ईश्वर के लिये माया और मनुष्यों के लिये मन ही संरचनाकारक – पुरी शंकराचार्य

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ईश्वर के लिये माया और मनुष्यों के लिये मन ही संरचनाकारक – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 02 नवम्बर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज इस मान्य पीठ के 145 वें जगद्गुरु शंकराचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं । भारतवर्ष की विडम्बना है कि हमको विभिन्न समस्याओं जैसी असाध्य रोग ने जकड़ रखा है, हमारे पास असाध्य रोग के विशेषज्ञ भी सुलभ हैं, परन्तु हम अनभिज्ञ चिकित्सक से ही रोग की चिकित्सा चाहते हैं, परिणाम यह हो रहा है कि असाध्य रोग जैसी समस्यायें विकराल होती जा रही है । ऐसे संकटकाल में पुरी शंकराचार्य जी विभिन्न संगोष्ठियों के माध्यम से सनातन सिद्धांत के दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक धरातल पर सर्वोत्कृष्ट विभिन्न प्रकल्पों पर प्रकाश डालने का अभियान संचालित कर रहे हैं। हिन्दु राष्ट्र संघ अधिवेशन इस पवित्र अभियान का ही अंग है, जिसके षष्ठम चरण के द्वितीय दिवस में विभिन्न सनातन धर्म में आस्थान्वित महानुभावों ने अपने भाव व्यक्त किया।

इस अवसर पर पुरी शंकराचार्य जी ने सांकेतिक रूप से अपने उद्बोधन में संदेश दिया कि हमारे सनातन सिद्धांत का हितप्रद अभीष्ट फल सबको आकृष्ट करता है, परन्तु सबको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि अभीष्ट फल की प्राप्ति सनातन शास्त्रसम्मत विधा के द्वारा ही सम्भव है, यदि मन:कल्पित विधा का प्रयोग करेंगे तो विस्फोट ही प्राप्त होगा । वर्तमान में सुनियोजित रूप से सनातन सिद्धांत पर प्रहार किया जा रहा है जो कालांतर में स्वयं के ही अस्तित्व और आदर्श पर संकट उत्पन्न करेगा, इसको समझने की दृष्टि ही नहीं है। सनातन सिद्धांत को समझने के लिये गुरुकुल का अभाव है, अतः इसके लिये मान्य आचार्यों के सानिध्य की आवश्यकता होगी , सनातन सिद्धांत के अलावा अन्य धर्मों के पास स्वस्थ मार्गदर्शन का अभाव है । भगवान सूर्य प्रकाशकस्वरूप होते हैं, मेघमंडल आच्छादित न होने की स्थिति में स्वभाव के अनुरूप प्रकाश को विकीर्ण करते हैं , उष्णता प्रदान करते हैं । इस प्रकार स्वरूप के अनुरूप स्वभाव तथा स्वभाव के अनुरूप प्रभाव होता है । भगवान के तीन रुप शिव, शंकर एवं प्रलयंकर हैं। शिव कल्याण स्वरूप , स्वभाव रुप में शंकर कल्याण की वर्षा करते हैं तथा प्रभाव रूप में प्रलयंकर त्रिविध तापों को नष्ट करने वाले हैं। जीवन में सत्य को धारण करने पर योगदर्शन में वर्णित उसका फल अवश्य मिलता है। जीवन में ऊर्जा प्राप्त करने के लिये पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश में सन्निहित दिव्यता को धारणा के द्वारा प्रतिष्ठित करना आवश्यक होता है । जो कार्य ईश्वर के लिये माया करती है, वही स्वरूप मनुष्यों के लिये मन करता है । विश्व की संरचना के स्वरूप को समझकर विश्व स्तर पर अभिव्यक्त करने की आवश्यकता है ।

भारत में अपनी मेधा शक्ति, रक्षाशक्ति, वाणिज्यशक्ति तथा श्रमशक्ति की पहचान नहीं है इसलिये इसका सदुपयोग भी सम्भव नहीं है । भारत में विचित्र संघर्ष चल रहा है, शासनतन्त्र ही व्यासपीठ के दायित्व का भी निर्वहन कर रहा है, वर्तमान में राजनेता के साथ ही स्वयं धर्माचार्य भी, दोनों के युग्म के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह षड्यंत्र चल रहा है कि सनातन मनुपरम्परा प्राप्त कोई संत, व्यासपीठ देश में सुरक्षित ना रहे । सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण और स्वस्थ तथा सर्वहितप्रद समाज व व्यक्ति की संरचना की स्वस्थ विधा वेदादि शास्त्रसम्मत राजनीति की परिभाषा विश्व स्तर पर ख्यापित करने की आवश्यकता है ।

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