आज शरद पूर्णिमा विशेष,,,,

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आज शरद पूर्णिमा विशेष,,,,

भुवन वर्मा बिलासपुर 30 अक्टूबर 2020

– अरविन्द तिवारी की कलम से

आश्विन मास की पूर्णिमा शरदपूर्णिमा कहलाती है। हिन्दू धर्म में हर माह पड़ने वाली पूर्णिमाओं में से शरदपूर्णिमा का हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान है इसे कोजागिरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा भी कहा जाता है एवं इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पू​र्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी की अवतरण हुआ था। शरद पूर्णिमा की रात श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, या फिर विष्णु सहस्त्रनाम का जप करना चाहिए। साथ ही माता लक्ष्मी को श्वेत कमल, चांदी, चमेली का इत्र, शहद से पूजा-उपासना करनी चाहिए। पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा मानी गई है। दीप दान करने से समस्त प्रकार के दुख दूर होते हैं तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है, आकाश दीप प्रज्वलित करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। इस बार शरद पूर्णिमा तिथि 30 अक्टूबर को शाम को 05:45 बजे से लग रही है और 31 अक्टूबर को रात 08:00 बजे खत्म हो जायेगी। इसलिये एक ओर जहाँ शरद पूर्णिमा का व्रत 31 अक्टूबर को रखा जायेगा. वहीं स्नान, दान और कथा शुक्रवार को यानि 30 अक्टूबर ही करना शुभ रहेगा। उड़ीसा में शरदपूर्णिमा को “कुमार पूर्णिमा” कहा जाता है । यहां इस दिन कुंवारी लड़कियांँ सुयोग्य वर पाने के लिये भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। कई जगह शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। ज्योतिष के मुताबिक वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें बरसती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान में रखते हैं, ताकि चंद्रमा की अमृत युक्त किरणें इसमें आएंगी और खीर औषधीय गुणों से युक्त होकर अमृत के समान हो जाएगा। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। साथ ही खीर का संबंध पितरों और सोम यानी चंद्रमा से माना गया है और माता लक्ष्मी को भी खीर बहुत प्रिय है। देवी भागवत महापुराण के अनुसार द्वापर युग में गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया। चन्द्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया। उन्ही किरणों ने भगवान कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी ! फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी  महारास ने समाहित  हो गए, कृष्ण कि वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मो में लीन सभी गोपियां अपना घर-बार छोड़कर भागती हुईं वहां आ पहुचीं। कृष्ण और गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देख कर चन्द्र ने अपनी सोममय किरणों से अमृत वर्षा आरम्भ कर दी जिसमे भीगकर यही गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुईं और भगवान कृष्ण के अमर प्रेम का भागीदार बनी। चंद्रमा की सोममय रश्मियां जब पेड़ पौधों और वनस्पतियों पर पड़ी तो उनमें भी अमृत्व का संचार हो गया। इसीलिए इस दिन खीर बना कर खुले आसमान के नीचे मध्यरात्रि में रखने का विधान है रात्रि में चन्द्र की किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरुप वह खीर भी अमृत सामान हो जाती है उसमें चन्द्रमा से जनित दोष शांति और आरोग्य प्रदान करने क्षमता स्वतः आ जाती है। यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी मानसिक क्लान्ति से मुक्ति पा लेता है। शरदपूर्णिमा के इस महारासलीला में भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र पुरुष थे इनके अलावा वहाँ पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। लेकिन महादेव जी के मन में महारासलीला देखने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि वे गोपिका बनकर उसमें शामिल हो गये। वास्तव में रासलीला भगवान श्रीकृष्ण का दुनियाँ को दिया गया प्रेम संदेश है , जिसका अर्थ भोगविलास समझना सर्वथा अनुचित है। रासलीला में भगवान ने अपने सर्वव्यापक होने का प्रमाण दिया है क्योंकि महारास में प्रत्येक गोपी को भगवान श्रीकृष्ण का साथ मिला।आज भी मान्यता है कि आज भी शरदपूर्णिमा की रात भगवान श्री कृष्ण गोपियों के साथ वृंदावन के निधिवन में महारास लीला रचाते हैं। निधिवन में तुलसी के पेड़ जोड़ों में पाये जाते हैं। कहा जाता है कि यह सभी तुलसी के पेड़ रास रचाते समय गोपियां बन जाती हैं। सूर्यास्त के बाद निधिवन को खाली करा दिया जाता है किसी भी इंसान को यहां रुकने की इजाजत नहीं होती अन्यथा उनकी मानसिक संतुलन खो जाती है। निधिवन में बने रंगमहल में आज भी राधारानी और श्री कृष्ण के लिये रखे गये चंदन के पलंग को रोज सूर्यास्त के समय सजा दिये जाते हैं। पलंग के पास ही एक लोटा पानी , राधारानी के श्रृंगार का सामान , दातुन और पान रखा जाता है। सुबह रंगमहल का दरवाजा खोलने पर बिस्तर अस्त-व्यस्त मिलता है , लोटे का पानी गायब और उपयोग की हुई दातुन दिखायी पड़ती है एवं पान भी खाया हुआ मिलता है। मान्यता है कि इन सभी चीजों का उपयोग श्री कृष्ण और राधा द्वारा किया जाता है।

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