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखते है। इसके बाद पति अपने पत्नी को अपने हाथों से पानी पिलाकर व्रत खुलवाते हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनने का विधान है। चंद्रमा के माता का कारक होने की वजह से करवाचौथ के दिन किसी भी महिला को अपनी सास, मांँ या फिर दूसरी महिला का अपमान नहीं करना चाहिये। करवा चौथ वाले दिन महिलायें सफेद रंग की चीजें जैसे दही, चावल, दूध या फिर सफेद रंग का कपड़ा किसी को ना दें क्योंकि सफेद रंग चंद्रमा का कारक माना जाता है। इस दिन इन चीजों का दान करने से आपको आपकी पूजा का फल नहीं मिलेगा। इस दिन महिलायें काले, नीले और भूरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा ना करें इससे उसको पूजा का फल नहीं मिलता है।
सोलह श्रृंगार क्या है ?
करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाओं को पूर्ण श्रृँगार के साथ तैयार होना चाहिये। मान्यता है कि पूर्ण श्रृंगार में 16 तरह के श्रृंगार महत्वपूर्ण होते हैं जिनमें सिंदूर, मंगलसूत्र, बिंदी, मेंहदी, लाल रंग के कपड़े, चूड़ियांँ, बिछिया, काजल, नथनी, कर्णफूल (ईयररिंग्स), पायल, मांग टीका, तगड़ी या कमरबंद, बाजूबंद, अंगूठी, गजरा।
आज किस रंग का पहनें कपड़े ?
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मेष राशि वालों को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग की साड़ी। वृष राशि वालों को सिल्वर या लाल रंग। मिथुन राशि वालों को हरे रंग। कर्क राशि वालों को लाल में सफेद बॉर्डर या सफेद में लाल बॉर्डर की साड़ी । सिंह राशि वालों को नारंगी, गुलाबी , गोल्डन रंग। कन्या राशि वालों को लाल , हरा , गोल्डन । तुला राशि वालों को लाल , सिल्वर, गोल्डन। वृश्चिक राशि वालों को लाल , मैरून , गोल्डन। धनु राशि वालों को पीला , आसमानी। मकर राशि वालों को नीले रंग। कुंभ राशि वालों को नीला , सिल्वर और जूलरी। मीन राशि वालों को लाल गोल्डन रंग की साड़ी पहनना ज्यादा शुभ है। करवा चौथ के दिन पति की लंबी उम्र के लिये सुहागिनों को प्रार्थना के साथ निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिये – ‘ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।।